बारिस की बूंदे
बारिस की रिम-झिम बूंदो सेमौसम ठंडा-ठंडा हो गया।
हर किसी के चेहरे पर
लहर खुशी की दौड़ पड़ी।
गिरते ही पानी की बूंदे
भूमि भी खुशी से झूम उठी।
फिर होकर वो हरी-हरी
हरियाली को बिखेर दी।।
गर्मी से तुम देखो अब
हमको निजात मिल गया।
तन पर पड़ती बूंदे पानी की
वदन कमल सा खिल उठा।
हर किसी का चेहरा देखो
कैसे फूलों सा खिल उठा।
बारिस का आनन्द लेकर
सबका दिल जो डोल उठा।।
मनभावन के सपने देखो
सोते जगते आने लगे।
कल्पनाओं के सागर में
देखो हम सब डूबने लगे।
लहर खुशी की दिल पर
कैसे देखो दौड़ पड़ी।
बारिस के चलते ही देखो
खुशबू चारों तरफ फैल गई।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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