"सत्य की त्रयी"
हर बात के तीन पहलू होते हैं—आपका, उनका एवं परम सत्य का। हम अपनी सीमित दृष्टि एवं पूर्वाग्रहों से घटनाओं को परखते हैं, जबकि दूसरे व्यक्ति अपनी अनुभूतियों, दुख-सुख एवं अनुभवों से उसी बात को बिल्कुल अलग रूप में देख सकते हैं। परंतु जो अनदेखा रह जाता है, वह वही अखंड सत्य है, जो किसी की मान्यता या पक्ष का मोहताज नहीं होता।
सुनी-सुनाई बातों पर तुरंत विश्वास कर लेना आत्मा की निर्भीक खोज एवं विवेक को कुंठित कर देता है। सत्य जानने का अर्थ है अपने अहंकार, भय एवं कल्पना को छोड़कर अंतरात्मा की तटस्थ दृष्टि से हर पक्ष को देखना, परखना एवं समझना।
जब हम किसी प्रसंग में बिना आग्रह-दुराग्रह के निष्पक्ष सत्य की खोज करते हैं, तब भीतर का अंधकार भी धीरे-धीरे आलोकित होने लगता है। यही साधना है—मिथ्या आरोपों एवं अधूरी धारणाओं से परे, निर्मल विवेक एवं आत्मिक स्पष्टता तक पहुंचने की साधना। यही वह बोध है जो अंततः हमें भीतर से शांत, गहन एवं मुक्त बनाता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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