“आईने”
रचना --- डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"सपनों की ये रौनकें सजती हैं आए दिन,
दिल में कोई ख़्वाब तो पलता है आए दिन।
ख़ामोशी के ज़ोर पे तूफ़ान उठे कहीं,
आँखों में समुंदर भी छलकता है आए दिन।
रिश्ते जो धुएँ जैसे बिखरते रहे कभी,
उनका कोई नाम भी तड़पता है आए दिन।
पत्थर से भी दिल बन के सदा गाया करे,
ज़ख़्मों से कोई गीत निकलता है आए दिन।
आईना तो बस चेहरा दिखाता है मगर,
इसमें मेरा वक़्त भी रुकता है आए दिन।
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