युद्धों के बीच युद्ध खोजता विश्व समाज
डॉ राकेश कुमार आर्य
कहते हैं कि कोई भी युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं होता। इतना अवश्य है कि एक युद्ध नए युद्ध की नींव रख जाता है। सृजनशील शक्तियां सृष्टि प्रारंभ से ही जहां सृजनात्मक गतिविधियों में रुचि दिखाती हैं, वहीं विध्वंसात्मक शक्तियां विध्वंश के षड़यंत्र रचती रहती हैं । इसी को मानव की प्रवृत्ति में चल रहे शाश्वत राक्षस दैत्य युद्ध के रूप में परिभाषित किया जाता है।
आज के वैश्विक परिवेश में सर्वत्र काम और क्रोध अपने चरम पर हैं। अपने देश में ही देखिए जहां कामज और क्रोधज दोषों की बड़ी सूक्ष्मता से तार्किक विवेचना की गई है । इसके उपरांत भी देश में पवित्र रिश्तों को तार-तार करने वाली घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इसका कारण यह है कि हम शास्त्रों की मानव निर्माण योजना को अपने विद्यालयों के पाठ्यक्रम में लागू नहीं करा पाए। जब भारत की यह स्थिति है तो शेष विश्व की स्थिति क्या हो सकती है ? इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि शेष विश्व में तो काम और क्रोध से जन्म लेने वाले दोषों की कोई विवेचना ही नहीं की गई है। वहां तो सब कुछ अस्त-व्यस्त है । आज का सारा विश्व युद्ध के खंडहरों में भी युद्ध खोज रहा है।
क्रोध से जन्म लेने वाली 8 बुरी दुष्प्रवृत्तियां हैं- 1. चुगली करना, 2. साहस, 3. द्रोह, 4. ईर्ष्या करना, 5. दूसरों में दोष देखना, 6. दूसरों के धन को छीन लेना, 7. गालियां देना, 8. दूसरों से बुरा व्यवहार करना। यदि हम वर्तमान वैश्विक परिवेश को देखें तो इस समय चारों ओर मानव स्वभाव की ये आठों दुष्प्रवृत्तियां प्रभावी दिखाई देती हैं। क्रोध के बारे में हमारे विद्वान ऋषियों की मान्यता रही है कि इससे बुद्धि का नाश होता है। तर्कहीनता मानवीय स्वभाव में उत्पन्न होती है और भ्रम की स्थिति बनती है। यह भी मान्यता है कि जब व्यक्ति को कोई मनोवांछित फल नहीं मिलता है या कोई वस्तु नहीं मिलती है या उस वस्तु के मिलने में किसी प्रकार की बाधा आती है तो उसे क्रोध आता है। ऐसी स्थिति को वह अपने लिए अपमानजनक मानता है। कई बार अपने आप को भ्रमवश अन्याय का शिकार भी कहने लगता है। तब वह दूसरे लोगों को क्रोध से भस्म कर देना चाहता है। क्रोध एक ऐसा विषय है जिसकी उत्पत्ति अज्ञानता से मानी जाती है और जिसका अंत सदा पश्चाताप से ही होता है। संसार का इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है , जब व्यक्ति ने क्रोध के वशीभूत होकर अपना ही विनाश कर लिया और उसके पश्चात उसके पास पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ नहीं था।
वर्तमान समय में संसार के कुल 78 देश क्रोध की भावना से प्रेरित होकर युद्धरत हैं। इतने देशों का परस्पर युद्ध में संलिप्त होना बताता है कि मनुष्य मानव न होकर दानव हो चुका है, जो कि कथित विज्ञान के युग में भी हिंसा की बात करता है।
जिसे हम 'सभ्य समाज' कहते हैं, वह बर्बर हिंसक लोगों का समाज बन चुका है। जिसमें नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं है । धर्म की पवित्रता का कोई स्थान नहीं है। मानवता का कोई स्थान नहीं है।
ऐसी परिस्थितियों में जो लोग यह मान रहे हैं कि ईरान और इजरायल के मध्य चला युद्ध समाप्त हो गया है और भविष्य के लिए युद्धों पर प्रतिबंध लगाने में हम सफल हो गए हैं तो वह भ्रांति की अवस्था में हैं । उन्हें अपने इस प्रकार के भ्रम से बाहर निकलना चाहिए। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रथम विश्व युद्ध देशों की महत्वाकांक्षाओं के परिणाम स्वरुप हुआ था और दूसरा विश्व युद्ध पहले विश्व युद्ध की अवैध संतान था।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद हमने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की और यह भ्रम फैलाने और पालने का नाटक किया कि संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से अब युद्ध की प्रक्रिया सदा के लिए समाप्त हो गई है। यद्यपि वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ संसार के लोगों के साथ न्याय नहीं कर पाया। क्योंकि इसका अपहरण कथित पांच पंचों ने डकैत के रूप में कर लिया। उन्हें 'वीटो पावर' दी गई। जिसका दुरुपयोग उन्होंने अपने निहित स्वार्थ में किया। उसका परिणाम यह है कि विश्व निरंतर युद्धों की पीड़ा से कराहता रहा और वर्तमान में तो अघोषित विश्व युद्ध की स्थिति बनी हुई है। विश्व में इस समय वैश्विक नेतृत्व के गुणों से संपन्न वैश्विक नेताओं का अभाव है। यद्यपि भारत इस अभाव की पूर्ति करने के लिए विश्व के पास एकमात्र आशा की किरण के रूप में दिखाई दे रहा है। इसका कारण है कि भारत ऋषियों की भूमि है। ऋषियों के पवित्र उपदेश इसके वायुमंडल में आज भी विद्यमान हैं। इसकी मिट्टी में विद्यमान हैं । इसके भाव संसार में विद्यमान हैं। इसी के चलते भारत के प्रधानमंत्री विश्व में आग लगाने वाले नेताओं में नहीं गिने जाते। यह भारत के लिए सौभाग्य की बात है कि भारत को आज भी विश्व के लोग आग बुझाने वाले देश के रूप में देख रहे हैं।
अब समाचार है कि मैक्सार टेक्नोलॉजीज की सैटेलाइट इमेज में ईरान में फोर्दो परमाणु सुविधा पर बड़ी संख्या में निर्माण उपकरण काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
यह समाचार अप्रत्याशित नहीं है। ऐसा ही होना था। जब आप शत्रु को घायल करके या अपमानित करके छोड़ देते हैं तो वह लौटकर आप पर हमला करता ही है। चाणक्य ने कहा था कि शत्रु को समूल नष्ट करना चाहिए। या तो शत्रु को छेड़िए मत और यदि छेड़ते हो तो छोड़ो मत। क्रोध के बाद प्रतिरोध की बारी आती है। जिनको आप अपमानित करते हैं, वह अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उचित तैयारी करनी आरंभ कर देते हैं। कई उस तैयारी को खुलकर करते हैं तो कई छुपकर करते हैं। यदि हिटलर के देश को प्रथम विश्व युद्ध के विजेता देश अपमानित नहीं करते तो वह दूसरे विश्व युद्ध के लिए अपने आप को तैयार नहीं करता। यदि इतिहास का निष्पक्ष होकर अवलोकन किया जाएगा तो हिटलर तत्कालीन वैश्विक नेतृत्व की मूर्खताओं से जन्मा था या कहिए कि अप्रत्यक्ष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में जो हिटलर नाम का व्यक्ति तांडव मचा रहा था, वह तत्कालीन वैश्विक नेतृत्व की मूर्खताओं के कारण होने वाला तांडव था।
यदि विश्व वर्तमान परिस्थितियों को शांतिपूर्ण बनाना चाहता है तो वैश्विक नेतृत्व को भारत के शांति शास्त्रों में ही विश्व समाज की शांति व्यवस्था के सूत्र ढूंढने होंगे। वसुधैव कुटुंबकम के संदेश की गहनता से समीक्षा करने का समय आ गया है।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
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