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दिव्य रश्मि मेरी नज़र में:-डॉ. अजित कुमार पाठक, अध्यक्ष, टैक्स पेयर्स फोरम

दिव्य रश्मि मेरी नज़र में:-डॉ. अजित कुमार पाठक, अध्यक्ष, टैक्स पेयर्स फोरम

दिव्य रश्मि पत्रिका की यात्रा मेरे हृदय के अत्यंत समीप है। इसने अपने शैशवकाल से लेकर आज 12वीं वर्षगांठ तक जो यशस्वी यात्रा की है, वह न केवल अनुकरणीय है बल्कि प्रेरणास्पद भी है। यह कोई सामान्य पत्रिका नहीं, बल्कि एक चेतना है—एक सशक्त माध्यम है, जो समाज को धर्म, संस्कृति, अध्यात्म और भारतीय सनातन मूल्यों से जोड़ता है। यह वह रश्मि है जो अंधकार में भी प्रकाश की दिशा दिखाती है।

मेरी दृष्टि में अब दिव्य रश्मि का शैशव काल समाप्त हो चुका है और वह किशोरावस्था की परिपक्वता में प्रवेश कर चुकी है। इस बीच इसकी यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए, छोटे-बड़े झंझावात भी आए, लेकिन दिव्य रश्मि कभी रुकी नहीं, कभी झुकी नहीं। वह अपने कर्तव्यपथ पर चरैवेति-चरैवेति की भावना के साथ आगे बढ़ती रही। यह उसका असली तेज है—उसका दिव्यत्व है।

पत्र-पत्रिकाओं की भीड़ में अपनी विशिष्ट पहचान बनाना कोई आसान कार्य नहीं है, लेकिन दिव्य रश्मि ने यह करके दिखाया है। इसने अपने पहले अंक से ही पाठकों को आकर्षित किया है। धर्म, अध्यात्म, महापुरुषों, क्रांतिकारियों और ऋषि-मुनियों की जीवन गाथाएं जिस संजीवनी के साथ इसमें प्रस्तुत होती हैं, वह अपने आप में बेजोड़ है। आज भारत में शायद ही कोई दूसरी पत्रिका हो, जिसमें इतने विविध विषयों की इतनी गहराई से विवेचना की जाती हो।

दिव्य रश्मि का सम्पादकीय खंड तो अत्यंत विशेष है। उसमें समकालीनता के साथ-साथ ऐतिहासिक और दार्शनिक दृष्टिकोण का ऐसा समन्वय देखने को मिलता है, जो पाठकों को न केवल जानकारी देता है बल्कि उन्हें विचार और चिंतन की दिशा भी प्रदान करता है। हर आलेख पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी होता है।

इस पत्रिका के आवरण पर देवी-देवताओं, ऋषियों और महामानवों के चित्रों की उपस्थिति इसे और भी दिव्य बना देती है। यह न केवल एक दृश्य सौंदर्य प्रस्तुत करता है बल्कि एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार भी करता है। यह पत्रिका आमजनों और खासजनों दोनों के लिए एक समान उपयोगी है। इसमें व्रत-त्योहार, पूजापाठ, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिक्षा, दर्शन, साहित्य, और यहाँ तक कि अर्थशास्त्र से संबंधित भी अनेक उपयोगी सामग्री होती है।

आज जब बाज़ारवाद और टीआरपी की दौड़ में पत्र-पत्रिकाएं अपने मूल उद्देश्य से भटक गई हैं, तब दिव्य रश्मि इस प्रदूषित धाराओं से अलग होकर निर्मल और पवित्र विचारों की गंगा बनकर बह रही है। इसमें राजनीति की गंदगी से दूर रहकर शुद्ध भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों का संवाहन किया जा रहा है। यही कारण है कि इसके पाठक कम भले हों, लेकिन जो भी हैं, वे अत्यंत जागरूक, सधे-सधाए और विवेकशील हैं।

वर्तमान मई माह का अंक मेरे पास है, और इसमें प्रकाशित दो आलेखों ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया—पहला ‘चक्रवर्ती सम्राट महाराणा प्रताप के समय और उसके बाद का भारत’ और दूसरा ‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अनमोल निधि—सावरकर’। क्या ऐसे गंभीर और शोधपरक आलेख किसी अन्य पत्रिका में मिलते हैं? शायद नहीं। और यह केवल उदाहरण मात्र है। यदि आप पिछले अंकों के पन्ने पलटें, तो आपको ऐसे कई अनछुए विषयों पर गहन आलेख मिलेंगे।

दिव्य रश्मि की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी निरंतरता, इसकी प्रतिबद्धता और इसकी गुणवत्ता। बारह वर्षों की यह यात्रा कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। यह एक युग की यात्रा है। यह वह युग है, जिसमें हमने अपने चारों ओर संस्कृति के ह्रास और मूल्यों के पतन को भी देखा है, परंतु इसी युग में दिव्य रश्मि ने संस्कृति के दीप को प्रज्वलित रखा। वह दीप जो हर अंक के साथ और भी तेजोमय होता गया।

मैं इस पत्रिका का आरंभ से पाठक रहा हूँ, और मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि इसका स्तर कभी नहीं गिरा। इसका प्रत्येक अंक एक विशेषांक जैसा ही प्रतीत होता है। दुर्गा पूजा के समय माँ दुर्गा की आराधना, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि, सरस्वती पूजा आदि अवसरों पर विस्तृत और पद्धतिपूर्वक प्रस्तुत लेख एक शोध की तरह होते हैं। अगर हम यह कहें कि दिव्य रश्मि साल भर विशेषांक ही छापती है, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इस पत्रिका की एक और विशेषता इसका समय पर प्रकाशित होकर पाठकों तक पहुँचना है। यह ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब अनेक पत्रिकाएं विलंब से या अनियमित रूप से प्रकाशित होती हैं। नियमितता और गुणवत्ता दोनों का समन्वय दिव्य रश्मि की सफलता की कुंजी है।

हिंदू देवी-देवताओं और महापुरुषों के चित्रों से सुसज्जित आवरण-पृष्ठ इसकी भव्यता को बढ़ाते हैं। इसकी आभा देखते ही बनती है। यह केवल एक पत्रिका नहीं, एक संकल्प है। एक सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान है। और इसके संपादक डॉ. राकेश दत्त मिश्रा जी न केवल एक कुशल सम्पादक हैं, बल्कि एक समर्पित विचारक, साहित्यप्रेमी और राष्ट्रभक्त भी हैं। उनका प्रयास इस पत्रिका को एक आंदोलन का स्वरूप देने में सफल रहा है।

मैं यह भी कहना चाहूँगा कि यदि आयुर्वेद, योग, भारतीय चिकित्सा पद्धतियों और ऋषियों-महर्षियों की जीवन गाथाएं भी नियमित रूप से प्रकाशित की जाएं, तो यह पत्रिका न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक अनूठी पहचान बना सकती है। इसके लिए पाठकों और शुभचिंतकों का सहयोग आवश्यक होगा।

दिव्य रश्मि की इस अनूठी उपलब्धि के लिए मैं इसके संपादक, सह-संपादक, प्रकाशक, लेखक, सलाहकार, वितरणकर्ता और सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। यह पत्रिका उत्तरोत्तर पुष्पित-पल्लवित हो और इसकी रश्मि संपूर्ण भारतवर्ष ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में फैले, यही मेरी मंगलकामना है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज जब सामाजिक मूल्यों, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं को कमजोर करने के प्रयास हो रहे हैं, तब ऐसी पत्रिकाएं हमारी पहचान, हमारी जड़ों को मजबूत करती हैं। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर की तरह है।

हमारी दिव्य रश्मि की 12वीं वर्षगांठ की यह बेला केवल उत्सव का अवसर नहीं, आत्ममंथन और पुनः संकल्प का समय भी है। हमें विचार करना होगा कि कैसे हम इस प्रकाश को और फैलाएं, और भी घरों तक पहुँचाएं, और भी मनों को आलोकित करें। यह कार्य तभी संभव है जब हम सभी पाठक और शुभचिंतक मिलकर इसका विस्तार करें, इसके प्रसार में भागीदार बनें।

अंत में एक बार पुनः सम्पूर्ण दिव्य रश्मि परिवार को इस गौरवशाली उपलब्धि के लिए हृदय से शुभकामनाएं देता हूँ। मेरी यही कामना है:

"दीप से दीप जलता जाए, रश्मियों से आलोक फैलता जाए। दिव्य रश्मि बनकर यह पत्रिका हर घर में संस्कारों का दीप जलाए।"

🌸 जयतु दिव्य रश्मि! जयतु सनातन संस्कृति! 🌸 
संपर्क: डॉ. अजित कुमार पाठक अध्यक्ष, टैक्स पेयर्स फोरम मकान संख्या—40, गांधी नगर, बोरिंग रोड, पटना—800001
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