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विंध्य का गौरव: जहाँ इतिहास, प्रकृति और प्रगति का संगम है — रीवा

विंध्य का गौरव: जहाँ इतिहास, प्रकृति और प्रगति का संगम है — रीवा

✍️ लेखक – सत्येन्द्र कुमार पाठक
  • विंध्य की गोद में बसा एक अनमोल रत्न
मध्य प्रदेश के उत्तर-पूर्वी छोर पर बसा रीवा, जिसे कभी “विंध्य प्रदेश की राजधानी” होने का गौरव प्राप्त था, आज भी अपने गौरवशाली इतिहास, अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और आधुनिक प्रगति के संगम से भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर विशिष्ट स्थान रखता है।
लगभग 6,240 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह त्रिभुजाकार जिला केवल पत्थरों और नदियों का संगम नहीं, बल्कि सफेद शेरों की जन्मभूमि, प्राचीन संस्कृति की धरोहर, और आधुनिक ऊर्जा क्रांति का केंद्र है।
रीवा — ‘लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर’ की गौरवगाथा
रीवा की सबसे बड़ी और विश्वव्यापी पहचान है सफेद शेर (White Tiger)।
यही वह पुण्यभूमि है जहाँ के बघेला राजाओं ने विश्व का पहला सफेद शेर खोजा, पाला और संरक्षित किया।
रीवा के गोविंदगढ़ किले में रखा गया वह शेर — ‘मोहन’ — इतिहास बन गया। आज विश्वभर में पाए जाने वाले सभी सफेद शेर उसी “मोहन” के वंशज हैं।

इस अमूल्य विरासत के सम्मान में भारत सरकार ने 1987 में डाक टिकट जारी किया।
इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर (मुकुंदपुर) की स्थापना की गई, जो रीवा शहर से मात्र 13 कि.मी. दूर स्थित है।
यह धरोहर रीवा को सच्चे अर्थों में “लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर” बनाती है।
इतिहास की धरोहर: बघेला राजवंश और रीवा किला

रीवा का इतिहास बघेला राजपूतों के शौर्य, धर्म, और संस्कृति की अमर गाथाओं से ओत-प्रोत है।
शहर बिछिया और बीहर नदियों के संगम पर बसा है, और इसी पवित्र संगम पर खड़ा है रीवा किला, जिसकी नींव 1539 ई. में शेरशाह सूरी के पुत्र जलाल खान ने रखी थी तथा 1617 ई. में राजा विक्रमादित्य बघेल ने इसे पूर्ण कराया।

किले का मुख्य भाग आज बघेल म्यूजियम के नाम से जाना जाता है, जो बघेला राजवंश की शाही विरासत, पुरातन कलाकृतियों और रीवा के गौरवशाली अतीत को जीवंत करता है।
महामृत्युंजय मंदिर – 1008 छिद्रों वाला अद्वितीय शिवलिंग

रीवा किले के भीतर स्थित भगवान महामृत्युंजय का मंदिर इस क्षेत्र की आस्था का केंद्र है।
यहाँ का 1008 छिद्रों वाला शिवलिंग भारत में अपनी तरह का इकलौता है।
बिछिया और बीहर नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर धार्मिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व का अद्भुत संगम है।
माना जाता है कि यहाँ महामृत्युंजय मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
रीवा के प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल


चिरहुला नाथ हनुमान मंदिर – महाराजा भाव सिंह के शासनकाल में निर्मित यह सिद्धपीठ अपनी आस्था और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ 12 ज्योतिर्लिंग मंदिर, हवन मंडप, रामसागर व खेमसागर हनुमान मंदिर हैं।


पचमठा मंदिर – आदि शंकराचार्य द्वारा अनुग्रहित यह स्थान उनके प्रवास से जुड़ा माना जाता है। इसे पाँचवाँ मठ कहा जाता है।


देउर कोठार – मौर्य सम्राट अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध स्तूप स्थल, जहाँ उत्खनन में ब्राह्मी शिलालेख, प्राचीन मिट्टी के स्तूप और शैलाश्रय मिले हैं। यह विंध्य क्षेत्र की प्राचीन बौद्ध परंपरा का जीवंत प्रमाण है।


देवतालाब मंदिर – एक ही पाषाण से निर्मित यह शिव मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।


लक्ष्मणबाग धाम, ढुढेश्वरनाथ मंदिर, बसामन मामा मंदिर, और शारदा माता मंदिर (बुड़वा) — ये सभी स्थल रीवा की धार्मिक समृद्धि के प्रतीक हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य की भूमि – नदियाँ, पहाड़ियाँ और जलप्रपात

रीवा का पठारी क्षेत्र विंध्याचल और कैमोर पर्वतों से घिरा है।
यहाँ की नदियाँ — टोंस, तामस (टौंस) और बीहर — अनेक अद्भुत जलप्रपातों का निर्माण करती हैं।


चचाई जलप्रपात – बीहर नदी पर, रीवा से 31 कि.मी. दूर मऊगंज में।


बहुती जलप्रपात – विंध्य के जलधारों का चमत्कार।


केंवटी और पुरवा जलप्रपात – प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध।

ये सभी झरने रीवा को “विंध्य का नैसर्गिक स्वर्ग” बनाते हैं।
आधुनिक रीवा: ऊर्जा और नवाचार का केंद्र

रीवा केवल इतिहास का प्रतीक नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की प्रगति का भी प्रतीक है।
गुढ़ तहसील की बदवार पहाड़ियों पर स्थित रीवा सोलर पार्क (750 MW) एशिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्रकल्प है।
10 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया।
इससे उत्पन्न बिजली दिल्ली मेट्रो तक पहुँचती है — यह रीवा की तकनीकी प्रगति का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
रीवा की संस्कृति और कारीगरी

रीवा की पहचान उसकी भाषा और कला से भी है।
यहाँ की बघेली बोली इस क्षेत्र के राजपूत, गोंड, कोल और अन्य जनजातियों के सांस्कृतिक मेल का प्रतीक है।
यहाँ के कारीगरों द्वारा बनाए गए सुपाड़ी से बने खिलौने और मूर्तियाँ अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त हैं।
रीवा की लोक परंपराएँ, गीत और नृत्य इसके जीवंत सांस्कृतिक व्यक्तित्व को प्रकट करते हैं।
अखिल भारतीय साहित्य अधिवेशन 2025: रीवा का बौद्धिक उत्कर्ष

नवंबर 2025 में रीवा को साहित्यिक जगत का केंद्र बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 17वाँ अखिल भारतीय अधिवेशन यहाँ के कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम में 7–9 नवंबर तक संपन्न हुआ।
उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुशील चंद्र द्विवेदी मधुवेश ने किया।

इस आयोजन में बिहार से आए साहित्यकार सत्येन्द्र कुमार पाठक की पुस्तक ‘सम्मानित साहित्यकार’ का लोकार्पण हुआ।
कार्यक्रम में डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव, जी. एन. भट्ट, डॉ. रेणु मिश्रा, डॉ. संगीता सागर, डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी और ज्योति सिन्हा जैसी प्रतिष्ठित विभूतियाँ उपस्थित थीं।
यह अधिवेशन रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करता है।
एक साहित्यिक यात्री की स्मृतियाँ – विंध्य के आंचल से

लेखक की यात्रा बिहार के अरवल (करपी) से प्रारंभ होकर पटना, सतना होते हुए रीवा तक पहुँची।
मार्ग में ही डॉ. राकेश दत्त मिश्र (संपादक, दिव्य रश्मि) द्वारा पटना स्टेशन पर पुस्तक का प्रथम लोकार्पण हुआ,
और फिर चलती ट्रेन में डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव व अन्य साहित्यकारों के कर-कमलों से द्वितीय लोकार्पण — एक अद्वितीय अनुभव!

रीवा पहुँचकर लेखक ने सरस्वती शिक्षा विद्यालय, निराला नगर में निवास किया और तीन दिनों तक अधिवेशन की गरिमा में सहभागी रहे।
साहित्यिक कार्यक्रमों के बीच, उन्होंने रीवा के धार्मिक स्थलों, गोविंदगढ़ किले, महामृत्युंजय मंदिर और मुकुंदपुर सफारी का दर्शन किया —
यह यात्रा इतिहास, आस्था और साहित्य के त्रिवेणी संगम में स्नान करने के समान थी।
देउर कोठार – मौर्यकालीन बौद्ध विरासत

रीवा से लगभग 67 कि.मी. दूर स्थित देउर कोठार 1982 में खोजा गया एक अत्यंत महत्वपूर्ण बौद्ध पुरातात्विक स्थल है।
यहाँ तीन बड़े मिट्टी के स्तूप, 46 लघु स्तूप और ब्राह्मी लिपि के शिलालेख मिले हैं।
सम्राट अशोक द्वारा निर्मित यह स्थल विंध्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रसार का प्रतीक है।
यहाँ 5000 वर्ष पुराने शैलचित्र और 63 गुफाएँ भी हैं, जो रीवा की प्रागैतिहासिक सभ्यता का प्रमाण देती हैं।
रीवा: इतिहास, प्रकृति और संस्कृति का जीवंत संगम

रीवा केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि विंध्य की आत्मा है —
जहाँ इतिहास की गूँज, प्रकृति की मधुरता, और प्रगति की किरणें एक साथ प्रवाहित होती हैं।
यह भूमि सफेद शेर ‘मोहन’ की विरासत, बघेला राजवंश की वीरता, देउर कोठार की बौद्ध धारा,
और आधुनिक सौर ऊर्जा केंद्र की वैज्ञानिक चेतना — सबका समन्वय करती है।
उपसंहार: विंध्य का गौरव – भारत का गौरव

रीवा — जहाँ शौर्य, श्रद्धा, संस्कृति और सृजन का संगम है —
वह आज भी भारत के मानचित्र पर “विंध्य का गौरव” बनकर उज्ज्वल है।
यह भूमि हमें बताती है कि परंपरा और प्रगति साथ-साथ चल सकती हैं —
बस आवश्यकता है उस दृष्टि की, जो इतिहास को सम्मान दे और भविष्य को आलोकित करे।

रीवा — लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर, विंध्य की आत्मा, और भारतीय संस्कृति का अमर प्रतीक।

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