देवों के चिकित्सक और आयुर्वेद के जनक: अश्विनी कुमार
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम ग्रंथ, वेदों, पुराणों और संहिताओं में जिन दिव्य शक्तियों का वर्णन मिलता है, उनमें अश्विनी कुमार का स्थान अद्वितीय है। इन्हें देव वैद्य, स्वास्थ्य के देवता और आयुर्वेद विज्ञान के आदि आचार्य के रूप में venerated किया जाता है। ये दो जुड़वा भाई हैं—दस्त्र और नासत्य—जिनका नाम आते ही अद्भुत चिकित्सा चमत्कार, कायाकल्प और नवजीवन प्रदान करने की कथाएं जीवंत हो उठती हैं।अश्विनी कुमारों का जन्म भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा के गर्भ से हुआ था। इन्हें 'प्रभात का जुड़ाव देव' भी कहा जाता है, क्योंकि इनका उदय हमेशा रात्रि और दिवस के संधिकाल यानी उषाकाल में होता है। उनका अवतरण कार्तिक शुक्ल नवमी को सतयुग में हुआ था, जिसे आज अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। ऋग्वेद में अश्विनी कुमारों की महत्ता अतुलनीय है। उनका उल्लेख ३९८ बार हुआ है और ५० से अधिक ऋचाएँ केवल उन्हीं को समर्पित हैं। उन्हें नासत्यौ (असत्य से रहित) और दिवो नपाता (द्यौस का पुत्र) जैसे सम्मानजनक उपाधियाँ दी गई हैं।: उन्हें स्वस्थ्यदेव, वैद्यदेव, अश्वदेव और मधुविद्या के ज्ञाता भी कहा जाता है, जो उनके बहुआयामी ज्ञान और परोपकारी स्वभाव को दर्शाता है।दिव्य रथ: ये दोनों भाई घोड़ों या पक्षियों से जुते हुए स्वर्णरथ पर सवार होकर आकाश में निकलते हैं। इनके रथ पर इनकी पत्नी सूर्या (सूर्य की पुत्री) विराजमान होती हैं।
अश्विनी कुमारों की प्रसिद्धि का मुख्य आधार उनके वे चमत्कार हैं, जो आज के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। वे रोगमुक्त दाता, वृद्धों को तारूण्य और अंधों को नेत्र देने वाले कहे गए हैं।
च्यवन ऋषि का कायाकल्प राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के पातिव्रत्य से प्रसन्न होकर, अत्यंत वृद्ध और क्षीणकाय च्यवन ऋषि को चिर-यौवन प्रदान किया। एंटी-एजिंग थेरेपी, रीजनरेटिव मेडिसिन (पुनर्जनन चिकित्सा)।
लोहे का पैर युद्ध में पैर कट जाने पर वीरांगना विश्पला को तत्काल लोहे का कृत्रिम पैर (टांग) लगाया, जिससे वह युद्ध करने में सक्षम हुईं। प्रोस्थेटिक्स (कृत्रिम अंग) और उन्नत शल्य चिकित्सा। शिर प्रत्यारोपण दधीचि ऋषि से मधुविद्या सीखने के लिए उनका सिर काटकर अलग रखा, धड़ पर घोड़े का सिर लगाया, विद्या सीखी, और फिर पुनः उनका मूल सिर जोड़ दिया। हेड या ऑर्गन ट्रांसप्लांट (अंग प्रत्यारोपण) का प्राचीनतम उल्लेख। दृष्टि और श्रवण शक्ति अंधे ऋजाश्व को दृष्टि और बधिर नार्षद को श्रवण शक्ति प्रदान की। संवेदी अंग चिकित्सा और विशेषज्ञता।नपुंसक पतिवाली वध्रिमती को पुत्र प्राप्त कराया और सोमक को दीर्घायु प्रदान की। प्रजनन चिकित्सा और जीवन वृद्धि (लाइफ एक्सटेंशन)।अश्विनी कुमार केवल चिकित्सक ही नहीं थे, बल्कि उन्हें सिद्धान्त और व्यवहारिक ज्ञान का भी ज्ञाता कहा गया है। उन्हें सौर धर्म का प्रारंभकर्ता और आयुर्वेद विज्ञान का जनक माना जाता है। उन्होंने ही मधुविद्या जैसे गूढ़ ज्ञान को देवताओं के बीच प्रचारित किया। महाभारत के अनुसार, पाण्डवों में से दो जुड़वा भाई नकुल और सहदेव अश्विनी कुमारों के ही अंश थे। नकुल को घोड़ों का विशेषज्ञ (अश्वद्रुत) और सहदेव को गायों का विशेषज्ञ माना जाता था, जो उनके दिव्य पिता के ज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाता है। शाकद्वीप में प्रकृति के देवता सूर्य के पुत्र होने के नाते, उनका संबंध शाकद्वीपीय ब्राह्मणों (मग) से भी है, जिनके द्वारा आयुर्विज्ञान का विकास किया है ।
अश्विनी कुमारों द्वारा मानव कल्याण और निरोगता के लिए किए गए सबसे बड़े कार्यों में से एक है भूतल पर आँवला वृक्ष की उत्पत्ति।: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है।
: धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आँवला वृक्ष की पूजा, उसकी छाया में दान, गुप्त दान और भोजन करने से मनुष्य निरोगता और सर्वार्द्ध समृद्धि प्राप्त करता है। यह वृक्ष उनके स्वास्थ्य और कल्याण के वरदान का प्रतीक है।अश्विनी कुमार भारतीय वैदिक परंपरा के वे चमकते सितारे हैं, जो युगों-युगों से ज्ञान और आरोग्य का संदेश दे रहे हैं। उनका जीवन चरित्र हमें सिखाता है कि चिकित्सा केवल रोगों को ठीक करना नहीं है, बल्कि जीवन को पूर्णता, यौवन और दीर्घायु प्रदान करना है। उनका स्वर्ण रथ आज भी मानवता के कल्याण के लिए आकाश में विचरण करता प्रतीत होता है, जो हर उदय होते प्रभात के साथ स्वास्थ्य और नवजीवन का आश्वासन देता है।
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