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नये दौर में नींद का आना, है मुश्किल आसान कहाँ,
मैं मजदूर हूं।
वेदना ,पीड़ा कहाँ होती
हाहाकार करती प्रकृति
श्रम की गरिमा
पहलगाम/ आतंक का मैदान
परशुराम जी महर्षि
शस्त्र शास्त्र चिन्मयता संग,उग्र आवेश अपार
.परशुराम : अमर क्रोध की ज्वाला
दुनियादारी
चक्र सुदर्शन चलाना होगा।
सुप्रीम का मान किया, सिर पर चढ़ गये,
हाकिम को बेगाना समझे- लानत है,
चूल्हा चौका गोबर से लीपा जाता था,
आतंकी जड़ें
रणभूमि सज चुकी,वीरों के अभिनंदन में
हम भारत के बाल प्यारे
जब भी कोई छंद लिखूंगा
फन अभी कुचलना होगा
मात पिता के चरणों में संसार है