जिनिगी के सच्चाई
बड़ा देर से बात बुझाइल।अबगे सब समझ में आइल।।
जब ले देह घुसुकत बाटे।
आपन बिरान तनी पुछत बाटे।।
जेह दिन देह अपंग हो जाई।
ओह दिन इ मोटरी ह भाई।।
तब केहू ना ढोई ना नहवाई।
तब केहू ना मुंह में भात खिआई।।
जब ले हम जवान रहनीं।
हम सबका के ढोवत रहनीं।।
जब सब लोग अंखफोर भइल।
कइल धइल सब भाड़ में गइल।।
छाता बन धुप बरखा सहनीं।
तब सबकर काका चाचा रहनीं।।
भइल उमर देह जर्जर भइल।
सब नाता के दिवार ढह गइल।।
नया उमर के नया फसल बा।
बुढ़वन खातिर कुछ ना रहल बा।।
बुढ़ापा आवत इ सबका सामने आई।
इहे बा आजकल जिनिगी के सच्चाई।।
जय प्रकाश कुवंर
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