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"जय जय दुर्गे दयामयी"

"जय जय दुर्गे दयामयी"

   रचना :- डॉ. रवि शंकर मिश्र"राकेश"

1.

जय जय दुर्गे दयामयी,

सिंहसवारी भव भय हरनी।

तेरे चरणों में शीश झुकाएँ,

माँ भवानी, तू सुख करणी॥

2.

शेर पे चढ़ के निकली रण में,

शक्ति की तू मिसाल बनी।

असुरों को मारा, धर्म उबारा,

धरा पे फिर रौशनी छनी॥

3.

विजय की तुझसे परिभाषा,

दशहरे का यही संदेश।

सत्य सदा विजयी होता है,

छूटे सारे पाप-कलेश॥

4.

तेरे बिना सब शून्य है माँ,

तू ही सृजन, तू ही प्रलय।

अष्टभुजा वाली अम्बे मेरी,

संकट मोचन तू निरभय॥

5.

माँ की महिमा गाएँ हम सब,

भक्ति में मन रम जाए।

विजया दशमी के इस दिन पर,

तेरा जयगान हो जाए॥

 जय जय जय अम्बे गजवदनी,

सिंहवहिनी जय जगजननी॥

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