अब हमें उबारो हे नवदुर्गा
आ जाओ अब तो मेरी मैया बीत गया एक साल, 
जीने का आधार तुम ही हो ध्यान करो इस लाल।
सजा दिया है मन्दिर मैंने और पूजन का ये थाल,
आपके साए को तरस रहा आज आपका लाल।।
कृपा करो अन्न-धन की देवी करो विघ्न का नाश,
करदो बेड़ा पार भवानी इस दिल में करो निवास।
फॅंसे हुए है हम आजकल इस कदर यह जंजाल,
अब हमें उबारों हे नवदुर्गा सदा बना रहें विश्वास।।
निर्धन-कृषक, राजा-रंक इन सबको आपने तारा,
अपनें भक्त गणों को मैया आपने ही सदा उबारा।
कर दिखलाया कई चमत्कार महिषासुर को मारा,
ठहर नही पाया कोई राक्षक आपसे वही है हारा।।
उस शुंभ-निशुंभ का नामोनिशान आपने मिटाया,
रक्त-बीज को यम पहुॅंचाकर किया दैत्य सफाया।
नौ रूपों में धरा-पधारकर पहचान अलग बनाया,
संपूर्ण-विश्व को उन असुरों से मुक्त आप कराया।।
चंडिका जगदंबिका कभी कालिका रुप में आया,
कभी कल्याणी विद्या दायिनी लक्ष्मी रुप बनाया।
हे मां दुर्गा जगत-जननी सदा रखना ये छत्रछाया,
मैं भक्त सैनिक गणपत आज कविता ये बनाया।।
सैनिक कवि ,गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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