कौन जिया है खुद की खातिर, यह तो हमको बतला दो,
बूढा बाप जिया या भैया, यह भी सबको समझा दो।
दिन भर मेहनत और मजूरी, शाम ढले जब घर आता,
खुद की खातिर क्या लाया, यह भी हमको दिखला दो।
बीबी बच्चों की खातिर ही, हमने उसको चिन्तित देखा,
माँ की दवा कहाँ से लाये, हमने उसको चिन्तित देखा।
भूखा पेट रहा तो उसने, पानी पीकर भूख मिटाई,
हो बच्चों की जरूरत पूरी, हमने उसको चिन्तित देखा।
कभी पहन कर कमीज फटी ही, वह काम पर जाता,
पैबन्द मगर पत्नी की साड़ी पर, जरा न उसको भाता।
जितना भी सम्भव होता वह, अपने मन को समझाता,
पर बच्चों के मुख पर पीड़ा, उसका मन घबरा जाता।
अ कीर्ति वर्द्धन
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