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किसानों को मिली दूसरी आज़ादी

किसानों को मिली दूसरी आज़ादी 

- प्रेमेन्द्र कुमार मिश्र 
केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादों से सम्बंधित तीन अध्यादेश ला कर उन गंभीर बुनियादी सवालों के समाधान प्रस्तुत किये हैं जिनसे आधुनिक भारत के किसान छह दशकों से जूझ रहे थे. इन अध्यादेशों ने किसानों को मंडियों, इंस्पेक्टर राज और बिचौलियों के सुगठित तंत्र से न केवल आजादी दिलाई है बल्कि कृषि को लाभदायक बनाने की दिशा में ढेर सारी उम्मीदें भी जगा दी हैं. यकीनन केंद्र के इन बेहद महत्वपूर्ण क़दमों का असर कृषि के बुनियादी ढांचे पर पड़ेगा और हम बेहद जल्द उन परिवर्तनों के साक्षी बनेंगे जो कृषि क्षेत्र में दुर्लभ हैं. ये तीन कदम देश के कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति के बाद सबसे प्रभावशाली संरचनात्मक बदलाव हैं. 

देश के किसानों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या उनकी बढती लागत के अनुरूप उपज की कीमत का न मिल पाना रहा है. इसने धीरे धीरे कृषि को अलाभदायक अथवा अल्प लाभदायक स्थित में ला दिया जिसकी वजह से किसान परेशान होते रहे. किसानों के पास अपनी फसल बेचने के विकल्प सीमित थे और इन विकल्पों पर भी मंडियों और बिचौलियों का काफी प्रभाव रहा जिससे कभी भी वास्तविक लाभ किसानों तक नहीं पहुँच पाया . ऐसे में सारी उम्मीद केवल सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आ कर टिक जाती थी. बिचौलियों, मंडियों और बाबुओं की तिकड़ी ने ऐसी स्थिति बनाये रखी जहाँ सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य ही किसानों की उपज के लिए अधिकतम मूल्य हो गया था. ऐसी दशा में किसानों का सारा दबाव फसल की सरकारी खरीद पर ही केन्द्रित होने लगा. बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्यों में तो सरकारी खरीद ही उचित मूल्य मिलने की एकमात्र सम्भावना बच गयी थी. हालत इस स्तर पर आ गए कि किसानों से जुड़े संगठन सम्पूर्ण उपज का 80 फीसदी तक सरकारी खरीद करने की मांग करने लगे क्योंकि सरकारी खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य जितना भी किसानों को कही नहीं मिल पा रहा. इस दबाव ने अलग तरह की जटिलताओं को जन्म दिया क्योंकि लगभग सारी उपज की सम्पूर्ण खरीद सरकार द्वारा कर लेना न तो संभव था न व्यावहारिक. इसकी वजह से खेती लगातार घाटे का सौदा होती चली गई. बिहार जैसे इलाके में जहां कृषि प्रमुख आर्थिक गतिविधियों में शामिल है वहां एकोमोडेशन की संभावना के बावजूद घटते मुनाफे ने श्रमिकों के पलायन जैसी समस्या को जन्म दिया है. अगर हम कृषि को ज्यादा लाभदायक बना देते हैं तो श्रमिकों के पलायन जैसी स्थितियों का सामना करना नहीं पडेगा. 

दुर्भाग्यवश पिछले दशकों में इस स्थिति को बदलने की दिशा में कभी गंभीर प्रयास नहीं किये गए. सरकारी खरीद की मात्रा बढ़ा कर, न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर अथवा उस पर बोनस दे कर ही किसानों को फौरी लाभ देने की सतही कोशिशें हुईं, पर बुनियादी विपणन ढांचे की खामियों को दूर कर दीर्घकालीन संरचनात्मक सुधार के प्रयास बिलकुल नहीं किये गए. अगर इस पृष्ठभूमि में देखें तो केंद्र सरकार के ये तीन अध्यादेश बेहद क्रान्तिकारी बदलाव लाते दिख रहे हैं, जहाँ किसानों को तीन स्तरों पर सशक्त किया जा रहा है. 

केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन अध्यादेश 2020 के तहत कृषि उत्पादों को इस अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया है. चीनी, तेल, अनाज, आलू, प्याज जैसी कृषि उपजों पर अब अति आवश्यक परिस्थितियों में ही स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी. इससे किसानों को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि वे अपने तौर पर अपनी उपज का भंडारण कर उचित कीमत मिलने का इंतजार कर सकते हैं. उन्हें अब बिचौलियों और मंडियों के ऊपर आश्रित होना नहीं पड़ेगा और अनावश्यक रूप से कानूनी कार्यवाही का भय भी खत्म होगा. इसी बात को रेखांकित करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी संकेत किया था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रस्तावित संशोधन से अत्यधिक विनियामकीय हस्तक्षेप के संबंध में निजी निवेशकों की आशंकाएं खत्म होगी. यानि अब निजी निवेशक कृषि उपजों की खरीद, भंडारण और विपणन में बिना भय और आशंका के उतरेंगे जिसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा और उन्हें पहले से ज्यादा कीमत मिलेंगी. कानूनी पेंच के भय से बिहार में निजी निवेशक कृषि उपजों से दूर ही रहते थे. यदि निजी निवेशक आगे आयें तो बिहार का दक्षिणी इलाका पान उत्पादन में रिकार्ड कायम कर सकता है . 


इसी प्रकार एक और क्रांतिकारी कदम कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश है. इससे किसानों को मंडियों की दादागिरी से हटकर पूरी तरह खुले व्यापार की छूट मिल रही है. किसान अब कहीं भी अपनी फसल बेच सकते हैं. ऐसी स्थिति में मंडियों का चयन या मंडियों के बाहर सीधे ग्राहकों से जुड़ने के विकल्प किसानों को प्राप्त हो गए हैं. व्यापार के मुक्त तरीके से होने का लाभ निश्चित तौर पर उत्पादकों यानी किसानों को प्राप्त होगा. यह अधिनियम राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर किए गए कृषि उपज की खरीद बिक्री पर कर लगाने से भी रोकता है. दरअसल अब तक मंडियों के बाहर कृषि उपज बेचने पर कई तरह के प्रतिबंध लागू थे. किसानों को देश की 69 हज़ार कृषि उपज विपणन समितियों के माध्यम से ही खरीद बिक्री करनी पड़ती थी और उनके पास विकल्प बहुत सीमित थे लेकिन अब मंडियों के बाहर बाधा रहित व्यापार की व्यवस्था ने उनके लिए बेहतर कीमत पाने के लिए कई अवसर खोल दिए हैं. वह अब अपनी शर्तों पर थोक विक्रेताओं से सौदा कर सकते हैं। इससे सरकारी खरीद पर भी किसानों की निर्भरता कम होगी. सोन नदी के कछार का पूरा इलाका उन्नत किस्म के आलू का उत्पादक रहा है जिसकी देश के कई हिस्सों में बड़ी मांग है. अगर मुक्त व्यापार की नीति शुरू होती है तो बड़ी आसानी से आलू-प्याज के स्थानीय उत्पादक अपने उत्पाद पश्चिम भारत की मंडियों तक पहुंचा सकेंगे, जहां इसकी अच्छी कीमत मिल रही है. 

केंद्र सरकार का तीसरा बड़ा प्रमुख कदम मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षण अध्यादेश है. इस अध्यादेश की मदद से किसान किसी प्रकार के शोषण के भय के बिना बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों आदि से सीधे तौर पर एग्रीमेंट कर जुड़ने के लिए सशक्त होंगे. कृषि सेवाओं के अनुबंध से न केवल किसानों को अत्याधुनिक जानकारी मिलेगी बल्कि उन्हें तकनीकी और पूंजी की सहायता भी मिलेगी. यह एक बिल्कुल इनोवेटिव प्रयास है. इससे उत्पादन से पहले ही मूल्य आश्वासन की गारंटी किसानों को मिल जाएगी और वे 1 वर्ष से 5 वर्ष तक का अनुबंध बड़े व्यापारियों से कर सकते हैं. किसानों के लिए यह बेहद लाभदायक स्थिति होगी. अगर किसान को अपनी उपज का मूल्य मिलने का आश्वासन मिल जाए तो वह धड़ल्ले से अपने खेती में नए प्रयोग कर सकता है और पूंजी निवेश करने से भी नहीं हिचकेगा. लागत न निकल पाने की आशंका उन्हें खेती में नए प्रयोगों से वंचित करती है. 

इस प्रकार यह तीन अधिनियम किसानों को तीन प्रकार से सशक्त कर रहे हैं. पहला, कृषि उत्पादों पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण खत्म करना जो उन्हें इंस्पेक्टर राज्य से आजादी दिलाता है और नए निवेशकों को बिना आशंका के कृषि उत्पादों के विपणन के क्षेत्र में उतरने का अवसर देता है. दूसरा मामला पूरे देश की किसी भी मंडी में या किसी भी विक्रेता को सीधे तौर पर कृषि उपज बेचने की छूट मिलना है. इस छूट की वजह से किसानों के पास मंडियों और बिचौलियों से बचकर नए विकल्प तलाशने, नए ग्राहक तलाशने की सुविधा उपलब्ध हो गई है. तीसरा मामला कृषि अनुबंधों का है. इससे उन्हें न केवल क्रियाशील पूंजी मिलेगी बल्कि उत्पादन के पहले ही उपज के मूल्य आश्वासन की गारंटी भी मिल जाएगी. इसकी वजह से किसान स्वयं को ज्यादा सशक्त महसूस करेंगे और उनके पास नए प्रयोग करने, नई तकनीक का इस्तेमाल करने और कृषि क्षेत्र के विस्तार के साथ-साथ गैर परंपरागत उपज की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर भी प्राप्त होगा. इस अनुबंध से वैसे किसान विशेष तौर पर लाभान्वित होंगे जो फूल, स्ट्राबेरी और अन्य गैर परंपरागत चीजों की खेती से जुड़े हैं जिनके लिए स्थानीय कृषि मंडियों में कोई जगह नहीं है. 

(लेखक - वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक हैं)
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