विश्व परिवार दिवस
आज १५ मई सन् २०२५ विश्व परिवार दिवस है। हर साल इस दिन विश्व परिवार दिवस अथवा अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य समाज में लोगों को परिवार की अहमियत बताना है। यह दिन परिवार के सदस्यों को आपसी मतभेद भुलाकर प्यार के साथ आपस में मिलजुल कर रहने के लिए प्रेरित करता है।
सर्व प्रथम वर्ष १९८९ में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में परिवार के महत्व पर चर्चा की गयी और इस दिन के महत्व को विश्व को समझाने के लिए एक दिन समर्पित किये जाने पर विचार किया गया। तत्पश्चात वर्ष १९९४ में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा १५ मई के दिन को हर साल विश्व परिवार दिवस अथवा अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाये जाने का फैसला लिया गया। तब से यह दिन हर साल विश्व परिवार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वैसे तो आज साधारणतया परिवार का मतलब पति पत्नी और बच्चों तक सीमित हो कर रह गया है। परंतु एक समय था जब हमारे भारतवर्ष में परिवार का मतलब सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह हुआ करता था। एक ही परिवार में साधारणतया तीन पीढ़ी अथवा इससे भी ज्यादा के लोग एक घर में तथा एक ही अनुशासन मेंऔर एक ही रसोईघर से संबंध रखते हुए सम्मिलित रहते थे तथा सम्मिलित संपत्ति का उपभोग करते थे। इस प्रकार भारतीय परिवार की मर्यादाएं और एक आदर्श परंपरा हुआ करतीं थीं। विश्व के किसी और समाज में गृहस्थ जीवन की इतनी पवित्रता और पिता पुत्र, भाई भाई एवं पति पत्नी के इतने स्थायी संबंधों का उदाहरण नहीं मिलता रहा है। इसके कुछ मुख्य कारण भी रहे हैं।
भारतवर्ष मुख्यतः कृषिप्रधान देश रहा है और इसकी बड़ी आबादी गांवों में बसती रही है। यहाँ की पारिवारिक संरचना प्रायः कृषि की आवश्यकताओं से प्रभावित रहा है। इसके अलावा परिवारों का एक जुट रहना हमारी प्राचीन परंपराओं और आदर्शों में भी निहित रहा है। घर का सबसे अधिक वयोवृद्ध पुरुष संयुक्त परिवार का कर्ता अथवा मुखिया हुआ करता रहा है। उसे घर का स्वामी कहा जाता रहा है। यह कर्ता परिवार के अन्य सदस्यों की सलाह से या उनके बिना ही पारिवारिक परंपरा के अनुसार परिवार में कार्य विभाजन, उत्पादन तथा उपयोग आदि की व्यवस्था करता रहा है। दूसरी तरफ घर की सबसे वयोवृद्ध नारी परिवार के महिला वर्ग की मुखिया होती रही हैं और जो काम घर की महिलाओं में बंटा हुआ रहता था, उसकी देख रेख और समुचित व्यवस्था करती थी। भोजन तैयार करना और बच्चों का देख भाल करना घर में महिलाओं का मुख्य काम हुआ करता था।
परंतु हमारे भारतीय समाज में एक ऐसा भी दिन आया जब पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर हमारे परिवार टूटने और विखरने लगे और संयुक्त परिवार का नामोनिशान आहिस्ता आहिस्ता मिटने लगा। इसका मुख्य कारण हमारी सनातन धर्म और गुरूकुल शिक्षा से नयी पीढ़ी का मुंह मोड़ना और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का अपने उपर व्यक्तिगत जीवन में व्यापक व्यवहार लाना है। हमने अपना स्थापित भारतीय संस्कृति एवं संस्कार को भुला दिया। हमने आधुनिक शिक्षा के प्रभाव में आकर संयुक्त परिवार से एकल परिवार बना दिया, जिसमें केवल पति पत्नी और एक या दो बच्चे शामिल हैं। हमने बुजुर्गों को अनदेखा करना शुरू कर दिया और अपने माता पिता को अपने से दूर रखने लगे। जिस संयुक्त परिवार में तिसरी पीढ़ी यानि दादा दादी जीवित रह गए हैं, उनकी तो कोई पुछ ही नहीं रह गई। आज नयी पीढ़ी के लड़के लड़कियां शिक्षा प्राप्त कर अब अपने अभिभावकों को समुचित इज्जत नहीं दे रहे हैं और भारतीय आदर्शों को भूल रहे हैं। लड़की लड़के की शादी से ही परिवार बनता है। लेकिन आज कल ऐसा भी देखने सुनने को मिलता है कि जब किसी लड़की का अभिभावक उसके लिए बर ढूंढने के लिए जाता है तो लड़की वैसे परिवार को प्राथमिकता देती है जिसमें उसके होने वाले सास ससुर जिन्दा न हों। ज्यादातर लड़कियां केवल होने वाले पति तक की ही ख्वाहिश रख रही हैं। उन्हें बड़ा परिवार तो कतई पसंद नहीं है। अब आप इस विश्व परिवार दिवस पर इस बदलते परिवेश में कौन सा संदेश लेकर उपस्थित होंगे और क्या संदेश इस नयी पीढ़ी को देना चाहेंगे। इस पूरे माहौल को देख कर और अनुभव कर हम आज भी निराश नहीं हैं और हम जानते हैं कि इस नयी पीढ़ी को भी परिवार की आवश्यकता एक दिन जरूर महशुस होगी, जब उनका सहयोग करने वाला न उनका कोई तथाकथित अपना होगा और न ही उनका पैसा उनका साथ देगा। फिर वो अपने त्याग किये गए परिवार के तरफ लौटने को बाध्य होंगे, अन्यथा अपने एकल परिवार को नष्ट कर देंगे।
इस पूरे प्रकरण का सुक्ष्म आकलन करने पर एक बात तो साफ है कि परिवार के बिना किसी को भी जीवन जीना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। यह परिवार ही है जो हमें समाज के साथ जोड़ता है।आज भी जब समाज में नयी पीढ़ी के लड़की लड़का से जब उसका परिचय समाज पुछता है, उस समय उसे अपने पुराने सम्मिलित परिवार के किसी गणमान्य पुरुष दादा , परदादा आदि का नाम ही बता कर उससे जुड़े रिश्ते से ही अपना परिचय बताना पड़ता है । यह हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देता है। परिवार बुरे से बुरे वक्त में हमारे साथ खड़ा रहता है। हमें जीवन के हर मोड़ पर परिवार की आवश्यकता होती है।
जय प्रकाश कुंवर
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