नशे के खिलाफ कठोर कानून की अनिवार्यता: भारत में राजनीतिक इच्छाशक्ति की परीक्षा
डॉ राकेश दत्त मिश्र
भारत एक युवा देश है, जिसकी 65% से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। यह जनसंख्या देश के विकास, नवाचार, और सामाजिक समरसता का आधार बन सकती है, लेकिन नशे की लत इस संभावना को निगल रही है। हर साल लाखों परिवार नशे की वजह से बर्बाद हो जाते हैं। इसके पीछे केवल व्यक्तिगत लापरवाही नहीं, बल्कि संगठित अपराध, कमजोर कानून और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। आज देश को नशे के खिलाफ युद्ध स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है।
वर्तमान परिदृश्य
भारत में लगभग 5000 सांसद और विधायक हैं, जो देश और राज्यों की विधायिकाओं में कानून बनाते हैं। इसके अलावा लगभग 3000 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं। लेकिन क्या आपने किसी एक भी सांसद, विधायक या राजनीतिक दल को यह मांग करते सुना है कि:
नशा तस्करों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट अनिवार्य हो,
उनकी 100% अवैध संपत्ति जब्त की जाए,
उन्हें भारत की नागरिकता से वंचित किया जाए,
और 01 वर्ष के भीतर उन्हें फांसी दी जाए?
उत्तर है – नहीं!
क्यों नहीं उठती यह मांग?
राजनीतिक संरक्षण: कई बार नशा तस्कर राजनीतिक पार्टियों या नेताओं से जुड़े होते हैं। चुनावों में फंडिंग के लिए ऐसे नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए राजनीतिक दल इन मुद्दों पर चुप्पी साध लेते हैं।
वोट बैंक की राजनीति: कुछ राजनीतिक दल सामाजिक सुधार के मुद्दों पर कड़े कदम उठाने से डरते हैं, क्योंकि इससे उनका पारंपरिक वोट बैंक नाराज हो सकता है।
जनता की उदासीनता: आम जनता भी इस मुद्दे पर लंबे समय तक जागरूक नहीं रही। जब तक किसी का बेटा, भाई या पति नशे की गिरफ्त में नहीं आता, तब तक यह मुद्दा प्राथमिकता में नहीं आता।
कानूनी जटिलताएँ: भारत का न्यायिक तंत्र धीमा है। फांसी जैसी सजा के लिए लंबी प्रक्रिया होती है और मानवाधिकार की बहसें शुरू हो जाती हैं।
अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति
सऊदी अरब, चीन और सिंगापुर जैसे देशों में नशा तस्करी पर सख्त कानून लागू हैं, जिनमें मृत्यु दंड शामिल है। इन देशों में नशा तस्करी के मामले काफी कम होते हैं। भारत में NDPS (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) Act 1985 जरूर है, लेकिन इसमें अनेक खामियाँ हैं:
जमानत आसानी से मिल जाती है,
सजा का निर्धारण जटिल है,
जांच एजेंसियाँ भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं।
समस्या की गंभीरता
युवाओं का पतन: पंजाब, मणिपुर, दिल्ली, हरियाणा, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में नशा महामारी का रूप ले चुका है।
अपराध में वृद्धि: नशा सेवन के कारण चोरी, बलात्कार, हत्या, घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: परिवारों की आय नशे पर खर्च होती है, जिससे बचत, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ता है।
स्वास्थ्य सेवाओं पर भार: नशे से जुड़ी बीमारियाँ जैसे कि हेपेटाइटिस, एचआईवी, टीबी आदि बढ़ रही हैं।
क्या होना चाहिए? (सुझाव)
नया कानून बने: जिसमें निम्नलिखित प्रावधान हों:
नार्को, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट अनिवार्य,
100% संपत्ति जब्ती,
नागरिकता समाप्ति,
01 वर्ष के भीतर मुकदमा निपटाकर मृत्यु दंड।
फास्ट ट्रैक कोर्ट: केवल नशा तस्करी मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना।
जांच एजेंसियों का सशक्तिकरण: विशेष प्रशिक्षण, तकनीकी उपकरण, और स्वतंत्रता।
राजनीतिक इच्छा: प्रत्येक सांसद और विधायक को अपने क्षेत्र में नशे के खिलाफ अभियान चलाना अनिवार्य हो।
जन आंदोलन: जैसे स्वच्छता अभियान हुआ, वैसे ही ‘नशा भारत छोड़ो अभियान’ चलाया जाए।
शिक्षा में शामिल हो: स्कूल-कॉलेज स्तर पर नशा के खिलाफ अध्याय और कार्यशालाएँ आयोजित हों।
नशा पीड़ितों के पुनर्वास की नीति: जो युवा गलती से नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं, उनके लिए सरकारी पुनर्वास योजना हो।
मीडिया की भूमिका
मीडिया को टीआरपी से ऊपर उठकर इस विषय पर जन-जागरूकता फैलानी होगी। लगातार अभियान चलाना होगा। डॉक्यूमेंट्री, रिपोर्ट, डिबेट, और ग्राउंड रिपोर्टिंग से समाज को हिला देना होगा।
न्यायपालिका की जिम्मेदारी
न्यायपालिका को इस विषय में संवेदनशीलता और गति दिखानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का सही अर्थ तभी है जब युवा नशे से मुक्त हों।
निष्कर्ष
भारत को आज उस स्तर पर खड़ा होना है जहाँ देश का हर नागरिक, हर सांसद, हर पार्टी, हर पंचायत और हर मोहल्ला यह कहे:
"नशा भारत छोड़ो। नशा तस्करों को बख्शा नहीं जाएगा।"
जब तक राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता में यह मुद्दा नहीं आएगा, तब तक देश को नशे की दलदल से निकाल पाना असंभव है। अब समय आ गया है कि भारत में ऐसा कानून बने जिसमें नशा तस्करों को कोई राहत न मिले और राष्ट्रहित सर्वोपरि हो।
आइए, हम सब मिलकर इस मुहिम को राष्ट्रव्यापी आंदोलन बनाएँ। क्योंकि नशा केवल व्यक्तिगत नहीं, यह राष्ट्रीय आपदा है।
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