Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बदलते परिवेश में नारी

बदलते परिवेश में नारी

अरुण दिव्यांश

कौन कहता है थकी हारी ,
कौन कहता है है लाचारी ।
नारी तो है स्वयं ही शक्ति ,
बदलते परिवेश में नारी ।।
नारी ही है भिलनी शबरी ,
नारी ही है सती सावित्री ।
नारी ही रानी लक्ष्मीबाई ,
नारी दुर्गा लक्ष्मी गायत्री ।।
नारी सदा प्रबल रही है ,
नारी नहीं कभी कमजोर ।
नारी बिन है यह हीन नर ,
नारी बिन कहाॅं नर भोर ।।
चल रही नारी सलवार में ,
कहाॅं पहनती वह साड़ी ।
अलग हुआ है रहन सहन ,
बदलते परिवेश में नारी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ