थाना और न्यायालय से गायब हुई FIR: 30 साल पुराने मामले का खुला राज

- षड्यंत्रकारी गिरोह बेनकाब, मास्टरमाइंड की पहचान | न्यायिक प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल
विजयपुर (गोपालगंज), विशेष संवाददाता | वरुण कुमार पाण्डेय ‘वजरंगी’
विजयपुर थाना, गोपालगंज और व्यवहार न्यायालय, गोपालगंज के रिकॉर्ड से वर्ष 1995 के एक पुराने मामले की एफआईआर (कांड संख्या 10/95, सरकार बनाम सुरेश चंद्र पाण्डेय) की मूल प्रति के गायब होने की गुत्थी अब सुलझने लगी है। इस मामले में गहरी साजिश रचने वाले अंतर-राज्यीय जालसाज गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। इस संदर्भ में पीड़ित सुरेश चंद्र पाण्डेय उर्फ त्यागी द्वारा संबंधित प्रशासन को विस्तृत सूचना, प्रमाण और शिकायतें समर्पित की गई हैं।
पर्दाफाश: गायब एफआईआर के पीछे बड़ा षड्यंत्र
2 जून 2025 को रजिस्टर्ड डाक संख्या RF 490890272 IN द्वारा सुरेश चंद्र पाण्डेय ने विजयपुर थानाध्यक्ष को आवेदन देकर स्वयं को निर्दोष बताते हुए एफआईआर की मूल प्रति गायब होने के गंभीर आरोप लगाए। यही पत्र क्रमशः जिला पदाधिकारी गोपालगंज (RF 490890290 IN) एवं पुलिस अधीक्षक गोपालगंज (RF 490890286 IN) को भी आवश्यक कार्रवाई हेतु भेजा गया।
शिकायती पत्र से खुला मास्टरमाइंड का राज
इस मामले में पीड़ित ने स्पष्ट रूप से कन्हैया स्वरूप पाठक के बड़े भाई सुरेश पाठक (ग्राम बभनौली, हाल पता देवरिया, उ.प्र.) और हृदय नारायण तिवारी (ग्राम पुरैना, विजयपुर) को मास्टरमाइंड बताया है। साथ ही, अंतर-राज्यीय अपराधियों की भूमिका भी सामने आई है, जिनमें प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं:
- घनश्याम शाही उर्फ भरत शाही – सरौरा, थाना बरियारपुर, देवरिया
- रमाशंकर यादव व वीरेन्द्र चौरसिया – भेड़ापकड़ कला, थाना भलुअनी, देवरिया
- योगेन्द्र तिवारी व प्रभुनाथ तिवारी – डोमनपुरा, थाना बघौच घाट, देवरिया
झूठे आरोप में फंसाया गया सामाजिक कार्यकर्ता?
सुरेश चंद्र पाण्डेय (त्यागी) एक प्रख्यात समाजसेवी हैं, जिनकी संस्था श्री देवरहा बाबा शिक्षण संस्थान पगरा मठिया (गोपालगंज) को फर्जी करार देकर बदनाम करने की साजिश की गई। जबकि संस्था:
- सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1860 के अंतर्गत पंजीकृत है
- विदेशी अभिदाय अधिनियम 1976, गृह मंत्रालय, भारत सरकार से मान्यता प्राप्त है
- आयकर अधिनियम की धारा 12A व 80G के अंतर्गत वित्त मंत्रालय द्वारा प्रमाणित है
- जिला प्रशासन गोपालगंज द्वारा निर्गत गैर-सांप्रदायिक प्रमाण पत्र प्राप्त है
उल्लेखनीय है कि श्री पाण्डेय को "मैन ऑफ एचीवमेंट अवार्ड 1999" से सम्मानित भी किया गया है।
न्याय की प्रतीक्षा में तीन दशक
पुलिस थाना विजयपुर कांड संख्या 10/95 की FIR मूल प्रति के गायब हो जाने के कारण यह मामला पिछले 30 वर्षों से लंबित है। एफआईआर के गायब होने से न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठे हैं। सुरेश चंद्र पाण्डेय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक यातनाएं झेलनी पड़ी हैं।
इतना ही नहीं, पुलिस द्वारा बिना जांच-पड़ताल व पक्षों को सुने बिना एफआईआर दर्ज करना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर धब्बा बन गया है। 5 में से 4 गवाहों ने न्यायालय को बताया कि उन्हें मामले की कोई जानकारी नहीं है। इसके बाद खुद को बचाने के लिए संबंधित कर्मचारियों ने पैसे व पैरवी के बल पर एफआईआर की मूल प्रति गायब करवा दी।
मानवाधिकार आयोग और हाईकोर्ट की चौखट पर भी नहीं मिला न्याय
पीड़ित ने राज्य मानवाधिकार आयोग, पटना और माननीय उच्च न्यायालय, पटना में न्याय की गुहार लगाई, परंतु अब तक न्याय नहीं मिल सका। आशंका है कि जिला प्रशासन गोपालगंज की भूमिका मामले को दबाने की रही है।
न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा कायम रहेगा?
इस पूरे प्रकरण ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब एक समाजसेवी, सम्मानित नागरिक को 30 वर्षों तक न्याय नहीं मिल पाता, तो आमजन की स्थिति क्या होगी? अब देखना यह होगा कि पीड़ित को न्याय कब और कैसे मिलेगा।
(विजयपुर से विशेष रिपोर्ट | वरुण कुमार पाण्डेय ‘वजरंगी’)
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