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हिन्दी के युग-प्रवर्तक साहित्यकार थे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

हिन्दी के युग-प्रवर्तक साहित्यकार थे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

  • जयंती पर डा सुषमा कुमारी की पुस्तक 'पटकथा लेखन में कौशल अभिव्यक्ति' का हुआ लोकार्पण,आयोजित हुई लघुकथा-गोष्ठी

पटना, ९ मई। अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान करने वाले युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार थे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी। हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायकों में वरेण्य आचार्य द्विवेदी के महान साहित्यिक अवदानों के कारण ही, उनकी साहित्य-साधना के युग को हिन्दी साहित्य के इतिहास में 'द्विवेदी-युग' के रूप में स्मरण किया जाता है। वे एक महान स्वतंत्रता-सेनानी,पत्रकार और समालोचक भी थे।

शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित द्विवेदी-जयंती पर आयोजित पुस्तक-लोकार्पण-समारोह एवं लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह बातें कही। डा सुलभ ने कहा कि, द्विवेदी जी ने साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' के माध्यम से हिन्दी का महान यज्ञ आरंभ किया था। इसके माध्यम से उन्होंने अनेक मनीषी साहित्यकारों को हिन्दी-सेवा के लिए प्रेरित किया तथा अपने मार्ग-दर्शन में अगणित नव साहित्य-रत्न गढ़े। उन्होंने 'अनुवाद' को भी इस हेतु एक बड़े उपकरण के रूप में उपयोग किया। विभिन्न भाषाओं की मूल्यवान कृतियों का अनुवाद कर उन्होंने हिन्दी का भंडार भरा।


इस अवसर पर लेखिका डा सुषमा कुमारी की पुस्तक 'पटकथा-लेखन में कौशल अभिव्यक्ति' का लोकार्पण भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी विकास वैभव ने किया। अपने उद्गार में श्री वैभव ने कहा कि इनदिनों पुस्तकों के खूब प्रकाशन हो रहे हैं। खूब लिखे भी जा रहे हैं। किंतु हिन्दी साहित्य के दिनकर, नेपाली, प्रेमचंद जैसे कवियों लेखकों की भाँति आज रचनाएँ नहीं हो रही। लेखन के प्रति आवश्यक निष्ठा और श्रम का अभाव हो रहा है। डा सुषमा कुमारी की लोकार्पित पुस्तक में अपेक्षित निष्ठा और श्रम लक्षित होता है। हम गौरवान्वित होंगे जब भविष्य में आचार्य द्विवेदी और दिनकर जैसे साहित्यकार देख सकेंगे।


बिहार विधान परिषद की पूर्व सदस्य और सुप्रसिद्ध विदुषी प्रो किरण घई ने लेखिका सुषमा कुमारी को बधाई देते हुए कहा कि लेखिका ने कृत्रिम प्रज्ञा के इस आधुनिक युग में श्रम कर सामग्री जुटा कर 'पटकथा-लेखन' के संबंध में जो पुस्तक लिखी है, उसका स्वागत होना चाहिए। यह एक अवसर सृजित करने वाली विधा है। इससे रोज़गार के अवसर बनते हैं।


वरिष्ठ कवयित्री डा भावना शेखर ने आचार्य द्विवेदी पर अपना आलेख पढ़ते हुए कहा कि वे साहित्य के एक ऐसे वट-वृक्ष थे, जिनके साए में हिन्दी के अनेक पौंध पल्लवित और पुष्पित हुए। वे बड़े स्वाभिमानी और उतने ही विनम्र भी थे।


अपने स्वागत संबोधन में सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि हिन्दी काव्य-साहित्य के इतिहास में बीसवीं सदी के प्रथम दो दशक को 'द्विवेदी-युग' के नाम से जाना जाता है। द्विवेदी जी हिन्दी के एक ऐसे कीर्ति-स्तम्भ थे, जिस पर आधुनिक हिन्दी का महल खड़ा हुआ।


सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, जगत नारायण महिला महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो मधुप्रभा सिंह, अवकाश प्राप्त संयुक्त सचिव चंद्रशेखर प्रसाद सिंह, प्रो नागेन्द्र कुमार शर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, लेखिका विभा रानी श्रीवास्तव ने 'उजाले में' , शमा कौसर 'शमा' ने 'पश्चाताप', डा रमाकान्त पाण्डेय ने 'आतिशवाजियाँ', कुमार अनुपम ने 'हिन्दी प्रेम', डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने 'हालचाल', शंकर शरण आर्य ने 'हीरे का मूल्य, रौली कुमारी ने 'चार धाम यात्रा', मधु दिव्या ने 'लाश की हत्या', नीता सहाय ने 'निरुत्तरित प्रश्न' तथा कमल किशोर वर्मा 'कमल' ने 'ज़िम्मेवार कौन' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया।

मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो सुशील कुमार झा ने किया। वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, वीरेंद्र दूबे, सम्मेलन की संगठन मंत्री डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, कमल नयन श्रीवास्तव, हिमांशु दूबे, चंदा मिश्र, नेहाल कुमार सिंह 'निर्मल', प्रो दिलीप कुमार सिंह, डा राज नारायण सिंह, आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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