क्या क्या मिला है
अपने भारत देश कामैं वर्णन करता हूँ।
चारों तरह हरियाली का
मैं चित्रण करता हूँ।
कितना कुछ दिया है
उस देने वाले ने।
उसकी तो कद्र करो
हे देशवासियों तुम।।
देखो क्या क्या दिया
हमको प्रकृति ने।
कैसे हम मिटा रहे
उसके संसाधन को।
क्या हम निभा रहे
देश प्रेम को हम।
सोच समझकर बोलो
हे देश के कणधारो।।
चंद पैसों की खातिर
बर्बाद कर रहे सुंदरता।
हरे भरे पड़े और पहाड़
बिना बजह काट रहे।
और अपनी भूगोल को
स्वयं ही बिगड़ रहे।
सोच समझकर बोलो
क्या हम सही कर रहें।।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
कितना सुंदर है भारत।
कितने संत मुनियों और
ऋषि की बस्ती है आत्मा।
कही है गंगा कही है जमुना
बहती है हर दिशाओं में।
शीतल कर देती है मानव के
क्रोध पाप और कृत कार्यो को।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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