आध्यात्मिक चेतना और प्रकृति सौंदर्य है सावन
सत्येन्द्र कुमार पाठक
श्रावण मास का सोमवार भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और भक्तों के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना करने से भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वे अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि पाते हैं। भगवान शिव को सावन के महीने में कई चीजें अत्यंत प्रिय होती हैं, जिन्हें अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख वस्तुएँ दी गई हैं जो शिवजी को विशेष रूप से प्रिय हैं: । भगवान शिव को प्रिय वस्तुओ में बेलपत्र भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय है। कहा जाता है कि बेलपत्र के तीनों पत्ते भगवान शिव के त्रिनेत्र और त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसे अर्पित करने से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।भगवान शिव को जल अर्पित करना सबसे सरल और प्रभावी पूजा मानी जाती है। सावन में समुद्र मंथन के दौरान विषपान के बाद शिवजी के शरीर में उत्पन्न हुई प्रचंड गर्मी को शांत करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन पर जल चढ़ाया था। तभी से जल अभिषेक का विशेष महत्व है। गंगाजल को अत्यंत पवित्र माना जाता है।धतूरा और आक (मदार) के फूल और फल दोनों ही शिवजी को बहुत प्रिय हैं। ये वस्तुएँ शिवजी के वैरागी स्वरूप को दर्शाती हैं। इन्हें अर्पित करने से स्वास्थ्य लाभ और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। भांग भी भगवान शिव को बहुत पसंद है। इसे शिवजी को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि भांग शिवजी को शांत और एकाग्र रहने में मदद करती है।शमी का पौधा शनिदेव से भी जुड़ा है, लेकिन इसके पत्ते भगवान शिव को भी अत्यंत प्रिय हैं। शमी पत्र अर्पित करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है और शिवजी की कृपा प्राप्त होती है।भगवान शिव को सफेद रंग के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं, जैसे कि चमेली, हरसिंगार (पारिजात), और सफेद कनेर के फूल। कमल का फूल भी शिवजी को प्रिय है।चंदन शिवजी को शीतलता प्रदान करता है। शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाने से मन को शांति मिलती है और सौभाग्य की वृद्धि होती है।भस्म भगवान शिव का श्रृंगार है। वे अपने पूरे शरीर पर भस्म रमाते हैं। भस्म अर्पित करना वैराग्य और शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। यह शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है। दूध चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि आती है।दूध की तरह दही और घी भी शिवजी को प्रिय हैं। पंचामृत में इनका उपयोग होता है, जिससे अभिषेक करने पर शिवजी प्रसन्न होते हैं। शिवलिंग पर गन्ने के रस का अभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, खासकर धन-धान्य की प्राप्ति के लिए इसे शुभ माना जाता है। शहद अर्पित करने से वाणी में मधुरता आती है और जीवन में मिठास बनी रहती है। यह भी पंचामृत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सावन के महीने में इन वस्तुओं को श्र शिव पर गंगा जल चढ़ाया। तभी से श्रावण मास में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व बढ़ गया।
श्रावण मास, जिसे लोक प्रचलित भाषा में सावन के नाम से जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और आध्यात्म में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह केवल एक कैलेंडर माह नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के बीच एक गहन संबंध का प्रतीक है। वर्षा की फुहारें जब धरती को नवजीवन देती हैं, तब हरियाली चारों ओर फैल जाती है, जो मन में एक अद्भुत शांति और ऊर्जा का संचार करती है। यह वह समय है जब प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है, हरे-भरे वृक्षों और खिले हुए फूलों से धरती का श्रृंगार होता है।
धार्मिक परिदृश्य से, श्रावण मास पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है। ऐसी प्रबल मान्यता है कि इस पवित्र माह में की गई शिव आराधना से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। भारत के सभी ज्योतिर्लिंगों में इस महीने में विशेष पूजा, अर्चना और अनुष्ठानों की एक प्राचीन और पौराणिक परंपरा रही है। श्रावण मास में रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय पाठ और कालसर्प दोष निवारण की विशेष पूजाओं का अत्यंत महत्व है। यह वह मास है जिसके बारे में कहा जाता है कि जो भी इस दौरान सच्चे मन से मांगा जाता है, वह पूरा होता है, क्योंकि भोलेनाथ अपने भक्तों का कल्याण करते हैं।समुद्र मंथन और हलाहल विष: सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी श्रावण मास में देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। मंथन से सबसे पहले 'हलाहल' नामक भयंकर विष निकला, जिसकी तीव्र ज्वाला से सृष्टि जलने लगी। सृष्टि के कल्याण के लिए, भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे 'नीलकंठ' कहलाए। विष की प्रचंडता को शांत करने के लिए, सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव पर गंगा जल चढ़ाया। तभी से श्रावण मास में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व बढ़ गया। यह घटना भगवान शिव के परोपकार और त्याग का प्रतीक है।
देवी पार्वती की तपस्या: एक अन्य महत्वपूर्ण कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में कठोर तपस्या की थी। उन्होंने निराहार रहकर सोमवार के व्रत रखे और भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। यही कारण है कि यह मास विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं द्वारा मनचाहा वर पाने के लिए और विवाहित महिलाओं द्वारा वैवाहिक सुख और पति की लंबी आयु के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन के सोमवार के व्रत इसी घटना से जुड़े हुए हैं।
मार्कण्डेय ऋषि की अमरता: महर्षि मृकंडु के पुत्र मार्कण्डेय ने अपनी अल्पायु को जानते हुए, श्रावण मास में ही भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया, जिससे मृत्यु के देवता यमराज भी उन्हें लेने में असमर्थ रहे। यह कथा आयु रक्षा और संकट निवारण के लिए श्रावण मास के महत्व को दर्शाती है।चातुर्मास का आरंभ: श्रावण मास से ही चातुर्मास (चार महीने की अवधि) का आरंभ होता है। इस दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, और सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव पर आ जाता है। इसीलिए श्रावण माह को भगवान शिव का महीना माना जाता है, और यह साधु-संतों के लिए साधना और भक्ति का उत्तम समय होता है।स्कंद पुराण का उद्घोष: श्रावण का अलौकिक माहात्म्य के अनुसार स्कंद पुराण के अंतर्गत ईश्वर-सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह संवाद इस पवित्र मास की सर्वोच्चता को स्थापित करता है। जब शौनक ऋषि सूत जी से पूछते हैं कि क्या कार्तिक, माघ और वैशाख जैसे मासों से भी अधिक महिमामय कोई मास है, तब सूत जी भगवान शिव और सनत्कुमार के बीच के संवाद का उल्लेख करते हैं।सनत्कुमार ने धर्म को जानने की इच्छा से परम भक्ति और विनम्रतापूर्वक भगवान शिव (ईश्वर) से पूछा: "हे देवदेव! हे महाभाग! हमने आपसे अनेक व्रतों और धर्मों का श्रवण किया है, फिर भी हमारे मन में सुनने की अभिलाषा है। आप कृपया उस मास को बताएं जो सभी बारह मासों में सबसे श्रेष्ठ, आपकी अत्यंत प्रीति कराने वाला, सभी कर्मों की सिद्धि देने वाला हो, और जिसमें किया गया कर्म अनंत फल प्रदान करे।"इस पर भगवान शिव उत्तर देते हैं: "हे सनत्कुमार! मैं तुम्हें अत्यंत गोपनीय बात बताऊंगा। बारहों मासों में श्रावण मास मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है, इसीलिए इसे श्रावण कहा गया है। इस मास में श्रवण-नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण से भी इसे श्रावण कहा गया है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है। निर्मलता गुण के कारण यह आकाश के सदृश है, इसलिए इसे 'नभा' भी कहा गया है।"भगवान शिव आगे बताते हैं कि इस श्रावण मास के धर्मों की गणना करना इस पृथ्वीलोक में किसी के लिए संभव नहीं है। यहां तक कि ब्रह्मा, इंद्र और शेषनाग भी इसके पूर्ण फल का वर्णन करने में समर्थ नहीं हैं। यह मास सभी व्रतों और धर्मों से युक्त है, और इस महीने में शायद ही कोई दिन व्रत से रहित हो। यह आर्तों (दुखियों), जिज्ञासुओं, भक्तों, अर्थ की कामना करने वाले, मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले और अपने-अपने अभीष्ट की आकांक्षा रखने वाले सभी प्रकार के लोगों के लिए व्रतानुष्ठान का सर्वोत्तम समय है।
सनत्कुमार भगवान शिव की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं कि वे ही आदि देव, महादेव हैं, जो कल्याण स्वरूप (शिव) हैं और पाप-समूह को हरने वाले (हर) हैं। वे पूछते हैं कि एकमात्र शिव की पूजा से ही पंचायतन पूजा कैसे हो जाती है, जो किसी अन्य देवता की पूजा से संभव नहीं। वे शिव के सर्वोच्च देवत्व को प्रमाणित करते हुए कहते हैं कि केवल शिव ही ऐसे हैं जिन्होंने हलाहल विष धारण किया, महाप्रलय की कालाग्नि को मस्तक पर धारण किया औया
सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है, और श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवारों का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। 'सोमवार' शब्द 'सोम' से बना है, जिसका अर्थ है चंद्रमा। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर सुशोभित हैं, जो शीतलता और शांति प्रदान करते हैं।
चंद्र देव का संबंध: पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्र देव ने दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति पाने के लिए सोमवार के दिन ही भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर धारण कर लिया। यह संबंध सोमवार को शिव का प्रिय दिन बनाता है। विषपान की शीतलता: समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने के बाद भगवान शिव के शरीर में उत्पन्न हुई जलन को शांत करने के लिए देवी-देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया था। यह घटना श्रावण में हुई थी, और तब से सोमवार के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है, जो शिवजी को शीतलता प्रदान करने का प्रतीक है।पार्वती की तपस्या का फल: माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास के सोमवार को ही कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या की सफलता इस दिन को अविवाहित कन्याओं और सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ बनाती है।मन पर नियंत्रण: ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। सोमवार चंद्रमा से संबंधित होने के कारण, इस दिन शिव की पूजा और व्रत मन को एकाग्र करने, भावनाओं को नियंत्रित करने और मानसिक शांति प्राप्त करने में सहायक होते हैं।आशुतोष स्वरूप: भगवान शिव को 'आशुतोष' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले। श्रावण मास में, विशेषकर सोमवार को, भगवान शिव अपने भक्तों की सच्ची श्रद्धा और भक्ति से तुरंत प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैंश्रावण मास में कई अन्य महत्वपूर्ण त्योहार भी मनाए जाते हैं, जो भारतीय संस्कृति में गहरे रचे-बसे हैं:नाग पंचमी - नाग देवता की पूजा की जाती है, उन्हें दूध पिलाया जाता है, और सर्पदंश के भय से मुक्ति पाने की प्रार्थना की जाती है। रक्षा बंधन - भाई-बहन के पवित्र प्रेम का त्योहार रक्षा बंधन है, जब बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी आयु और सुरक्षा की कामना करती हैं, और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। हरियाली - यह त्योहार भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है, और मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती है।
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