स्वाभिमान साहित्य मंच का 40वें राष्ट्रीय कवि दरबार: रचनाओं की महफ़िल में भावनाओं का जादू

पटियाला (पंजाब)।स्वाभिमान साहित्य मंच द्वारा आयोजित 40वें राष्ट्रीय कवि दरबार एक अनोखा प्रस्तुतीकरण था, जिसमें युवा एवं अनुभवी कवि एक मंच पर आकर अपनी रचनाओं के माध्यम से भावनाओं और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। यह आयोजन उनके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो न सिर्फ अपनी काव्य प्रतिभा प्रदर्शित करने का है बल्कि साहित्य प्रेमियों के लिए भी एक आत्मीय अनुभव की तरह होता है।इस बार का कवि दरबार एक विशेष उत्सव के रूप में मनाया गया, जिसमें प्रतिभागियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक मुद्दों, व्यक्तिगत अनुभवों और सृजनात्मकता की गहराइयों को छुआ।
इस विशेष आयोजन के संयोजक नरेश कुमार आष्टा थे, जिन्होंने कार्यक्रम की सफलता के लिए काफी मेहनत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब के पठानकोट से आए डॉ. बांका बहादुर अरोड़ा ने की, जिनकी बुद्धि और विचारशीलता ने आयोजन को और भी ऊंचाई प्रदान की। पटियाला से जागृति गौड़ ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया, जो कवियों और दर्शकों के बीच एक संतुलन स्थापित करने में सफल रहीं।
कार्यक्रम की शुरुआत चंपावत, उत्तराखंड से सोनिया आर्या सब्र द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। इनकी वंदना ने पहल से ही एक आध्यात्मिक माहौल बना दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी कविता "समझ आया मुझे तब सुनाई" प्रस्तुत की, जिसने सभी को प्रकृति की सुंदरता का अनुभव कराया। पुणे के नंदकुमार आदित्य ने अपनी रचना "पूछना किसी से क्या हुआ आपको" के माध्यम से संवेदनाओं के गहराइयों में उतरने की कोशिश की। इसके साथ ही, तेज नारायण ने "पहाड़ पर बसा गांव" सुनाकर दर्शकों को गांव की मीठी यादों में खोने का मौका दिया।
नई दिल्ली के घनश्याम की ग़ज़ल "तुम मिल गई मुझको बड़े ही नसीब से, जाने नहीं दूंगी तुझे अब करीब से " ने सारी महफिल में भावनात्मक लहरें दौड़ा दीं। उनकी तरनुम ग़ज़ल ने सभी को एक अद्वितीय आनंद का अहसास कराया। बक्सर से डॉ. मीरा सिंह मीरा ने अपनी प्रखर कविता "कैसी आग लगी दुनियां में" के माध्यम से समाज के दुखद पहलुओं को उजागर किया और हमें सोचने पर मजबूर किया।
उत्तराखंड के अभिलेश कुमार डोभाल ने कविता के माध्यम से परिवार की एकता और बिटिया की मासूमियत को खूबसूरती से प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने कहा, "एक हाथ की पांच उंगलियों ने कहा हम बराबर नहीं मगर एक साथ हैं।" और दूसरी रचना " कल बिटिया मेरी तीन साल की हो जायेगी, आज मांगती है मुझ से कुछ भी, कल अपनी पसंद छुपायेगी " उनकी भावनाएं बहुत ही स्पर्शी थीं। निधि मदधेशिया और दिव्यांजलि सोनी ने मां को समर्पित एक अत्यंत भावुक कविता प्रस्तुत की, " माँ उस शब्द पर क्या लिखूं जिसने मुझे गढ़ा" मां के महत्व को बड़ी सुंदरता से व्यक्त किया। सिद्धेश्वर ने अपनी नई पुस्तक "शब्द हुए पंख" का परिचय दिया और किताब पर अपने कुछ शब्द और लोकार्पण के बारे में बताया और एक आज़ाद ग़ज़ल सुनाई "ज़माने से किता बड़ा हूँ मैं, अपने ही पैरों पर खड़ा हूँ मैं " दिल को छू लेने वाली गज़ल भी सुनाई। दिल्ली से संतोष पुरी ने सर्दियों का मनोहारी अनुभव साझा करते हुए "ठंड बड़ी है भैया ठंड" गाकर सबको मुस्कराने पर मजबूर किया। राजस्थान के रशीद गौरी ने एक गज़ल प्रस्तुत की, जिसमें शब्दों और अर्थों की खोई हुई जगत की बातें कहीं।
इसके बाद, पटियाला से कमला कौशल जी ने अपनी कविता "अतीत की यादें कितनी अजीब होती हैं, कुछ मीठी कुछ नमकीन होती है" के माध्यम से जीवन के छोटे-छोटे पल याद दिलाए। संतोष मालवीय ने मां की पीड़ा पर एक बेहद सुंदर गज़ल प्रस्तुत की," अब तों वो मेरे अंदर की तस्वीर हो गये, कैसे भूल जाऊं पत्थर की लकीर हो गये" जिससे श्रोताओं की आंखों में आंसू आ गए। बेहतरीन संचालन कर रही पटियाला से जागृति गौड़ ने एक से बढ़ कर एक शेर सुनाये और माँ पर कविता "वो कोई और नहीं मेरी माँ थी। कार्यक्रम के समापन पर, अध्यक्ष डॉ. बांका बहादुर अरोड़ा ने एक अद्भुत कविता "हे गीतेश्वर हे गीतेश्वर" सुनाई, जिसने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस तरह, कार्यक्रम के संयोजन और संचालन ने सभी को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान किया।
स्वाभिमान साहित्य मंच के इस कार्यक्रम का लाइव प्रसारण स्वाभिमान साहित्य यूट्यूब चैनल पर किया गया, जिसे दर्शकों ने अत्यधिक सराहा। यह आयोजन न केवल शब्दों की सुंदरता को दर्शाता है, बल्कि साहित्य के प्रति गहरी आस्था और प्रेम को भी उजागर करता है। इस प्रकार, 40वें राष्ट्रीय कवि दरबार एक यादगार अनुभव बना, जिसमें भावनाओं और रचनात्मकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह आयोजन न केवल कवियों की प्रतिभा को मंच प्रदान करता है, बल्कि साहित्य प्रेमियों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ता है।
प्रस्तुति_दुर्गेश मोहनबिहटा, पटना (बिहार)
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