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"स्मृति का अवशेष"

"स्मृति का अवशेष"

पंकज शर्मा
जो बीत गया, वह समय नहीं—
एक छाया है
जो वर्तमान की देह पर
धीमे-धीमे ठहर जाती है।

वह लौटता नहीं,
पर लौटने से इनकार भी नहीं करता—
क्योंकि उसका पता
हमारी साँसों में दर्ज है।


हम उसे छोड़ आते हैं पीछे,
पर वह हमें नहीं छोड़ता;
अनकहे प्रश्नों की तरह
अंतर्मन में बैठा रहता है।


जीवन की निरंतरता
मृत्यु से नहीं टूटती—
स्मृति,
सबसे दीर्घायु प्राणी है।


जो कभी थे,
वे अब देह नहीं—
वे एक अनुभूति हैं
जो अचानक आँखें भिगो देती है।


समय उन्हें मिटाता नहीं,
केवल नाम बदल देता है—
आज वे ‘कल’ हैं,
कल वे ‘याद’ कहलाएँगे।


हमारी अनुपस्थिति में भी
वे पूरे रहते हैं—
हर मौन क्षण में
अपनी पूर्णता के साथ।


इसलिए डर मृत्यु का नहीं,
विस्मृति का होना चाहिए—
क्योंकि जो यादों में जीवित है,
वह कभी पूरी तरह गया नहीं।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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