कामाख्या की शक्ति साधना और लोक आस्था का महापर्व , अंबुबाची मेला|

लेखक पंडित प्रेम सागर पाण्डेय
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का जीवंत उदाहरण उसके मेलों और पर्वों में परिलक्षित होता है। हर क्षेत्र, हर राज्य और हर संप्रदाय में ऐसे पर्व विद्यमान हैं जो न केवल धार्मिक श्रद्धा के प्रतीक हैं, बल्कि जन-जीवन की चेतना, परंपरा, समाज और अर्थव्यवस्था को भी गहराई से प्रभावित करते हैं। इन्हीं में से एक है अंबुबाची मेला, जो असम की राजधानी गुवाहाटी के नीलाचल पर्वत पर स्थित मां कामाख्या मंदिर में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास में आयोजित होता है। यह मेला शक्ति साधकों, तांत्रिकों, संत-महात्माओं और लाखों श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है।
अंबुबाची मेला नारीत्व की महिमा, सृजन की शक्ति और प्रकृति की जैविक प्रक्रियाओं की पूजा का अद्वितीय पर्व है। इसमें स्त्री के मासिक चक्र को अपवित्र नहीं बल्कि ईश्वरीय और सृष्टि की उत्पत्ति का माध्यम माना गया है। यह भारत के उन चंद पर्वों में से है जो मातृत्व और प्रकृति की पवित्रता को सर्वोपरि मानते हैं।
अंबुबाची मेला की अवधि
अंबुबाची मेला हर वर्ष आषाढ़ मास की अमावस्या के आसपास आयोजित होता है। इसकी तिथि चंद्र पंचांग के अनुसार निर्धारित होती है, इसलिए हर वर्ष यह जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में पड़ता है।
मेला कुल चार दिनों तक चलता है, जिसमें तीन दिन देवी के ऋतुस्राव (menstruation) के कारण मंदिर के पट बंद रहते हैं, और चौथे दिन स्नान और शुद्धि के पश्चात पट पुनः खोले जाते हैं।
चार प्रमुख दिन होते हैं:
- प्रथम दिन – अंबुबाची आरंभ (Deity goes into menstruation)
- द्वितीय दिन – देवी विश्राम में
- तृतीय दिन – देवी अभी भी विश्राम में रहती हैं, मंदिर बंद रहता है
- चतुर्थ दिन – पटोद्धाटन (गर्भगृह के पट खुलते हैं, दर्शन प्रारंभ होते हैं, प्रसाद वितरण होता है)
कामाख्या मंदिर: इतिहास और पौराणिक मान्यता
कामाख्या मंदिर भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन शक्ति पीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार, जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह कर लिया था, तो शिव शोकविह्वल होकर उनके शरीर को लेकर आकाश मार्ग में भ्रमण करने लगे। इससे सृष्टि की गति रुक गई और ब्रह्मांड संकट में पड़ गया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जो पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में गिरे। इन्हीं स्थलों को शक्तिपीठ कहा जाता है। कामाख्या वह स्थान है जहाँ सती का योनिभाग गिरा था। अतः इसे योनि पीठ कहा जाता है।
यह मंदिर असम की नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ मां कामाख्या को सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। यह शक्ति की उपासना का परम स्थल है, और यहां शक्ति और शिव के तांत्रिक स्वरूप की आराधना होती है। कामाख्या मंदिर को ‘कामरूप’ की भूमि का केंद्र भी कहा जाता है, जहां तंत्र और मंत्र की महान परंपराएं आज भी जीवित हैं।
अंबुबाची पर्व: नारीत्व और प्रकृति की साधना
अंबुबाची का शाब्दिक अर्थ है – 'अंबु' अर्थात जल और 'बाची' अर्थात प्रसव करना। यह पर्व उस जैविक चक्र को दर्शाता है जिसमें धरती माता (प्रकृति) गर्भाधान की अवस्था में होती हैं और उनकी मासिक ऋतु (menstruation) आती है। मान्यता है कि इस समय मां कामाख्या भी ऋतुस्राव में होती हैं, अतः मंदिर के गर्भगृह को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया दर्शाती है कि स्त्री की मासिक धर्म प्रक्रिया कोई लज्जा या वर्जना नहीं, बल्कि जीवन की उत्पत्ति का आधार है।
पहले तीन दिन मंदिर के पट बंद रहते हैं, और देवी विश्राम में होती हैं। न कोई पूजा होती है, न दर्शन। मंदिर परिसर में हजारों साधक ध्यान, जप और तंत्र-साधना में लीन रहते हैं। चौथे दिन जब मंदिर के द्वार खुलते हैं, तो उसे 'नवकलेवर' माना जाता है, अर्थात देवी का पुनर्जन्म। इस अवसर पर भक्तों को विशेष ‘अंबुबाची प्रसाद’ प्रदान किया जाता है, जिसमें लाल वस्त्र, जल, मिट्टी और कुछ अन्य प्रतीक चिह्न होते हैं।
अंबुबाची मेला का आयोजन और व्यवस्थाएं
यह मेला प्रतिवर्ष जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के आरंभ में आयोजित होता है। असम सरकार और गुवाहाटी प्रशासन की ओर से लाखों श्रद्धालुओं के लिए विशाल स्तर पर व्यवस्थाएं की जाती हैं।
विशेष व्यवस्थाओं में शामिल हैं:
निःशुल्क भोजन व जल सेवा
विश्रामगृह, टेंट, बांस के बने अस्थायी आवास
मोबाइल शौचालय और सफाई व्यवस्था
मेडिकल कैंप और एंबुलेंस सेवाएं
सुरक्षाकर्मी, आपदा प्रबंधन बल और स्वयंसेवी दल
गुवाहाटी रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, एयरपोर्ट आदि पर विशेष सहायता काउंटर लगाए जाते हैं। सरकार द्वारा विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं। स्थानीय नागरिक भी लाखों की संख्या में सेवा कार्यों में भाग लेते हैं, जिससे समाज में सेवा और सह-अस्तित्व की भावना पनपती है।
तांत्रिक साधकों का महाकुंभ
अंबुबाची मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि तांत्रिक साधकों का सबसे बड़ा वार्षिक जमावड़ा भी है। देश और विदेश से हजारों साधक इस पर्व पर कामाख्या मंदिर पहुंचते हैं। इन साधकों में अघोरी, नागा, नाथपंथी, कपाली, सिद्ध और वाममार्गी तांत्रिक शामिल होते हैं। वे मां कामाख्या की तांत्रिक विधियों से आराधना करते हैं।
इस दौरान मंदिर परिसर और आसपास के जंगलों में विशेष साधनाएं, अनुष्ठान और यज्ञ होते हैं। इन साधकों की उपस्थिति इस पर्व को रहस्यमय और अलौकिक बनाती है। कई साधक वर्षों की तपस्या के बाद अंबुबाची में दीक्षा लेते हैं या किसी तांत्रिक परंपरा का उत्तराधिकार प्राप्त करते हैं।
लोक परंपराएं और सांस्कृतिक प्रभाव
अंबुबाची मेला केवल मंदिर तक सीमित नहीं है। यह एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। मेले के दौरान लोकगीत, नृत्य, भजन-कीर्तन, कथा-वार्ता, प्रदर्शनी, धार्मिक पुस्तक मेलों का आयोजन होता है। स्थानीय कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
असम के बाहर बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, नेपाल, बांग्लादेश से हजारों श्रद्धालु आते हैं। इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है और पूर्वोत्तर भारत की परंपराएं व्यापक पहचान प्राप्त करती हैं।
नारी शरीर की जैविक प्रक्रिया की स्वीकृति और सम्मान
भारत में लंबे समय तक मासिक धर्म को अपवित्र माना गया, और महिलाओं को पूजा, रसोई, धार्मिक अनुष्ठानों से दूर रखा जाता रहा। लेकिन अंबुबाची मेला इन धारणाओं को तोड़ता है। यह पर्व बताता है कि मासिक धर्म कोई अपवित्र क्रिया नहीं बल्कि सृष्टि की निरंतरता का प्रतीक है।
मां कामाख्या स्वयं जब इस अवस्था में होती हैं, तो उन्हें विश्राम दिया जाता है। यह संदेश है कि महिलाओं को भी इस दौरान सम्मानपूर्वक विश्राम और देखभाल मिलनी चाहिए। कई सामाजिक संगठनों ने अंबुबाची के माध्यम से मासिक धर्म के प्रति जनजागरूकता अभियान भी चलाए हैं।
अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर प्रभाव
अंबुबाची मेला असम की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लाखों श्रद्धालु गुवाहाटी आते हैं, जिससे होटल, रेस्टोरेंट, परिवहन, स्थानीय व्यापार, हस्तशिल्प और पर्यटन उद्योग को भारी लाभ होता है।
राज्य सरकार और पर्यटन विभाग इस अवसर को ‘आध्यात्मिक पर्यटन’ के रूप में बढ़ावा देता है।
पर्यावरण और जागरूकता
हाल के वर्षों में पर्यावरण की दृष्टि से भी अंबुबाची मेला में अनेक पहलें की गई हैं:
प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र की घोषणा
जैविक कूड़ा प्रबंधन
वृक्षारोपण कार्यक्रम
नदी सफाई अभियान
इसके अलावा स्वच्छ भारत अभियान के तहत मंदिर परिसर में जागरूकता रैलियां और स्वच्छता अभियान भी आयोजित किए जाते हैं।
विदेशी पर्यटकों और शोधकर्ताओं की रुचि
अंबुबाची मेला अपनी अनूठी परंपरा, तांत्रिक साधना और सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण विदेशी पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
अनेक विश्वविद्यालयों के धर्म और मानवशास्त्र विषय के छात्र इस आयोजन पर शोध करते हैं। कई डॉक्युमेंट्री, वृत्तचित्र और टीवी चैनलों पर अंबुबाची को प्रमुखता से दिखाया गया है।
वर्तमान चुनौतियां और समाधान
भीड़ नियंत्रण: हर साल बढ़ती भीड़ प्रशासन के लिए चुनौती है। इसके लिए डिजिटल रजिस्ट्रेशन और समयानुसार दर्शन प्रणाली लागू की जा रही है।
स्वास्थ्य समस्याएं: गर्मी, भीड़ और थकान से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। इसके समाधान हेतु मोबाइल मेडिकल यूनिट्स लगाई जाती हैं।
सांप्रदायिक और सामाजिक तनाव से दूर रहना: यह पर्व सभी के लिए है, अतः इसे राजनीति और सांप्रदायिकता से दूर रखा जाना चाहिए।
अंबुबाची मेला भारतीय संस्कृति की उस जड़ से जुड़ा पर्व है जो हमें प्रकृति, नारी और सृजन की वास्तविकता से परिचित कराता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जिस प्रक्रिया को समाज ने लांछित किया, वह दरअसल जीवन का आधार है।
मां कामाख्या के इस अनूठे उत्सव में श्रद्धा, तंत्र, विज्ञान, लोककला, सेवा और समर्पण – सभी का संगम होता है। यह न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवता की चेतना का भी उत्सव है।
जय मां कामाख्या।
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