पतन की ओर डेग
जय प्रकाश कुवंरलोगवा अइसन काहे भइलऽ।
अब दुनिया भर के बात छोड़ीं,
अब गाँव नगर आउर अपना घर में भी,
प्रेमभाव दुलम हो गइलऽ।।
केहू से केहू का ना बनत बा ना ठनत बा।
दुसरा के हेठ सब कोई गनत बा।।
औकात भले जीरो बा।
दिखावे खातिर सबे हीरो बा।।
एड़ी अलगाके लोग बड़का बनत बा।
घर घर में रोज महाभारत ठनत बा।।
इ दुनिया अब कवना ओर जा रहल बा।
लड़ाई भिड़ाई के घाटा हर पल छा रहल बा।।
जब जब धरती पर अधर्म बढ़ेला।
रउरा तब अवतार लेवे के पड़ेला।।
देर मत करीं रामजी, जल्दी से आईं।
दुनिया के साथ भारतखंड के बचाईं।।
जय प्रकाश कुवंर
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