बुढ़ापा का प्यार और शादी ( कहानी )
जय प्रकाश कुवंर
रतनलाल जी ८० साल की उम्र में प्रेम बिबाह करने चले हैं। वे धोती कुर्ता पहने हुए एक हाथ में छड़ी और दुसरे हाथ में दो फूलों का माला , एक अपने लिए और एक अपनी होने वाली पत्नी रत्ना जी के लिए, लेकर कलकत्ता के काली मंदिर में बैठे रत्ना जी का इंतजार कर रहे हैं। थोड़ी देर में ७५ वर्षीय रत्ना जी हड़बड़ाये हुए एवं लड़खड़ाते हुए सुंदर तांती साड़ी पहने हुए वहाँ पहुँचती हैं और रतनलाल जी से उनके कान के नजदीक आकर कहतीं हैं कि तुम ने समय पर फोन करके हमें बुला लिया, नहीं तो मैं तो भुल ही गयी थी कि आज हम दोनों की यहाँ शादी होने वाली है।
रत्ना जी कलकत्ता के एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार से आती हैं, जिनके पति की मौत उनके जवानी के दिनों में ही बहुत पहले हो चुकी है और उन्हें कोई संतान नहीं है। वो स्वयं एक सरकारी स्कूल में शिक्षक रही हैं, जो अब सेवा निवृत्ति के बाद अपने घर में अकेले जिंदगी बिता रही हैं। वैसे तो शारीरिक रूप से वह स्वस्थ हैं, पर भूलने की और कम सुनने की बिमारी उन्हें सता रही है। सेवा निवृत्ति के बाद से अपने सब काम से फुर्सत पाकर वो रोज शाम को घर से थोड़ी दूर एक पार्क में घुमने जाया करती हैं और कुछ देर वहीं बैठकर समय गुजारती हैं। यह उनके दिनचर्या में शामिल है।
रतनलाल जी कलकत्ता में ही एक सरकारी दफ्तर में कार्यरत रहे हैं, जो लगभग २० साल पहले रिटायर हो गये थे। तब से वो भी कलकत्ता में ही रहकर अपना रिटायर्ड जीवन बिता रहे हैं। रतनलाल जी के पुर्वज बिहार से कलकत्ता आकर व्यवसाय करते थे। कलकत्ता में उन्होंने अपना मकान वगैरह बना लिया था, जिसमें ही उनके उत्तराधिकारी के रूप में रतनलाल जी रहते हैं। रतनलाल जी के रिटायरमेंट के १० साल बाद उनकी पत्नी रमा का देहांत हो गया था। उनका एक मात्र लड़का रमण विदेश में नौकरी करता है और अपने परिवार के साथ वही स्थायी रूप से रहने लगा है। वह अब अपने पिता से मिलने भी नहीं आता है और विशेष संपर्क भी नहीं रखता है। इस प्रकार रतनलाल जी भी अपनी पत्नी रमा के गुजरने के बाद पिछले १० साल से एकाकी जिंदगी ही गुजार रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर पहुँच कर रतनलाल जी वैसे तो स्वस्थ दिखते हैं, पर तरह तरह की बिमारियों से जुझ रहे हैं। उन्हें ब्लडप्रेशर का दवा रोज लेना पड़ता है। चलना फिरना भी अब छड़ी के सहारे ही हो पाता है। उनके साथ सबसे बड़ी समस्या जो है, वह कम सुनाई पड़ने की और बात भुलने की आज कल हो गई है। कान के नजदीक आकर कुछ कहने पर ही वो सुन पाते हैं। बात भुलने की हालत तो ऐसी हो गई है कि कुछ समय पहले कही गई बात भी अब भुल जा रहे हैं। अपने को ठीक रखने के लिए और कुछ व्यस्त रखने के लिए वे रोज अपने घर के नजदीकी पार्क में जाते हैं। घर का काम करने और खाना वगैरह बनाने के लिए उन्होंने एक नौकर रख लिया है, जो उनका देखभाल करता है।
रोज शाम पार्क में जाकर कुछ समय टहलने के बाद रतनलाल जी एक जगह पार्क में घास पर बैठते हैं। कुछ दिनों से वो महसूस कर रहे हैं कि पार्क में उनसे कुछ दूरी पर एक बृद्ध महिला आकर बैठती हैं और चुपचाप उनके तरफ देखती रहती हैं। कुछ दिनों से उन्हें लगता है कि उस महिला का बोलने की भंगी में मुंह खुलता है, पर कोई बात उन तक पहुँच नहीं पाती है। एक दिन वह महिला रतनलाल जी के काफी नजदीक आकर बैठ जाती हैं और उनसे कहती हैं कि वो कई दिनों से उन्हें रोज नमस्कार बोलती हैं, पर आप कोई जबाब नहीं देते हैं। नजदीक से कही हुई बात रतनलाल जी सुन पाते हैं और सौरी कहते हुए लज्जित होते हैं। वो भी उस बृद्ध महिला को नमस्कार बोलते हैं और, बताते हैं कि उन्हें थोड़ा कम सुनाई देता है। महिला भी बताती हैं कि यह कम सुनने और भुलने की समस्या उनके साथ भी है। फिर यह जानकर कि दोनों रोज इस पार्क में शाम के समय आते हैं, अब रोज टहलने के बाद घास पर एक दुसरे के काफी नजदीक बैठते हैं और अपने जीवन परिवार आदि के बारे में बात करते हैं। बात के क्रम में ही दोनों एक दूसरे के नाम और पता से परिचित होते हैं और यह भी जान पाते हैं कि दोनों का घर पार्क के नजदीक ही है। इस क्रम में वे यह भी जान पाते हैं कि दोनों ही अपने अपने घरों में अकेले ही रहते हैं। उनके मिलने जुलने और बातें करने का क्रम रोज पार्क में चलता रहता है।
रत्ना जी के बातों से रतनलाल जी काफी प्रभावित हैं और बातों के क्रम में वे यह भी जान गए हैं कि उनके तरह ही रत्ना जी भी एकाकी जिंदगी बिता रहीं हैं। उधर रत्ना जी को भी रतनलाल जी का व्यवहार बहुत अच्छा लगता है और इस तरह उनकी नजदिकीयाँ रोज बढ़ती जा रही हैं। एक दिन रतनलाल जी पार्क में बैठे हुए थे और अभी रत्ना जी नहीं आईं थी। वो बड़ा ही असहज महसूस कर रहे थे। उनकी नजरें पार्क में चारों तरफ रत्ना जी को खोज रही थी। इतने में रत्ना जी दूर से आती हुई दिखाई पड़ती है और रतनलाल जी का मन खिल उठता है। रत्ना जी आकर सामने पास में बैठ जती हैं और अपने लेट पहुंचने का कारण बताती हैं। आज पहली दफा रतनलाल जी को यह महसूस हो रहा था कि रत्ना जी उनके दिल में गहरा प्रभाव बना चुकी हैं। वे बहुत ही हिम्मत करके रत्ना जी को आई लव यू बोलते हैं और रत्ना जी की प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं। रत्ना जी खामोश अपने जगह पर बैठी है और उनके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई पड़ती है। अब रतनलाल जी को यह लगता है कि रत्ना जी ने बुरा मान लिया है। दोनों चुप चाप बैठे रहते हैं। रत्ना जी खिसक कर रतनलाल जी के और नजदीक आ जाती हैं और बोलती है कि वो चुप क्यों हैं। इस पर रतनलाल जी बोलते हैं कि मैं चुप कहा हूँ। मैंने तो आज इतने दिन में पहली बार आपको आई लव यू बोला और आपने कुछ जबाब नही दिया। मैंने तो यही समझा कि शायद आप नाराज हो गयी है। इस पर वो हंसते हुए बोलती हैं कि मैने आपकी बात सुना ही नहीं क्योंकि मुझे कम सुनाई पड़ता है । ये तो मैं आपको बहुत दिनों से बोलने को सोच रही थी लेकिन भय लग रहा था कि कहीं आप बुरा न मान जांय और मुझे एक घटिया दर्जा की औरत न समझ बैठें। लेकिन इस मामले में आप हमसे आगे निकल गए और अपने दिल की बात पहले मुझ पर जाहिर कर दी। रतनलाल जी आई लव यू टू अपने दिल से। यह बात रत्ना जी ने रतनलाल जी के लगभग कानों में ही कह दिया, ताकि वे भी अच्छी तरह सुन पायें। इस पर रतनलाल जी बहुत खुश हुए और अब दोनों के बीच रोज आई लव यू का आदान प्रदान होने लगा और नजदीकियां और बढ़ने लगी।
रतनलाल जी और रत्ना जी दोनों अब अपने मोबाईल फोन से भी बात कर लिया करते थे। इस प्रकार दोनों के जिंदगी के हर पन्ने दोनों के लिए खुलते चले गए। अब एक बात जो रतनलाल जी के मन में उठ रही थी वो रत्ना जी से मोबाईल फोन पर नहीं बल्कि पार्क में सामने बैठकर बोलना चाहते थे।
अगले दिन दोनों टहलने के बाद पार्क में घास पर आमने सामने बैठे थे। दोनों में आई लव यू और आई लव यू टू का आदान प्रदान हुआ। इसके बाद रतनलाल जी ने रत्ना जी से कहा कि वो उनसे शादी करना चाहते हैं। इस पर रत्ना जी खुब जोर से हंस पड़ीं और रतनलाल जी से उनके लगभग कान में बोलीं कि हर बार बाजी वहीं मार लेते हैं, तथा अपने मन की बात उनसे पहले वे ही बोल देते हैं। रत्ना जी ने कहा कि वो भी उनसे यही कहना चाहती थीं कि क्यों न अब हम दोनों शादी कर लें। लेकिन यह बात आपने हम से पहले बोल दीं। रत्ना जी ने कहा कि वो उनसे शादी करने के लिए तैयार हैं। दोनों ने यह तय किया कि दो दिन बाद वे कलकत्ता के काली मंदिर में शादी कर लेंगे।
जिस दिन शादी की बात थी उस दिन को रतनलाल जी तो याद रखे हुए थे, लेकिन अपने भुलक्कड़ स्वभाव के अनुसार रत्ना जी शादी की बात और दिन भूल गयीं। शादी के दिन रतनलाल जी निश्चित समय पर काली मंदिर पहुँच गए और रत्ना जी का इंतजार करने लगे। कुछ समय तक इंतजार करने के बाद उन्होंने रत्ना जी को फोन किया। रत्ना जी ने फोन उठाया और बिना नाम पढ़े इधर से बोलीं की कौन बोल रहा है। इस पर जब रतनलाल जी ने अपना नाम बताया तो वो चौंक पड़ीं और बोलीं की आज तो हम लोग शादी करने वाले हैं। आप ने बहुत अच्छा किया जो फोन किया, बर्ना हम तो भुला बैठे थे। उन्होंने तुरंत पहुचने का बादा करके फोन रखा और तैयार होकर कलकत्ता काली मंदिर के लिए निकल पड़ीं।
रत्ना देवी के काली मंदिर पहुंचने पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े और एक दूसरे को कहने लगे कि हम दोनों में इतना प्यार है और दोनों अब देवी देवता को साक्षी मानकर शादी करने जा रहे हैं, परंतु हम दोनों की कम सुनने और भुलने की बिमारी हमें यदा कदा परेशानी में डाल रही है। देवी देवता को साक्षी मानकर दोनों ने एक दूसरे को बरमाला पहनाया और पति पत्नी से भी उपर दोनों ने एक दूसरे को अपना जीवनसाथी बनाया।
अब रतनलाल जी के लिए रत्ना जी, उनकी पत्नी रत्ना देवी बन गयीं लेकिन प्रेम और सम्मान के रूप में रत्ना देवी के लिए रतनलाल जी, रतनलाल जी ही बने रहे। रत्ना देवी ने अपने घर को किराये पर लगा दिया और जीवनकाल तक के लिए रतनलाल जी और रत्ना देवी, पति पत्नी तथा जीवनसाथी के रूप में रतनलाल जी के घर में साथ साथ रहने लगे। अब भी जब कम सुनने और भुलने की बात आती थी तो दोनों एक दूसरे पर खुब हंसते थे।
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