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अमी बाकी बहुत कुछ है देखना लिखना।।

अमी बाकी बहुत कुछ है देखना लिखना।।

वेदना का चित्र सा जो सामने आता

हमारी अनुभूतियों को घाव दे जाता।

साहसिक संकल्प को दुर्बल न कर पाए

उस दिशा में सोचना है और है गढ़ना।।


जिसे फूलों सा सुकोमल और गंधभरा

समझता था,,वही निकला कलुश दंभ खरा

द्वंद में आकंठ डूबे भावना के स्वर

सावधान बना रहे आगे सँभल रहना।।


समय के पद चाप पर होगा गहन चिंतन

अनागत की दृष्टि के आलोक में मंथन।

फटे पैरों की व्यथा के कुंद क्रंदित पर

बताते लोकेषणा के लोभ से बचना।। ८४ ।।

डा रामकृष्ण,, गया जी, बिहार

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