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अपने लिए तो सब जीते हैं ,
स्वच्छता के लिए सबका साथ
खून उबल रहा है
नूतन वर्ष
आओ देखें--
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे, चर्चों की हम बात करें,
जब सूख चुके हों ताल तलैया, नदीयाँ भी सूखी सूखी
जब कुंठाओं से ग्रस्त आदमी रहता है,
कौन जिया है खुद की खातिर, यह तो हमको बतला दो,
वृद्धाश्रम में मात पिता, क्यों दोष बेटे पर ही लगते,
मर गये तो क्या तुम्हारे साथ जायेगा,