आध्यात्मिक और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने वाला सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव !

प्रस्तावना : वर्तमान में भारत सहित समस्त विश्व में युद्ध का तापमान बढता जा रहा है । वैश्विक वातावरण इतना अस्थिर है कि तीसरे विश्वयुद्ध की चिंगारी कब फूट पडेगी, यह कहना कठिन है । ऐसे समय में भारत को सनातन राष्ट्र के रूप में विजयी पताका के साथ उन्नत होना चाहिए, साथ ही भारत की ऊर्जा का केंद्र रही सनातन शक्ति और अधिक सुदृढ होनी चाहिए, इस उद्देश्य से गोवा में १७ से १९ मई २०२५ के बीच "सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव" का यह भव्य आयोजन किया गया । इस समारोह में भारत सहित २३ देशों के ३०,००० से अधिक सनातन धर्मप्रेमी उपस्थित रहे । इनमें संत-महंत, हिंदुत्वनिष्ठ नेता, राजनीतिक पदाधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, साधक, धर्मप्रेमी और भक्तों का समावेश था । देश-विदेश से ढाई लाख लोगों ने इस कार्यक्रम को 'लाइव' देखा । सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ८३वां जन्मोत्सव और सनातन संस्था का रजत जयंती वर्ष इस आयोजन के प्रमुख निमित्त रहे । ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज को जागृत करने वाले इस महोत्सव ने रामराज्य रूपी हिंदू राष्ट्र की स्थापना के संकल्प को आध्यात्मिक बल प्रदान किया । इसीलिए यह महोत्सव हिंदू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में एक मील का पत्थर कहा जा सकता है ।

महोत्सव की विशिष्ट झलकियां :
ब्राह्मतेज का अवतरण: १२ ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम माने जाने वाले सोमनाथ शिवलिंग को क्रूरकर्मी महंमद गजनी ने तोडा था; लेकिन कुछ श्रद्धावान पुजारियों ने उस भग्नावस्था के शिवलिंग के अवशेषों के कुछ अंश अत्यंत गुप्त रूप से सुरक्षित रखे । १००० वर्ष पुराने शिवलिंग के ये दिव्य अंश महोत्सव का एक विशेष आकर्षण रहे । इसके अतिरिक्त संत परंपरा से समर्थ रामदास स्वामीजी, प.पू. गोंदवलेकर महाराजजी, प.पू. ब्रह्मानंद महाराजजी, प.पू. गगनगिरी महाराजजी, कानिफनाथ महाराजजी जैसे १५ संतों की पादुकाएं महोत्सव स्थल पर विराजमान थीं । एक ही समय पर एक ही स्थान पर इतनी संख्या में संतों की पादुकाएं होना एक दुर्लभ घटना है ।
इसके साथ ही रामराज्य की स्थापना हेतु किए गए १ करोड सामूहिक रामनाम जप यज्ञ, महाधन्वंतरी यज्ञ, सनातन धर्मध्वज का आरोहण, इस महोत्सव की आध्यात्मिक विशेषताएं थीं ।
सांस्कृतिक धरोहर : इस अवसर पर राष्ट्रीय कीर्तनकार डॉ. चारुदत्त आफळे जी ने ‘युद्धाय कृतनिश्चयः’ यह कीर्तन प्रस्तुत किया । अधर्म के विरुद्ध युद्ध का समय आ गया है और धर्म तथा राष्ट्र रक्षा हेतु प्रत्येक को सक्रिय होना चाहिए, यही इस कीर्तन का संदेश था । इसके साथ ही महोत्सव में गायन और नृत्य कला के माध्यम से गुरु संकीर्तन किया गया ।
मूसलधार वर्षा में भी शतचंडी यज्ञ संपन्न : महोत्सव के तीसरे दिन महाधन्वंतरी यज्ञ संपन्न होने के पश्चात भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय हो, इस उद्देश्य से शतचंडी यज्ञ का आयोजन किया था । लेकिन उसी दिन गोवा में मूसलधार बारिश शुरू हो गई । मैदान में घुटनों तक पानी भर गया । फिर भी जिस मुख्य मंडप में शतचंडी यज्ञ चल रहा था, वहां वर्षा का एक बूंद पानी भी नहीं आया । शतचंडी यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हुआ ।
क्षात्रतेज का जागरण : शिवकालीन ऐतिहासिक और दुर्लभ शस्त्रों की भव्य प्रदर्शनी इस महोत्सव का मुख्य आकर्षण रही । इस प्रदर्शनी में धर्मवीर संभाजी महाराज को औरंगजेब द्वारा बंदी बनाते समय उपयोग में लाई गई मूल बेडियां (सांकल), सरदार येसाजी कंक की तलवार और सरदार कान्होजी जेधे का कवच, कोल्हापुर की सव्यासाची गुरुकुलम और पुणे की शिवाई संस्थान की शस्त्रप्रदर्शनी, गोवा के सौंदेकर घराने के प्राचीन शस्त्र इन ऐतिहासिक शस्त्रों का समावेश किया गया था ।
इसके साथ ही महोत्सव में भी छत्रपति शिवाजी महाराज के काल की युद्धकलाओं और आत्मरक्षा की रोमांचक प्रस्तुतियां की गईं । आज के समय में, जब कट्टरपंथी आतंकवादी भारत पर हमले कर रहे हैं, तब छत्रपति शिवाजी महाराज के रणकौशल और शौर्य की प्रेरणा ‘सनातन राष्ट्र’ की स्थापना के लिए बल प्रदान करनेवाली सिद्ध हुई ।
आध्यात्मिक पर्यटन को प्रोत्साहन : इस महोत्सव के लिए आए सनातनप्रेमियों ने इस अवसर का उपयोग गोवा के मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों की भेंट देकर किया, जिससे गोवा के आध्यात्मिक पर्यटन को समग्र रूप से प्रोत्साहन मिला । देश-विदेश से आए मान्यवरों पर यह प्रभावी रूप से सिद्ध हुआ कि गोवा ‘भोगभूमि’ नहीं, अपितु ‘योगभूमि’ है; और इसमें इस महोत्सव को बड़ी सफलता मिली ।
संक्षेप में कहें तो, सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव राष्ट्रीय स्तर पर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करनेवाला सिद्ध हुआ । साधना, शौर्य और देशभक्ति इस त्रिसूत्री पर खड़ा यह महोत्सव, उपस्थित जनसमुदाय में भारत को पुनः हिंदू राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करने का दृढ़ संकल्प जागृत करनेवाला रहा । यह शंखनाद, हिंदुओं के लिए आत्मविश्वास और दिशा देनेवाला रणघोष बना । महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र पर ‘पांचजन्य’ शंख फूंककर युद्ध का आरंभ किया और अधर्म का नाश कर धर्म की विजय प्राप्त की । शंख को विजय, समृद्धि, आनंद, शांति, प्रसिद्धि, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है । पवित्र परशुराम भूमि पर हुआ यह शंखनाद सनातन संस्कृति की विजय यात्रा का शुभारंभ सिद्ध होगा यह निश्चित है !
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