नव पल्लवित पुष्पित धरा,चहुँ ओर बिखरी है छटा

नव पल्लवित पुष्पित धरा
चहुँ ओर बिखरी है छटा
वृक्षों ने नूतन वस्त्र धारे
खिलती कली भंवरा निहारे
बुलबुलों ने जब फुदक कर
कोयलों सा गीत गाया
तब लगा कि बसंत आया।
पत्तियों ने वृक्ष की
डाली पे डाला है बसेरा
चंद्रमा की गोद में
अठखेलियां करता सवेरा
तितलियों ने फूल के
सीने में अपना सिर छुपाया
तब लगा कि बसंत आया।
पंथ पर चलती हुई चीटी
छिटक कर दूर भागी
एक चीटे के लिए सौ
चीटियों की लीक त्यागी
मन का स्पंदन हुआ और
प्रीति ने संबल सजाया
तब लगा कि बसंत आया।
हर्षित हरितिमा पुष्प पीले
ओढ़ बैठी खेत पर
स्वर्ण आभूषण पहन कर
धूप लेटी रेत पर
ओस कण ने मोतियों का
भान सहसा जब कराया
तब लगा कि बसंत आया।
अंक में भरकर कुहाँसा
शीत ने ले ली बिदाई
दूर बैठी प्रियतमा को
प्रिय की अपने याद आयी
रवि लपेटे स्वर्ण किरणें
कोहरे को चीर आया
तब लगा कि बसंत आया।
पंख तोते ने झिड़क कर
प्रेयसी को चोंच मारी
सिर झुका कर गड़ गयी वह
लाज के मारे बिचारी
पंछियों ने वृक्ष बदले
नीड़ को फिर से सजाया
तब लगा कि बसंत आया।
व्योम विचरण चंद्र करते
नभ के तारे आह भरते
बादलों के झुण्ड आतुर
बूंद बन कर आ बरसते
धुंध में लिपटी धरा पर
गुनगुना अहसाह आया
तब लगा कि बसंत आया।
रुक जा बेटे आ रही हूँ
थाल तेरी ला रही हूँ
केश को अपने सुखाकर
छत पे बैठी माँ ने आकर
बाजरे की रोटियों संग
साग सरसों का खिलाया
तब लगा कि बसंत आया ।
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(रवि प्रताप सिंह,कोलकाता)
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2 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
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