हे वागेश्वरी मैया ,ऐसा वर दे मृदुल मधुर ह्रदय तरंग, स्वर श्रृंगार अनुपम । विमल वाणी ओज गायन, ज्योत…
Read more »द्रोपदी का दर्द मेरे दिलमें जो होता है वो ही बात कहता हूँ। कहकर दिलकी बातों को सुकून बहुत मिलता है।…
Read more »प्रकृति से क्यों भागते भाई? डॉ रामकृष्ण मिश्र यही धातृ बहु मना है जहाँ अपना तन छना है। संस…
Read more »अंतर लहरें उठ रही हैं, नेह के स्पंदन में मन गंगा सा निर्मल पावन, निहार रहा धरा गगन । देख सौम्य काल …
Read more »नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण परम माध्य सृष्टि सृजन, परिवार समाज अनूप कड़ी । सदा उत्सर्गी सोच व्यंज…
Read more »हाँ मैं ब्राह्मण हूँ मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ" हाँ मैं ब्राह्मण हूँ इसमें दोष क्या है? मै…
Read more »नहीं बन सकती मैं तुम जैसी डॉ रीमा सिन्हा नहीं बन सकती मैं तुम जैसी, क्योंकि मैं तो तुमको जीती हूँ, …
Read more »अच्छा बनने से पहले कष्टों में पेला जाता है, सोना तपा आग में तब ही कुन्दन बन पाता है। अच्छा हो सच्चा…
Read more »आपदा में अवसर बनने की बात है, लुटेरों को लूट कर भरने की बात है। कुर्सी के कीड़े लगे कुर्सी की दौड़ …
Read more »चलो फिर से बच्चा बन जायें, चलें गाँव वापस ख़ुशियाँ मनायें। हो प्रकृति से सीधा अपना नाता, सुबह खेत ख…
Read more »आत्मा बदलती वस्त्र, जीर्ण शीर्ण हो गये, कुछ वक्त के थपेड़ों से, चीर चीर हो गये। भाते नहीं मन को कुछ…
Read more »हे वागेश्वरी मैया ,ऐसा वर दे मृदुल मधुर ह्रदय तरंग, स्वर श्रृंगार अनुपम । विमल वाणी ओज गायन, ज्योत…
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