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हिन्दी का परचम लहरायें
जीने की ख़ुशी, न मरने का गम है
वेश्या किसी की पत्नी होती है क्या?
हृदयांगन प्रणय धार,सुन पायल की झंकार
था जिसका इंतजार मुझे
जीवों का होता यह जीवन ,
ललित कलित संविधान हमारा
चोर उच्चके बेईमान मिल, ईमानदारी की बात करें,
मेरी गुड़िया
हर पल तजुर्बा ज़िन्दगी, हमको सिखाती है,
" क्लीं"