मिश्र परिवार : तीन पीढ़ियों की चिकित्सा साधना और सेवा का उजास

मिश्र परिवार, जिसकी जड़ें बिहार के सुपौल और मधुबनी की पवित्र भूमि से जुड़ी हैं, आज चिकित्सा क्षेत्र में सेवा, समर्पण और संस्कार का जीवंत उदाहरण बन चुका है। तीन पीढ़ियों से यह परिवार मानवता की सेवा के पथ पर निरंतर अग्रसर है।
🩺 नई पीढ़ी का उज्ज्वल सितारा — कृष्ण मिश्रा
शिक्षा और परिश्रम का सुंदर उदाहरण बने कृष्ण मिश्रा ने NEET 2025 परीक्षा को पहले ही प्रयास में सफलता पूर्वक उत्तीर्ण कर परिवार और समाज का गौरव बढ़ाया है।
दिनांक 30 अक्टूबर 2025 को उन्हें JNKT Medical College, मधेपुरा में प्रवेश प्राप्त हुआ।
यह सफलता न केवल उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव है, बल्कि यह प्रमाण भी कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए समर्पण ही सबसे बड़ा साधन है।
सेवा और समर्पण की प्रतीक — डॉ. कोमल मिश्रा

डॉ. कोमल मिश्रा ने एम.बी.बी.एस. की उपाधि अर्जित कर वर्तमान में P.I.M.S., लखनऊ में इंटर्नशिप कर रही हैं।
उनकी दृष्टि केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं, बल्कि “मानवता की सेवा” को ही जीवन का मूल लक्ष्य मानती हैं।
डॉ. कोमल मिश्रा आज की उस नारी शक्ति का परिचायक चेहरा हैं, जो शिक्षा और करुणा से समाज का रूपांतरण कर रही हैं।
🦷 उज्जवल मुस्कान की संरक्षिका — डॉ. कृति मिश्रा
मिश्र परिवार की एक और गौरवशाली सदस्य डॉ. कृति मिश्रा, I.T.S. डेंटल कॉलेज, ग्रेटर नोएडा में B.D.S. तृतीय वर्ष की छात्रा हैं।
उनका White Coat Ceremony दिनांक 11 नवम्बर 2025 को सम्पन्न हुआ — यह उनके जीवन का प्रेरणादायक क्षण था, जब उन्होंने चिकित्सा सेवा की पवित्र प्रतिज्ञा धारण की।
उनकी लगन और निष्ठा निश्चय ही भविष्य में अनेक मुस्कानों को स्वस्थ और सुंदर बनाएगी।
👨⚕️ परिवार की जड़ें — सेवा और संस्कार का संगम
इन तीनों प्रतिभाशाली संतान के पिता डॉ. कुंदन मिश्रा, B.D.S., राजनगर (मधुबनी) में प्रतिष्ठित दंत चिकित्सक हैं।
उनकी कार्यशैली में सेवा, संवेदना और ईमानदारी का अद्भुत संगम है।
कृष्ण, कोमल और कृति के दादा स्व. डॉ. उमेश मिश्रा (एम.बी.बी.एस.), राजनगर, मधुबनी के प्रसिद्ध चिकित्सक रहे।
उन्होंने चिकित्सा को व्यवसाय नहीं, बल्कि मानवता की साधना माना।
गौरवशाली परंपरा — स्वतंत्रता संग्राम से सेवा तक
परिवार की जड़ों में रचा-बसा है त्याग और राष्ट्रसेवा का अमिट इतिहास।

इस गौरवशाली वंश के परदादा स्व. स्वरूप नन्द मिश्र सुपौल जिले के सुखपुर के निवासी थे।
वे एक प्रसिद्ध वैद्य होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी रहे।
उनका जीवन भारतीय संस्कृति के उस मूलमंत्र को प्रतिबिंबित करता है —
“सेवा परमो धर्मः।”
परिवार की यह प्रतिष्ठित शाखा मूलतः चकबेदौलिया से संबंध रखती है — जहाँ से यह परंपरा सतत समाजसेवा की ओर प्रवाहित होती रही है।
🌼 समापन : शिक्षा और सेवा की ज्योति
मिश्र परिवार की यह गाथा केवल उपलब्धियों का विवरण नहीं, बल्कि यह बताती है कि
“जब संस्कार शिक्षा से मिलते हैं, तब समाज को दिशा मिलती है।”
तीन पीढ़ियों की इस निरंतर साधना ने चिकित्सा जगत में यह सन्देश दिया है कि —
💫 ज्ञान यदि सेवा में समर्पित हो जाए, तो वह सबसे श्रेष्ठ साधना बन जाती है।
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