साहित्य जगत का एक उज्ज्वल दीप बुझा — 'स्वर्ग विभा' की संस्थापिका डॉ. तारा सिंह का गोलोक गमन

हिन्दी साहित्य की सुविख्यात विदुषी, प्रखर रचनाकार, समाजसेवी एवं त्रैमासिक पत्रिका ‘स्वर्ग विभा’ की संस्थापिका-संपादिका डॉ. तारा सिंह अब हमारे बीच नहीं रहीं। उनका मुंबई में हुआ निधन सम्पूर्ण साहित्य जगत के लिए एक असहनीय क्षति है।
सृजन, संस्कार और समर्पण की अद्भुत त्रिवेणी — यही थी डॉ. तारा सिंह की पहचान। उन्होंने अपने सृजन से हिन्दी साहित्य को नई दिशा दी और असंख्य लेखकों को अपनी लेखनी के माध्यम से प्रेरित किया। उनके संपादन में निकली ‘स्वर्ग विभा’ पत्रिका ने न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी हिन्दी प्रेमियों के हृदय में विशेष स्थान बनाया।
डॉ. तारा सिंह की साहित्य यात्रा अत्यंत बहुआयामी रही। उन्होंने 60 से अधिक कृतियों की रचना कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उनकी कलम में समाज के प्रति संवेदना, नारी मन की गहराई और जीवन के विविध रंगों का अद्भुत सम्मिश्रण था।
उनके निधन पर साहित्य जगत शोकाकुल है।
साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा —
“डॉ. तारा सिंह का जाना हिन्दी साहित्य के एक युग का अंत है। उन्होंने न केवल लेखन किया, बल्कि सैकड़ों लेखकों को दिशा दी।”
स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव ने भावविभोर होकर कहा —
“वे साहित्य साधना की वह दीपशिखा थीं, जो अनवरत जलती रही और दूसरों को भी आलोकित करती रही।”
प्रख्यात लेखिकाओं संगीता सागर, अनंता, दिव्या स्मृति, आरती कुमारी, जी. एन. भट्ट, और सुमित रंजन सहित अनेक साहित्य साधकों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि —
“डॉ. तारा सिंह सदैव हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगी। उनकी रचनाएँ, उनका स्नेह और उनकी वाणी हमारे हृदयों में सदा गूंजती रहेगी।”
आज सम्पूर्ण साहित्यिक समुदाय, ‘स्वर्ग विभा’ परिवार और उनके असंख्य प्रशंसक इस महान आत्मा को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं —
“हे ईश्वर! इस पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें तथा हमें उनके आदर्शों पर चलने की शक्ति प्रदान करें।”
ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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