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हे वागेश्वरी मैया ,ऐसा वर दे
प्रकृति से क्यों भागते भाई?
अंतर लहरें उठ रही हैं, नेह के स्पंदन में
नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण
हाँ मैं ब्राह्मण हूँ
नहीं बन सकती मैं तुम जैसी
अच्छा बनने से पहले कष्टों में पेला जाता है,
आपदा में अवसर बनने की बात है,
चलो फिर से बच्चा बन जायें,
आत्मा बदलती वस्त्र, जीर्ण शीर्ण हो गये,