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क्या श्रीमद्भागवत महापुराण में राधा जी का उल्लेख है?

क्या श्रीमद्भागवत महापुराण में राधा जी का उल्लेख है?

🔹 संक्षिप्त उत्तर:
श्रीमद्भागवत महापुराण (भागवत पुराण) में "राधा" नाम का स्पष्ट, प्रत्यक्ष और बारंबार उल्लेख नहीं है।

विस्तार से समझिए:
श्रीमद्भागवत (संस्कृत में "भागवत महापुराण") का मुख्य उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य चरित्र, लीलाओं और भक्ति मार्ग को प्रकट करना है।
श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध (Book 10), विशेषकर रासलीला प्रसंग (च. 29 से 33), में श्रीकृष्ण और गोपियों की लीलाओं का वर्णन है।
👉 यहाँ एक विशेष गोपी का वर्णन है, जो सबसे अधिक प्रिय है, जिससे श्रीकृष्ण एकांत में विहार करते हैं।
👉 किंतु उसका नाम "राधा" सीधे नहीं लिखा गया है।
"अनया राधिता नोऽयं भगवाञ्शक्यरचितिः"
(श्रीमद्भागवत 10.30.28)
इस श्लोक में "राधिता" शब्द आया है, जिसका अर्थ है: जिसने भगवान को रिझा लिया।
परंतु यहाँ भी नाम "राधा" रूप में नहीं, गुण के रूप में प्रयोग हुआ है।

🕉 तो राधा जी का उल्लेख कहाँ होता है?

✅ राधा जी का अधिक स्पष्ट और प्रमुख वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्म पुराण, गर्ग संहिता, नारद पंचरात्र, और गीत गोविंद (जयदेव कृत) आदि में मिलता है।
✅ भक्तिकाल के संतों जैसे चैतन्य महाप्रभु, सूरदास, मीराबाई आदि ने राधा-कृष्ण को केंद्र में रखकर व्यापक रूप से रचनाएँ कीं।
राधा जी का नाम श्रीमद्भागवत में स्पष्ट रूप से नहीं मिलता,
लेकिन उनकी उपस्थिति और महत्ता एक अलिखित गूढ़ रूप में अवश्य अनुभव की जाती है।

राधारानी का श्रीकृष्ण के साथ दिव्य संबंध भारतीय साहित्य, भक्ति परंपरा और वैष्णव ग्रंथों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि श्रीमद्भागवत महापुराण में राधा का नाम प्रत्यक्ष रूप से नहीं आता, फिर भी अनेक ग्रंथों में उनका गूढ़ या प्रत्यक्ष रूप से उल्लेख मिलता है।
1. श्रीमद्भागवत महापुराण (10.30.28)

यह एकमात्र ऐसा श्लोक है जिसे विद्वान राधा का गूढ़ उल्लेख मानते हैं:

अनया राधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः ।
यो नो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद्रहः ॥

अनुवाद:
"जिस गोपी ने भगवान को अत्यंत प्रसन्न किया है, उसी को गोविंद अकेले वन में ले गए हैं। निश्चित रूप से उन्होंने उसी के द्वारा राधित (पूजित) होकर प्रसन्नता पाई है।"

यहाँ "राधितः" शब्द से ही "राधा" की व्युत्पत्ति मानी गई है — "जो भगवान को रिझा ले"।
2. ब्रह्मवैवर्त पुराण (कृष्णजन्म खंड)

👉 राधा का सबसे अधिक और स्पष्ट वर्णन इस ग्रंथ में है।

"राधा नाम्नि परा शक्तिः कृष्णप्राणवल्लभा।
सर्वलक्षणसम्पन्ना सर्वललामभूषिता॥"

अनुवाद:
"राधा नामक पराशक्ति श्रीकृष्ण की प्राणवल्लभा हैं। वे समस्त लक्षणों से युक्त तथा सभी सुन्दरियों में शिरोमणि हैं।"

🔸 यहाँ राधा को श्रीकृष्ण की अंतरंग शक्ति, "ह्लादिनी शक्ति" के रूप में दर्शाया गया है।
3. पद्मपुराण (उत्तर खंड, अध्याय 83)

"राधा त्वं कृष्णहृदयम् कृष्णप्राणाधिका सदा।"

अनुवाद:
"हे राधा! तुम श्रीकृष्ण के हृदय में निवास करती हो और सदा उनसे भी अधिक प्रिय हो।"
4. नारद पंचरात्र (4.1.36–40)

👉 इसमें राधा को भक्ति, माधुर्य और शक्ति स्वरूपा कहा गया है।

"राधा कृष्णमयी नित्यं राधा कृष्णस्वरूपिणी।
राधायाः प्रियतो नास्ति कृष्णस्य जगतीतले॥"

अनुवाद:
"राधा सदा श्रीकृष्णमयी हैं, वह स्वयं श्रीकृष्ण का स्वरूप हैं। श्रीकृष्ण के लिए पृथ्वी पर राधा से प्रिय कोई नहीं।"
5. गर्ग संहिता (अति महत्वपूर्ण वैष्णव ग्रंथ)

👉 इसमें राधा-कृष्ण के रास, विवाह, लीला आदि का विस्तृत वर्णन है।

"राधिका श्रीहरेः प्राणा प्रियासेति सदा स्मृता।
शक्तिरूपा च भक्तानां मोक्षदा भुक्तिदायिनी॥"

अनुवाद:
"राधिका श्रीहरि की प्राण हैं, प्रियतम हैं, शक्ति रूपा हैं और भक्तों को भक्ति, मुक्ति तथा भोग प्रदान करने वाली हैं।"
6. गीत गोविंद (जयदेव कृत)

👉 12वीं शताब्दी का यह काव्य राधा-कृष्ण प्रेम का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है।

"स्मर गरल खण्डनं मम शिरसि मण्डनं,
देहि मे करवलम्बं राधे!"

यहाँ कृष्ण स्वयं राधा से अनुनय करते हैं, जिससे राधा की श्रेष्ठता प्रकट होती है।
7. श्री चैतन्य महाप्रभु की परंपरा (गौड़ीय वैष्णववाद)

👉 चैतन्य महाप्रभु और उनके अनुयायियों ने राधा को "स्वयम्-शक्ति" और कृष्ण को "स्वयम्-भगवान" बताया।

उनके प्रमुख ग्रंथों जैसे चैतन्य चरितामृत, भक्तिरसामृत सिंधु, आदि में राधा का व्यापक रूप से स्तुति की गई है।
ग्रंथ                    राधा का उल्लेख                    स्वरूप

श्रीमद्भागवत            अप्रत्यक्ष                    "राधिता" शब्द से
ब्रह्मवैवर्त पुराण            प्रत्यक्ष                    श्रीकृष्ण की पराशक्ति
पद्मपुराण                    प्रत्यक्ष                    कृष्ण की प्रियतमा
नारद पंचरात्र                प्रत्यक्ष                    स्वरूप शक्ति
गर्ग संहिता                    प्रत्यक्ष                    लीला-प्रेम-विवाह
गीत गोविंद                काव्यात्मक                प्रेम की पराकाष्ठा
चैतन्य साहित्य            विशेष स्थान                भक्ति की मूर्ति
🕉 प्रश्न: "यदि द्वापर युग का एकमात्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत है और उसमें राधा जी का उल्लेख नहीं है, तो फिर श्रीकृष्ण को राधा जी के साथ जोड़ा जाना कब और कैसे आरंभ हुआ?"

📜 उत्तर: यह ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और काव्यात्मक विकास की प्रक्रिया रही है।
🌸 1. द्वापर युग (श्रीकृष्ण काल)

· तथ्य: उस समय राधा जी का कोई व्यापक ग्रंथीय उल्लेख नहीं है।

· श्रीमद्भागवत (10वां स्कंध) ही उस युग का प्रामाणिक और दिव्य दस्तावेज माना जाता है, परन्तु उसमें राधा जी का नाम स्पष्ट रूप से नहीं आता।

· "राधा" का नाम मात्र एक बार "राधिता" के रूप में मिलता है (10.30.28), जिसे विद्वान राधा का गूढ़ संदर्भ मानते हैं।

🌿 2. प्रारंभिक उल्लेख (गुप्त काल से पूर्व)

· वैदिक या उपनिषदों में राधा का नाम नहीं है।

· वैष्णव आगमों (नारद पंचरात्र, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि) में राधा को ह्लादिनी शक्ति के रूप में वर्णित किया गया।
3. राधा का प्रथम प्रकट नाम — "ब्रह्मवैवर्त पुराण" (8वीं–10वीं शताब्दी)
· इसमें राधा को श्रीकृष्ण की "पराशक्ति", "प्राणवल्लभा", और "नित्य-संगी" बताया गया है।
· पहली बार राधा-कृष्ण के विवाह की भी चर्चा यहीं होती है।
4. मध्यकालीन भक्तिकाल (15वीं–17वीं शताब्दी): राधा-भक्ति का विस्फोट
प्रमुख उदाहरण:
संत/कवि                            रचना                                        राधा-कृष्ण चित्रण
जयदेव (12वीं शताब्दी)        गीत गोविंद                प्रेम की चरम अवस्था, राधा-कृष्ण की मिलन-विरह लीला
चैतन्य महाप्रभु               गौड़ीय वैष्णव परंपरा        राधा को "भगवती शक्ति", कृष्ण की आत्मा
सूरदास                                सूरसागर                    राधा-कृष्ण का मधुर भाव
मीरा बाई                                भजन                        राधा-भाव में कृष्ण भक्ति
हित हरिवंश, रसखान, विद्यापति ब्रज साहित्य                राधा को ब्रह्मस्वरूपा और 'अहंकार रहित प्रेम की देवी'

5. मुग़ल काल में राधा-कृष्ण की कलात्मक स्थापना (16वीं सदी onward)
· राजस्थान, कांगड़ा, और नाथद्वारा की चित्रकला में राधा-कृष्ण की लीलाएँ प्रमुख विषय बनीं।
· मंदिरों में राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ जोड़ी गईं।
👉 इससे पहले केवल "कृष्ण और गोपियाँ" प्रमुख विषय होते थे।
तो निष्कर्ष रूप में:
कालखंड                                                राधा का स्वरूप
श्रीकृष्ण के साथ संबंध                           द्वापर युग
अप्रत्यक्ष रूप से संभव                        भागवत में नाम नहीं
गुप्त/प्राचीन काल                                शास्त्रों में नहीं कोई उल्लेख नहीं
ब्रह्मवैवर्त पुराण (8-10वीं सदी)            पराशक्ति, प्रियतमा विवाह व लीलाएँ
मध्यकालीन भक्ति आंदोलन                भक्ति-भाव की मूर्ति कृष्ण की आत्मा
मुग़ल-औपनिवेशिक काल                    सांस्कृतिक आदर्श मंदिर, चित्र, नाट्य में युगल रूप

राधा का उद्भव – क्यों और कैसे?

1. भक्ति की पूर्णता दिखाने के लिए राधा को "आदर्श प्रेम" का प्रतीक बनाया गया।

2. शक्तिवाद में हर देवता की एक शक्ति होती है — राधा को श्रीकृष्ण की "ह्लादिनी शक्ति" के रूप में देखा गया।

3. कवियों और संतों ने राधा को उस प्रेम का रूप माना जो ईश्वर को भी वश में कर ले।

"राधा ऐतिहासिक चरित्र से अधिक आध्यात्मिक अनुभव और भक्ति की चरम अवस्था हैं, जिनका उद्भव साहित्य और साधना दोनों के समागम से हुआ।" 

डॉ राकेश दत्त मिश्र के द्वारा संग्रह किया गया |हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

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