जब सूख चुके हों ताल तलैया, नदीयाँ भी सूखी सूखी,
तब गगन में उमड़े घुमड़े, बादल भी सुखकर लगते हैं।
जब अपनों की बेरूखी से, टूट चुका हो अन्तर्मन तब,
प्यार के दो बोल गैर के, अमृत से बेहतर लगते हैं।
जब जीवन के संघर्षों में, टूटा बिखरा सा हो जीवन,
दोपहरी में चलते चलते, लू के झोंकें शीतल लगते हैं।
बस इतनी सी बात यह, सुख दुख जीवन के पहलू,
सुख दुख में समभाव जो रहते, सबको प्यारे लगते हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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