सत्यमार्ग का पथिक!
छल,छद्म,द्वेष,पाषंड पाल,
कब परम प्रतापी बीर हुये।
जो प्रतिपल होते व्यग्र समग्र,
वे कब के मतिधीर हुये।।
उनकी महिमा है आज अमर,
जो अपरिग्रही निस्काम रहे।
निर्भिक निर्द्वन्द्व रहे धरती-
मानव के हित संग्राम गहे।।
देवता बस देते आये हैं,
सारी धरती को अभय दान।
अपना सर्वस्व लुटाकर भी-
वे होते है नीत नूतन महान।।
कल,बल,छल अपना कर के,
कुछ काम किया जा सकता।
पर वह होता है क्षणभंगुर-
फिर लौट पास आ सकता है।।
अबतक का है इतिहास यही,
जो जैसा करता वह पाता है।
अवसंभावी है फल प्रतिफल-
हर काम लौटकर आता है।।
गर तुम चाह रहे हो रैन चैन,
बस वसुधा का कल्याण करो।
मत मोहपाश में बंध-अंध-
गरिमा को मत निष्प्राण करो।।
तुम पीछे-पीछे हो दौड रहे,
आगे का मार्ग सजाने को।
वह कभी होगा तैयार नहीं-
बढ तुमको गले लगाने को।।
हम हर कोशिश कर हार गये,
वह हुआ नहीं कुछ भी अपना।
बस उसी समय से छोड दिया-
देखना दिन में मैं सपना।।
तुम दिवास्वप्न में हो निमग्न,
खुद अपने पर इठलाते हो।
है पता नहीं कुछ उंच-नीच-
जो सच को भी झुठलाते हो।।
तुम सत्य मार्ग का पथिक बनों-
बन जायेगा जीवन सुंदर।
मत मृगमरीचिका के पीछे पड-
निर्माण करो अपना खण्डहर।।
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
वलिदाद,अरवल(बिहार)