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राष्ट्रभाषा हिन्दी
शायद शरद् आया द्वार।।
स्वयं को ढूंढने की यात्रा
प्यार ही प्यार
हिन्दी ही संस्कृत की बेटी ,
जिंदगी
मंत्री मुझको ही बनवाना
मुंबई वालों की भावना
किस विधि तुमको ध्याउं प्रभु जी।
कठिन जीवन है मगर इन्सानियत भी है।
अपना तो हर दिन हर पल हिन्दी का,
दुःखी मां
नन्हा सिपाही
मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी जग में चँहुओर
बने हिन्दी अब देश की राष्ट्रभाषा
अश्व धोक संग,अलौकिक ज्योत चमत्कार
एक कल सीखाकर है जाता
अखबार हुआ महद जीवन में ,
कैसे कहूँ कि भारत बने महान,
खतरा बन चुका है मानव