परंपरा
पुराने धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ने से एक बात परिलक्षित होता है कि पहले हमारे देश में राजा महाराजा जब बुढ़े हो जाते थे तब वे अपने पुत्र अथवा उतराधिकारी को राज पाट सौंप कर स्वयं पत्नी के साथ जंगल में तपस्या करने के लिए चले जाते थे। उनको उन दिनों उनके पुत्रों द्वारा घर से निष्कासित नहीं किया जाता था। उदाहरण स्वरूप ऐसा लिखा पाया गया है कि :-चौथेपन नृप कानन जाहिं।
आज की बदली हुई परिस्थितियों में भारत में प्रजातंत्र में अब न राजा रहे और न पहले जैसा सुरक्षित जंगल रहे। अब पूरे भारत देश में संयुक्त परिवार भी नहीं रह गया है। अब परिवार का आकार छोटा होता चला गया है। आज परिवार में जो बुढ़े बुजुर्ग रह गए हैं, वही परिवार के मुखिया या राजा हैं। आज किसी बुढ़े बुजुर्ग को स्वत: तपस्या करने के लिए जंगल जाने की जरूरत नहीं है।
आज इन बुढ़े बुजुर्गों को उनके औलाद उनके घर द्वार पर अपना कब्जा जमा कर उन्हें जबरन आधुनिक जंगल अर्थात बृद्धाश्रम में जीवन निर्वाह तथा मरने के लिए छोड़ आ रहे हैं।
अतः यह कहना बहुत हद तक गलत नहीं होगा कि आज की बदली हुई परिस्थितियों में घर के मुखिया ( राजा ) को चौथेपन अथवा बुढ़ापे में आज के जंगल बृद्धाश्रम में स्वत: नहीं बल्कि जबरन तपस्या करने नहीं, बल्कि मृत्यु के दिन तक जीवन काटने के लिए उनके औलादों द्वारा छोड़ दिया जा रहा है।
यही है जंगल जाने की आधुनिक परंपरा।
जय प्रकाश कुवंर
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