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सनातन संस्कृति के महान अध्येता और नुतनता के पक्षधर थे आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा

सनातन संस्कृति के महान अध्येता और नुतनता के पक्षधर थे आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा

  • जयंती पर डा प्रेम नारायण सिंह की पुस्तक 'सनातन के वृहत्तर आयाम' का हुआ लोकार्पण, हुई लघुकथा-गोष्ठी
पटना, ६ जुलाई। हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के उद्भट विद्वान और महान साहित्य-सेवी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा वैदिक-साहित्य और सनातन संस्कृति के महान अध्येता थे। किंतु वे नुतनता और प्रगति के भी पक्षधर थे। उनका मानना था कि वेद-उपनिषद हमें जड़ नहीं, चेतन बनाते हैं और निरन्तर गतिमान रहने की प्रेरणा देते हैं। सनातन का अर्थ 'पुराना' मात्र नहीं, अपितु अत्यंत व्यापक है। उसका आयाम अत्यंत विस्तारित है।

यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आचार्य शर्मा की जयंती पर, विद्वान लेखक डा प्रेम नारायण सिंह की पुस्तक 'सनातन के वृहत्तर आयाम' के लोकार्पण एवं लघु-कथा-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य शर्मा कुछ थोड़े से महापुरुष में से एक थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, कला, संगीत जैसे मनुष्य के लिए सर्वाधिक मूल्यवान तत्त्वों के संरक्षण और विकास में खपा दिया। वे सच्चे अर्थों में संस्कृति और संस्कार के पक्षधर संस्कृति-पुरुष थे। साहित्य सम्मेलन स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता है कि वे सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे।

पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए, हिन्दी के मनीषी समालोचक और प्राध्यापक डा कुमार वीरेन्द्र ने कहा कि आज सनातन शब्द पर बहुत चर्चा में है। किंतु इसे ठीक से समझा नहीं गया है। वस्तुतः यह वेद की ऋचाओं पर आधारित जीवन-शैली और एक विशाल संस्कृति का नाम है। सनातन संस्कृति मनुष्य को देवत्त्व की ओर ले जाने वाली शक्ति है। लोकार्पित पुस्तक में ये विचार प्रकट हुए हैं, जिसमें अपेक्षा की गयी है कि सनातन को समझा जाए और उसे जीवन में उतारा जाए।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि आचार्य जी अंतर्रष्ट्रीय क्षितिज पर साहित्य के दिव्य नक्षत्र थे। पाणिनि की पीढ़ी के बाद आचार्य शर्मा जी ही ऐसे भाषाविद विद्वान, व्याकरणाचार्य और समालोचक हैं जो विश्व-साहित्य में अपना पाण्डित्य सिद्ध करते हैं।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि आचार्य शर्मा भारत के एक सांस्कृतिक-योद्धा थे। उनकी प्रतिभा बहु-आयामी थी।

इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने 'बोझ', डा पुष्पा जमुआर ने 'टिसुआ गया' शीर्षक से, विभा रानी श्रीवास्तव ने 'अंतर्कथा', शमा कौसर 'शमा' ने 'साध्वी का प्रेम', कुमार अनुपम ने ' चालाक दूरदर्शी', डा मीना कुमारी परिहार ने 'निरुत्तर', डा ऋचा वर्मा ने 'बाल श्रमिक', ईं अशोक कुमार ने 'अपराधी', शंकर शरण आर्य ने 'तुलसी' तथा इन्दुभूषण सहाय ने 'आज का विशेष' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने किया।

डा चन्द्र शेखर आज़ाद, डा प्रेम प्रकाश, अश्विनी कुमार, आदित्य शर्मा, सुरेंद्र झा, तुषार सिंह, तनुश्री, हर्षिता, दीपाली, दुःख दमन सिंह, हेमन्त कुमार सिंह मोहम्मद फ़हीम, सिकन्दर प्रसाद आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।


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