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सीताराम का मंगल-विवाह

सीताराम का मंगल-विवाह

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
नगर फूल से सजाया गया,
गूँजे मंगल-गीत,
आज सीताराम का ब्याह है,
खुशियों की है रीत।
ढोलक की मधुर थाप पर,
नाचे सारा गाँव,
बरबस झूमे जन-जन जैसे,
पाकर प्रेम की छाँव।


स्वर्ण-धुले से मंडप में थे,
दीप सुवासित जलते,
वर सीताराम सजे सुचे थे,
रूप सुधा-से छलकते।
कनक-कलश-सी कोमल सीता,
लाज भरी मुखराई,
जैसे प्रात के नभ में कोमल,
पहली किरण समाई।


वरमाला के पावन क्षण में,
दोनों हीं हुए एक,
देख युगल को देव मुस्काए,
खिलकर नभ के टेक।
गीत-हँसी की लहरें बहतीं,
चारों ओर उदासीन,
जग में जैसे फूट रही हो,
प्रेम सुधा की बीन।


सप्त-पदों के संग-संग बोले,
सत्य-प्रेम के बोल,
बंधन यह शुभ हो अनंत,
छूटे न जीवन-डोर।
माता-पिता ने दी आशीषें,
रहो सदा सुखधाम,
सीता संग जीवन निखरे,
प्रियतम श्री सीताराम।
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