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"स्मरण के द्वार पर विस्मृति"

"स्मरण के द्वार पर विस्मृति"

पंकज शर्मा
मानवीय चित्त की संरचना अत्यंत रहस्यमयी है। जिस विचार को हम बलपूर्वक याद रखने का प्रयास करते हैं, वह स्मृति के गहरे गर्त में कहीं खो जाता है। यह विरोधाभास हमें सिखाता है कि मानसिक तनाव और आग्रह ही विस्मृति के मूल कारण हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो स्मृति की यह 'चूक' हमें अनासक्ति का संदेश देती है। जब हम किसी विषय को 'अनिवार्य' मानकर पकड़ते हैं, तो वह बोझ बन जाता है और हमारा अंतर्मन उसे स्वतः ही त्यागने लगता है।

​दार्शनिक गहराई में झांकें तो बोध होता है कि चेतना बंधन को स्वीकार नहीं करती। जिस क्षण हम याद रखने का 'नोट' लिखते हैं, उसी क्षण सहजता समाप्त हो जाती है। यह विस्मृति वास्तव में मस्तिष्क की एक सुरक्षा प्रणाली है, जो हमें व्यर्थ के मोह और मानसिक दबाव से मुक्त होने के लिए प्रेरित करती है। अतः, जीवन की जटिलताओं को भुलाने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग उन्हें 'याद रखने' की जिद में बांधना ही है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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