2021: कब है हरतालिका तीज? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा के नियम:-
हरतालिका तीज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. हरतालिका तीज को तीजा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है. इस बार हरतालिका तीज 9 सितंबर दिन गुरुवार को मनाई जाएगी. इस दिन सुहागिन स्त्रियां निर्जल और निराहार रहकर अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं.
हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त:-
तृतीया तिथि 8 सितंबर 2021 दिन बुधवार को रात्रि 3:59 से 9 सितंबर 2021 दिन गुरुवार रात्रि 2:14 तक है अतः गुरुवार को तीज का पूजन करना पूरा दिन शुभ रहेगा ।
(कृपया ध्यान दें सरगी का समय बुधवार रात्रि 3:59 से पहले सरगी कर ले)
हरतालिका तीज पूजन विधि:
इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू, रेत या काली मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा जाता है. पूजा के स्थान को फूलों से सजाएं और एक चौकी रखें. इस पर केले के पत्ते बिछाएं और भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें. इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार विधि से पूजन करें. इसके बाद माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाएं और भगवान शिव को धोती और अंगोछा चढ़ाएं. बाद में ये सभी चीजें किसी ब्राह्मण को दान दें. पूजा के बाद तीज की कथा सुनें और रात्रि जागरण करें. अगले दिन सुबह आरती के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें.
हरतालिका तीज व्रत का महत्व:
हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है. माना जाता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है. माना जाता है कि हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था. माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. तभी से मनचाहे पति की इच्छा और लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. इस व्रत पर सुहागिन स्त्रियां नए वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं.
तीज व्रत का पारण का समय:--
10 सितंबर 2021 दिन शुक्रवार को प्रातः जितना जल्दी सुबह में आप चाहे पारण कर सकते हैं। पारण का समय में कोई बंधन नहीं है।
जिन व्रतियों के पास हरतालिका व्रत कथा का पुस्तक उपलब्ध नहीं उनके लिए यहां पर भी हरतालिका व्रत कथा उपलब्ध है
अथ श्री हरतालिका व्रत कथा
एक समय की बात है सूत जी कहते हैं मंदार की माला से जिन पार्वती जी का केसपास अलंकृत है ।और मुन्डो की माला से जिन शिवजी की जटा अलंकृत है ।जो पार्वती दिव्यवस्त्र धारण की है और शिव जी दिगंबर है पार्वती जी और शिव जी को मैं प्रणाम करता हूं।
कैलाश पर्वत के शिखर पर बैठी हुई श्री पार्वती जी ने कहती हैं की हे महेश्वर हमें कोई गुप्त वत्त या पूजन बताइए जो सब धर्मों से सरल हो जिसमें परिश्रम भी कम करना पड़े लेकिन फल अधिक मिले हे नाथ यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो यह विधान बताइए।
शिव जी बोले
हे देवी सुनो मैं तुमको एक व्रत जो मेरा सर्वस्व और छिपाने योग्य है लेकिन तुम्हारे प्रेम के वशीभूत होकर मैं तुम्हें बतलाता हूं जिस व्रत के प्रभाव से तुमने मेरा आधा आसन प्राप्त किया है। वह मैं तुमको बताऊंगा। क्योंकि तुम मेरी प्रियसी हो भाद्रपद शुक्ल पक्ष में हस्त नक्षत्र से युक्त शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को इस व्रत का अनुष्ठान मात्र करने से स्त्रियां सब पापों से मुक्त हो जाती है हे देवी तुमने आज से बहुत दिनों पहले हिमालय पर्वत पर एक वत्त किया था। वह व्रत का वृतांत में तुमसे कहूंगा ।पार्वती जी ने पूछा कि हे नाथ मैंने क्यों यह व्रत किया था। यह सब आपके मुंह से सुनना चाहती हूं । भगवान शिव ने कहा की हे पार्वती उत्तर की ओर एक बड़ा रमणीक और पर्वतों में श्रेष्ठ हिमवान नामक पर्वत है ।हे पार्वती तुमने बाल अवस्था में उसी पर्वत पर तपस्या की थी 12 वर्षों तक तुम उल्टी टंग कर केवल धुआं पी कर रही 64 वर्षों तक सूखे पत्ते खाकर के रही ।माघ मास में तुम जल में बैठी रहती और वैशाख की दुपहरीया में पंचाग्नि तपती थी ।श्रावण महीने में जल बरसता तो उस समय तुम भूखी प्यासी रहकर खुले मैदान में बैठी रहती थी। तुम्हारे पिता यह इस तरह के कष्ट सहन को देखकर बड़े दुखी हुए । वे चिंतित भी हुए। और अपनी कन्या किसको दूं। यह विचार करने लगे। उसी समय नारद जी वहां पर आ पहुंचे। मुनि श्रेष्ठ नारद जी उस समय तुम्हें देखने गए थे। नारद जी को देखकर हिमवान बोले कि स्वामी आप किसलिए आए हैं। मेरा अहोभाग्य है कि आपका आगमन मेरे लिए बहुत अच्छा है । नारद जी ने कहा कि पर्वतराज सुनो मैं भगवान विष्णु का भेजा हुआ दूत बनकर आपके पास आया हूं। आपकी कन्या रत्न पार्वती बहुत ही सुंदर सुशील एवं तपस्विनी है हमेशा तपस्या मे लीन रहती है । इसके लिए वर ढूंढना चाहिए पार्वती के लिए ब्रह्मा विष्णु शिव या इंद्र के जैसा वर होना चाहिए । इसलिए मैं यही कहूंगा कि आप अपनी कन्या भगवान विष्णु को ही दें । हिमवान ने कहा भगवान विष्णु ने
स्वयं मेरी कन्या रत्न को मांग किए हैं और आप संदेश लेकर आए हैं तो मैं कन्यादान उन्हीं को दूंगा यह मेरे तरफ से पक्का समझें हिमवान की इतनी बात सुनकर नारदजी आकाश मार्ग में विलीन हो गए और विष्णु लोग पहुंच गए वहां हाथ जोड़कर नारद जी भगवान विष्णु से कहा सुनिए मैंने आपका विवाह का कार्य पक्का कर के आआ हूं । उधर पर्वतराज ने पार्वती के पास जाकर कहा कि पुत्री मैंने तुम्हारा विवाह विष्णु जी के साथ तय कर दिया हुं ।तब पिता की बात सुनकर पार्वती कोई उत्तर नहीं दी ।और चुपचाप अपना घर से प्राण त्याग करने के लिए निकल पड़ी। मार्ग में सखियां मिल गई और दुखी देखकर पार्वती से कहने लगी कि हे सखी पार्वती तुम इस तरह से दुखी होकर के कहां जा रही हो। पार्वती बोली की है सखी हमारे पिताजी मेरा विवाह विष्णु जी के साथ तय कर चुके हैं । और मैं भगवान शिव के साथ विवाह करना चाहती हूं इसमें कोई संशय नहीं है। वे नारद जी को वचन भी दे चुके हैं अब मैं धर्म संकट में पड़ गई हूं कि इधर पिता का दिया हुआ वचन और इधर मेरा तपस्या का क्या होगा इसलिए मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रही हूं इस कारण से मैं प्राण को त्याग करूंगी।
ऐसा सुनकर सखियां बोली हे पार्वती तुम प्राण को त्याग ना करो। हम लोग ऐसे घोर जंगल में चलेंगे। जहां पर हम लोगों को कोई भी पता नहीं लगा पाएगा । और वही पर हम लोग सब मिलकर के भगवान शिव को तपस्या करेंगे। और वे जब तक आ करके तुम्हें अर्धांगिनी नहीं बनाएंगे। तब तक हम लोग वापस नहीं लौटऊंगी सखियां का वचन सुनकर पार्वती सखियों के साथ घोर जंगल में चली गई। इधर हीमवान बहुत चिंतित हुए।और मन ही मन सोचने लगे कि मैं नारद जी के आगे प्रतिज्ञा कर चुका हूं कि मैं अपनी पुत्री भगवान विष्णु को दे दूंगा ऐसा सोचते सोचते हीमवान मूर्छित हो गये। गिरिराज को मूर्छित देख कर के सब लोग हाहाकार कर दौड़ पड़े जब होश आया तो सबने पूछने लगे किसे गिरिराज आप अपने मूर्छा का कारण बताइए ।हिमवान ने कहा कि आप लोग मेरे दुख: का कारण सुने ना मालूम कौन मेरी कन्या को हरण कर लिया है। ऐसा नहीं हुआ तो उसे किसी काले सांप ने काट लिया या सिंह व्याघ्र ने खा गया हाय हाय मेरी बेटी कहां गई किसी दुष्ट ने मेरी पुत्री को मार डाला । ऐसा कहकर कि में वायु के झोंकों की तरह कापते हुए वृक्ष के सामान कापने लगे। इसके बाद वे जंगल की ओर खोजने के लिए चले गए।
उधर तुम सखियों के साथ चलती हुई ऐसे घनघोर जंगल में पहुंची जहां एक नदी बह रही थी ।और उसके रमणीय तट पर एक बड़ी गुफा थी तुमने उस गुफा में आश्रम बना लिया । और सखियों के साथ बालू की प्रतिमा का मूर्ति बनाकर के निराहार रह कर के और भगवान शिव की आराधना करने लगी जब भाद्रपद शुक्ल पक्ष की हस्त युक्त तृतीया तिथि आया तब तुमने मेरा विधिवत पूजन किया और रात भर जागरण कर गीत वाद यादि से मुझे प्रस पसन्न करने में बिताया प्रातः काल मेरा आसन डगमगया और मैं उठ खड़ा हुआ मैं ने कहा कि हे पार्वती मैं तुम्हारे तपस्या से अति प्रसन्न हूं तुम वर मांगो ।पार्वती बोली कि ही देवता यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं। तो आप मेरे पति बने भगवान शिव बोले तथास्तु ऐसा कह कर के कैलाश पर्वत पर वापस चले गए। प्रातः काल जब नदी में बालू की प्रतिमा विसर्जित करने के लिए गई और सखियों के साथ उस वत्त का पारण किया । हिमवान भी तब उस समय वन में खोजते हुए वहां पर पहुंचे । चारों दिशाओं में तुम्हारी खोज करते करते व्याकुल हो चुके थे इसलिए तुम्हारे आश्रम के समीप पहुंचते ही गिर पड़े थोड़ी देर बाद उन्होंने नदी के तट पर दोनों कन्याओं को सोते हुए देखा देखते हैं उन्होंने तुम्हें छाती से लगा लिया और बिलख कर रोने लगे । और पूछा कि पुत्री तुम इस तरह से घोर जंगल में बिना कहे हुए क्यों चली आई पार्वती ने उत्तर दिया कि पिताजी मैंने पहले ही आपको शिव जी के हाथों सौंप दिया था आपने मेरा विवाह विष्णु जी के साथ कर देना चाहते थे यह हमारे लिए विपरीत था इसलिए मैं प्राण त्याग करने के लिए घर से निकली थी लेकिन सखियां ने मुझे इस गुफा में ले आई और यहां पर मैं भगवान शिव का पूजन की उस से प्रसन्न होकर के मुझे वरदान भी दिए मैं सखियों के साथ हरि गई इसलिए इस वत्त का नाम हरतालिका पड़ा। पार्वती बोली पार्वती बोली कि हे भगवान आपने व्रत का नाम तो बता दिया अब यह बताने का कष्ट करें कि इस व्रत का क्या पुण्य है क्या फल है, यह व्रत कौन करें। शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि हे देवी मै समस्त स्त्री जाति की भलाई के लिए यह व्रत बतलाया हूं जो स्त्री अपने सौभाग्य की रक्षा करना चाहती है। वह पूर्वक इस व्रत को करें शिव पार्वती का बालु प्रतिमा स्थापित करें उस रोज दिनभर उपवास कर बहुत से सुगंधित फूल सुगंध और मनोहर धूप नाना प्रकार के नैवेध यादि एकत्र कर पूजन करें ।रात में जागरण करें। और प्रार्थना करें कि पार्वती मुझे राज्य दे ,सौभाग्य दें। मुझ पर प्रसन्न होंवें। फिर एकाग्र चित्त होकर कथा का श्रवण करें । जो स्त्री इस प्रकार से बत्तपूजन करती है। वह सब पापों से छूट जाती है और उसे सात जन्म तक सुख और सौभाग्य प्राप्त होती है। जो स्त्री तृतीया के दिन व्रत ना कर अन भक्षन करती है वह सात जन्म तक बंध्या रहती है। और बार-बार विधवा होना पड़ता है। वह सदा दरिद्र पुत्रशोक वाली होती है। स्वभाव से लड़ाकी तथा दुख भोगने वाली होती है ।और उपवास ना करने वाली स्त्री अंत में घोर नरक में जाती है ।आज के दिन मांसाहार करने से बाघीन होती है। दही खाने से बिल्ली होती है, मिठाई खाने से चिट्टी होती है, बहुत कुछ खाने से मक्खी होती है, तीज के दिन अन्न खाने से शुअर होती है। फल खाने से बंदरिया होती है। पानी पीने से जोक होती है दूध पीने से विल्ली होती है। रात में सोने से अजगर सापिन होती है। पति को धोखा देने से मुर्गी होती है। इसलिए सभी स्त्रियों को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए दूसरे दिन सोना तांबा या चांदी या बास के पात्र में अन वस्त्र भरकर आभूषण सहित ब्राह्मण को दान कर पारण करें जो स्त्री इस प्रकार के व्रत को करती है वह अखंड सौभाग्यवती होती है।
गणेश जी महाराज की जय,
प्रेम से बोलो शंकर भगवान की जय, पार्वती मैया की जय
मैं भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती जी से प्रार्थना करता हूं कि आप सभी स्त्रियां सदा सौभाग्यवती रहे🙏🙏🙏 आप सभी का कल्याण हो
पंडित कन्हैया तिवारी मीठापुर पटना
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