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*गमछे की उड़ान*

गमछे की उड़ान

रचना ---डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"

कभी टोपी थी चर्चा में, कभी जैकेट की थी शान,
एक हल्की सी हवा चली—बदला पूरा आसमान।


हवा चली बस धीमे-धीमे, बदल गया वातावरण,
गमछा उड़ा तो जाग पड़े फिर करघा और घर-आँगन।


मजदूरों की पहचान पुरानी, बन बैठी अब शान नई,
दो दिन में ही पाँच करोड़ की ख़बर है ताज़ा और सही।


खादी बोली, देश सुनाया, फैशन ने रुख मोड़ लिया,
मन की बात की एक धुन ने खादी को भी जोड़ लिया।


एरी रेशम की करुणा छाई, जग में उसका नाम बढ़ा,
गमछा जब कंधे पर आया, असम-बंगाल का गौर बढ़ा।


बांस की चर्चा हुई जो इतनी, फर्नीचर रूप गया बदल,
मखाना भी खेतों में चमका, आकांक्षा उसकी हुई प्रबल।


मिलेट्स ने तो रीलें छेड़ीं, हर घर में पोषण भर गया,
कांजीवरम रेशम का कढ़ना, फिर से हर दिल पर चढ़ गया।


अब गमछा भी गर्व बना है, गौरव का पर्याय बना,
मेहनत की पहचान पुरानी, फैशन का उपहार बना।


ये व्यापार नहीं, विश्वासों का सच होता ऐलान है,
इशारे से ही देश चलाता—बस इतनी पहचान है।


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