
बिहार में नेपाल बॉर्डर से सटे हुए एक छोटे गांव के गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था अशोक मिश्रा का। परिवार के पास न तो कोई जमीन थी और न ही कोई व्यापार। अशोक मिश्रा के पिता पूजा-पाठ करके परिवार का भरण-पोषण करते थे। परिवार में शिक्षा का बहुत ही महत्व था। पिता चाहते थे अशोक मिश्रा पढ़-लिखकर कोई अच्छी नौकरी कर ले।
उन्हें पता था कि शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है जिसके बलबूते पर गरीबी के दलदल से निकला जा सकता है। अशोक मिश्रा ने खूब मेहनत की। जहां तक हो सका पढ़ाई की लेकिन, कोई नौकरी नहीं लगी। नेपाल में भी जा कर किस्मत आजमाई लेकिन, यहां भी उनके हाथ निराशा ही लगी। बहुत मशक्कत के बाद रक्सौल में एक प्राइवेट कंपनी में छोटी सी नौकरी मिल गई। कुछ दिनों बाद उनकी शादी हो गई और फिर दो बच्चे भी हो गए।
अशोक मिश्रा को पैसे इतने ही मिलते थे कि दाल-रोटी चल सके। बावजूद इसके उन्होंने सोच लिया था कि भले ही आर्थिक तंगी है लेकिन, अपने बच्चों को पढाएंगे जरूर। पत्नी मीना मिश्रा ने भी अपने पति की इस मुहिम में साथ देने का वादा किया। छोटी सी उम्र से मीना मिश्रा ने अपने बेटे विकास कुमार को अपनी क्षमता के अनुसार पढ़ाना शुरू कर दिया।
विकास जब स्कूल जाने लायक हो गया तो उसके माता-पिता ने शहर के सबसे नामी-गिरामी स्कूल में दाखिले के उद्देश्य से वहां टेस्ट दिलवाया। उन्हें पता था कि स्कूल में एडमिशन इतना आसान नहीं है। बावजूद इसके विकास का चयन हो गया। इस खुशी के संदेश से भी परिवार को काफी तकलीफ मिली। कारण यह कि चयन तो हो गया था लेकिन, एडमिशन के लिए पैसे नहीं थे।
अंत में हार कर माता-पिता ने विकास का एडमिशन एक छोटे से स्कूल में करवा दिया। विकास खूब मन लगाकर पढ़ने लगा। विकास बताता है कि नाश्ते में उसे दूध के साथ बिस्किट खाने में बहुत अच्छे लगते थे। लेकिन धीरे-धीरे आर्थिक परेशानियां इतनी बढ़ गईं कि परिवार के पास दूध के लिए भी पैसे जुटने मुश्किल हो गए। इस हालत में स्कूल जाते वक्त मीना मिश्रा अपने बेटे विकास को पानी में भिगोकर बिस्कुट खिला दिया करती थीं।
कुछ और समय बीता और अब विकास सातवीं कक्षा में पहुंच गया था। अब मीना मिश्रा के लिए विकास को पढ़ाना संभव नहीं हो पा रहा था। आस-पास के बच्चे शाम को ट्यूशन पढ़ने जाते थे लेकिन, विकास पैसों की कमी के चलते सेल्फ-स्टडी से ही काम चला लेता था। बिना ट्यूशन ही वह अपने क्लास में हमेशा फर्स्ट आता था। मां को आगे की पढ़ाई की चिंता सता रही थी लेकिन, जब विकास आठवीं में पहुंचा तब मां को सुपर 30 के बारे में पता चला। मीना मिश्रा को इससे एक आशा की किरण नजर आई।
दसवीं-बोर्ड पास करने के बाद विकास सीधे मेरे पास आया। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर मैंने उसे सुपर 30 ग्रुप में शामिल कर लिया। वह बहुत मेहनती था। बातचीत के दरम्यान बचपन की कहानी सुनाया करता था। जैसे-जैसे आईआईटी प्रवेश परीक्षा का समय नजदीक आ रहा था विकास पढ़ाई के प्रति और गंभीर होता जा रहा था। विकास का एडमिशन एनआईटी हुआ। वर्तमान में वह एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा है। विकास की इच्छा है कि आने वाले समय में वह ऐसे बच्चों की मदद करें जो पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन, उनके पास सुविधाएं नहीं हैं, संसाधन नहीं हैं।
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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/the-expenditure-of-the-house-was-hardly-going-on-but-the-engineer-made-of-nit-was-scolding-127653344.html
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