Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

“विलोचन की लाली”

“विलोचन की लाली”

पंकज शर्मा
विलोचन की पहली लाली
छूकर मन में उतर गई—
जैसे किसी मौन अग्नि ने
अंतर में दीप जगा दिया।

यह दृश्य साधारण न था,
इसमें कोई गुप्त कथा थी—
लाली में हल्की वेदना,
पर एक मधुर प्रतीक्षा भी।

उन आँखों की मौन भाषा
किसी ग्रंथ में मिलती नहीं—
मानो समय स्वयं रुककर
मुझसे कुछ कहना चाहता हो।

मैं एक पथिक-सा ठहरा,
उन दृष्टियों के छोर तले—
सांध्य-सा गहरा सुकून,
और अनजाना रहस्य मिला।

थकान भी वहीं छिपी थी,
जीवन की लंबी यात्राओं की—
बिना बोले वह सब कहती,
खामोशी में अपनी कथा बुनकर।

पर कभी हल्की मुस्कान
लाली को फूल बना देती—
और मन अपनी पीड़ाओं को
क्षणभर में भूल जाता।

मैंने तब जाना—पूजा
शब्दों से नहीं, दृष्टि से होती—
जो सामने वाले को
जैसा है वैसा ही स्वीकार ले।

और तब स्पष्ट हुआ—
इन विलोचन-रंगों का रहस्य वही है:
यह किसी पान का लाल नहीं,
भीतर की सच्ची संवेदना है—
जो देखने वाले को
धीरे से बदल देती है।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ