सीता स्वयंवर और शिव धनुष पिनाक
जय प्रकाश कुवंर
राजा जनक ( मिथिलेश ) की पुत्री सीता जी का स्वयंवर रचा गया था और उसमें जनक जी ने घोषणा की थी कि जो व्यक्ति रंगभूमि में रखे हुए धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसी के साथ सीता का ब्याह होगा। इसके लिए अनेकों राजा और शूरवीर पधारे हुए थे।
इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए बहुत सारे देवता और असुर भी अपना वेष बदल कर सम्मिलित हुए थे। जनक जी के आमंत्रण पर विश्वामित्र मुनि भी दशरथ पुत्रों राम और लक्ष्मण के साथ इस स्वयंवर में आये हुए थे।
अब प्रश्न यह उठता है कि सीता बिबाह के लिए शर्त के रूप में रखा गया धनुष कौन सा धनुष था और राजा जनक जी ने इस धनुष को उठाने और इस पर प्रत्यंचा चढ़ाने की ही शर्त क्यों रखी थी। फिर दुसरा प्रश्न यह कि वह धनुष राजा जनक जी के पास कैसे आया था। तो हम सबसे पहले यह जानते हैं कि वह धनुष कौन सा धनुष था। वह भगवान शिवजी का धनुष पिनाक था। वह एक विशालकाय धनुष था, जिसको कोई साधारण व्यक्ति उठा नहीं सकता था। एक बार राजा जनक जी ने अपनी पुत्री सीता को इस धनुष को उठाते हुए देख लिया था और वे समझ गए थे कि उनकी पुत्री भी कोई साधारण कन्या नहीं है। अतः उसका ब्याह भी किसी असाधारण व्यक्ति से ही होना चाहिए, जो इस शिव धनुष को उठा सकता है और प्रत्यंचा चढ़ा सकता है। इसी कारण से जनक जी ने सीता बिबाह के लिए ऐसी शर्त रखी थी।
इस पिनाक धनुष के संबंध में कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक समय में असुरों और दानवों से परेशान और त्रस्त होकर देवताओं के राजा इंद्र ने महर्षि दधीचि से उनके अस्थियों अर्थात हड्डियों की याचना की थी जिससे असुरों के साथ लड़ने के लिए अस्त्र बनाये जा सकें और उन्हें पराजित किया जा सके। महर्षि दधीचि ने लोक कल्याण और धर्म रक्षा हेतु अपने हड्डियों का दान इंद्रदेव को कर दिया था और अपना प्राणांत समाधि लगाकर कर लिया था।
प्रजापति ब्रह्मा के कहने पर विश्वकर्मा द्वारा महर्षि दधीचि की हड्डियों से बज्र के अलावा तीन शक्तिशाली धनुष बनाये गए थे। जिनके नाम सारंग, पिनाक और गांडीव था। बज्र देवराज इंद्र ने अपने पास रखा जिससे उन्होंने वृत्रासुर आदि असुरों का संघार किया।
सारंग धनुष विष्णु जी के पास दिया गया था और पिनाक धनुष शिवजी को दिया गया। इसके अलावा गांडीव धनुष अलौकिक क्षमता का था जो वरुण देव के पास था। वरुण देव से यह अग्नि देव को प्राप्त हुआ और पुनः अग्नि देव से यह अर्जुन के पास आ गया।
सारंग और पिनाक दोनों ही काफी शक्तिशाली धनुष थे अतः ब्रह्मदेव ने यह जानना चाहा कि विष्णु और शिव में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कौन है। इसके लिए उन्होंने विष्णु और शिव में धनुष प्रतियोगिता करवा दी। दोनों ही देवताओं में बहुत टक्कर का मुकाबला हुआ। अंत में ब्रह्मा जी ने यह मुकाबला रुकवा दिया।
इस मुकाबला के पश्चात विष्णु ने अपना धनुष महर्षि ऋचीक को दे दिया जो समय अनुसार उनके पौत्र परशुराम जी को प्राप्त हुआ। उधर शिव जी ने अपना धनुष राजा जनक के पूर्वज देवरथ को दे दिया। समय के अंतराल में राजा जनक जी के राजा होते हुए वही शिव जी का धनुष पिनाक सीता स्वयंवर में रखा गया था।
सीता स्वयंवर में जब कोई भी शिव धनुष पिनाक को उठाना और प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर, यहाँ तक की हिला भी नहीं सका तब जनक जी बहुत निराश हुए। इस पर मुनि विश्वामित्र की आज्ञा से राम धनुष के पास गए और आदर सहित शिव धनुष को प्रणाम किया। राम ने बिना किसी परिश्रम के धनुष को उठाकर जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाई वह भारी कठोर आवाज के साथ टूट गया।
शिव धनुष के टूटने की घोर आवाज को सुनकर परशुराम जी वहाँ आये और शिव धनुष के टूटने पर अपनी नाराजगी जाहिर की। परशुराम जी शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे। रंगभूमि में राम से वार्तालाप के क्रम में वो जान गए कि राम कोई साधारण व्यक्ति तथा राजकुमार नहीं हैं, बल्कि स्वयं विष्णु हैं, तब उन्होंने राम का बहुत गुणगान किया और विष्णु जी का अपना धनुष सारंग जो उनके पास था उसे राम को समर्पित कर खुद तपस्या करने महेन्द्रगिरि पर्वत पर चले गए।
इस प्रकार जनक पुत्री सीता और राम का बिबाह खुशी खुशी संपन्न हुआ , जो वास्तव में माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान थे।
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