कुछ नया लिखते हैं
अरुण दिव्यांशआ मिलन और जुदाई के ,
हम नया गीत सीखते हैं ।
कभी हॅंसी कभी क्रन्दन ,
आ कुछ नया लिखते हैं ।।
अजीब सी है ये जिंदगी ,
भरा जिसमें आग पानी ।
कब कहाॅं क्या बरसाते ,
मानव की गजब कहानी ।।
ऊपर से दिखें कुछ और ,
अंदर कुछ और दिखते हैं ।
मानव के जिंदगी का हम ,
आ कुछ नया लिखते हैं ।।
कहीं पर हैं क्रोध बरसाते ,
कहीं सरस गीत वे गाते हैं ।
कहीं छा जाती है मायूसी ,
कहीं पलकें ये भिंगोते हैं ।।
त्याग हर्ष हम जीवन में ,
क्यों चिल्लाते चीखते हैं ।
मानव जीवन की कहानी ,
आ कुछ नया लिखते हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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