जेब में पत्थर लिए कुछ लोग चलते हैं।
जान कर भी अनैतिकता पर मचलते हैं।
उपद्रव दंगा तमाशा लूट का करते।
अनैष्टिक हाथों अकारण ही बहकते हैं।।
विचारों में जहर का सा स्वाद होता है।
बहुत कड़वी बात कानों में उचरते हैं।।
जो बुलाबा भेजकर तूफान लाते हैंं।
स्वयं भी बचते नहीं केंंचुल बदलते हैं।।
लहू के प्यासे कभी मानव नहीं होंगे।
तड़पते को देख चुपके से निकलते हैंं।।10
डा रामकृष्ण


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