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शालीग्राम और शिवलिंग

शालीग्राम और शिवलिंग

जय प्रकाश कुवंर
भारतीय धर्म और संस्कृति में पत्थर की पूजा होती है, क्योंकि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े दो देव विष्णु और शिव पृथ्वी पर पत्थर रूप में ही विराजमान हैं और अपने भक्तों द्वारा पूजे जाते हैं। इन पत्थर रुपी दोनों देवताओं को इनके मूल रूप में किसी ने बनाया नहीं है, बल्कि ये स्वयं अवतरित होते हैं और पाये जाते हैं।
विष्णु का पत्थर के रूप में मूल रूप है, शालीग्राम और शिव का पत्थर के रूप में मूल रूप है, शिवलिंग। भारतवर्ष में अनेकों जगह पर स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं। स्वयंभू शिवलिंग को जाग्रत शिवलिंग कहा जाता है। इन स्वयंभू शिवलिंगों में सबसे बड़ा है छत्तीसगढ़ का भूतेश्वर महादेव शिवलिंग, जो हर साल आकर में बढ़ता रहता है। यह शिवलिंग रहस्य, चमत्कार और श्रद्धा का अद्वितीय केन्द्र बना हुआ है।
हिन्दू धर्म में जिस शालीग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है, वह मूलरूप से नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली गंडकी नदी से प्राप्त किया जाता है। शालीग्राम विष्णु का एक प्रसिद्ध नाम है, जो इन्हें देवी वृंदा के श्राप के बाद मिला था।
शालीग्राम और शिवलिंग दोनों की ही पूजा आमतौर पर पंचामृत से ही की जाती है। पंचामृत में शामिल हैं दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल। इस पदार्थों से विष्णु और शिव की पूजा सर्वोत्तम मानी जाती है।
इन दोनों महान देवों के चलते ही पूजा की दो परंपरागत पद्धतियाँ पृथ्वी पर प्रचलित हैं। इन्हें वैष्णव और शैव परंपरा कहा जाता है। कुछ लोग वैष्णव परंपरा को श्रेष्ठ मानते हैं, तो कुछ लोग शैव परंपरा को श्रेष्ठ मानते हैं।
लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि भगवान विष्णु और भगवान शिव में कोई एक दूसरे को अपने से बड़ा नहीं मानता है। भगवान विष्णु को शिव प्रिय हैं और भगवान शिव को विष्णु प्रिय हैं। श्री रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ इस तथ्य को साबित करती हैं।
भगवान राम जो विष्णु के अवतार हैं कहते हैं कि :-
शिव द्रोही मम दास कहावा।
सो नर मोहिं सपनेहुँ नहीं भावा।।
वैसे ही शिव जी का राम यानि विष्णु के प्रति भाव है :-
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती।
सादर भजहु अनंग आराती।।
भगवान विष्णु में विशेष प्रेम के कारण भगवान शिव दिन रात राम नाम का जप करते रहते हैं।
राम रूप में अवतरित विष्णु ने अपने वनवास के समय जब शिव जी के रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना की, तब रामेश्वर नाम की परिभाषा उन्होंने इस प्रकार दी थी :-
रामेश्वर अर्थात राम के ईश्वर।
इसके उत्तर में भगवान शिव जी ने रामेश्वर नाम की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी :-
रामेश्वर अर्थात जिसके ईश्वर राम हैं।
ये दोनों तथ्य दोनों की महानता के परिचायक हैं।
इतना ही नहीं, अन्य कारणों के अलावा भगवान शिव जी ने अपनी पत्नी सती और गंगा को अपने साथ नहीं रखा और त्याग दिया क्योंकि उनके नाम में कहीं भी उनके पूज्य राम नाम का कोई अक्षर र अथवा म नहीं था और उनको इन नामों से संबोधित करने पर उनके पूज्य राम का नाम स्मरण नहीं हो
पाता था।
उनके अगले जन्म में जब सती का नाम, पार्वती, गौरी, गिरिजा आदि पड़ा तथा गंगा का नाम, भागीरथी , मंदाकिनी एवं सुरसरिता आदि हुआ , तब उन्हें पत्नी बनाया तथा अपने सिर पर बैठाया, क्योंकि इन नामों में उनके पूज्य विष्णु यानि राम नाम के अक्षर विद्यमान थे ।
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