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हरि हीरो के हार दिहलन
जयति जय जय धरती आबा भगवान
“अनकहा, अनलिखा”
गरीबी में सामूहिक जीवन जिया करता था
जय राम लखन माॅं जानकी ।
वोट चोरी का हवा
प्रीति रीति नीति विचित्र
आ जाओ मेरे प्यारे बच्चे ,
"अहं का अवसान, स्व का उदय"
उसे देख, खिले प्रणय सुमन सजीले
मत काट रे मानव मुझे
"भाग्य के उस पार"
“कुर्सी का सुख प्राप्त करना हो”
कुकुर चलेला कार में,भइल सवख बरियार
“स्वर्ग पाने की चाहत रखते हो”
वक़्त के थपेड़े ---
एक्यूरेट पोल
मैं उसके किरदार का साझेदार हूं।
सोलह श्रृंगार — नारी सौंदर्य के अलंकार
जयति जय जय,श्रद्धेय प्रेमानंद जी महाराज