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दूर से ही प्यार

दूर से ही प्यार

रात क्या देखा तुमने सपना।
प्यार उसमें कितना पनपा ।
नींद तो आई बहुत मुझे।
पर तुम नजरो से हटी नही।।


अच्छा हुआ जो पास नही थे।
वरना कुछ अनहोनी हो जाती।
और बिना रिश्ते के ही फिर।
रिश्तों का फल मिल जाता।।

दिलमें लबालब भरा हुआ है।
दोनों का प्यार जहाँ पर।
तेरी मंजिल संजय है।
पर मेरी चाहत तुम हो।।


डोर बहुत ही नजुक है।
पर गठबंधन तो पक्का है।
मित्र मिला है जैसे देखो।
कोई पूर्व जन्म-जन्म वाला।।


नाम सुनकर प्रसन्न होती हो।
दिल देखकर क्या होगा।
देख जो लोगे तुम मुझको।
तो घायल मत हो जाना।।


दूर रहकर भी तुम मुझसे।
करते हो प्यार की बातें।
इसलिए तो ये दिल अब।
बिन तेरे कही लगता नही।।


रोज-रोज मुझे देखती रहते हो।
आते जाते कितना लुभाते हो।
हल्की सी मुस्कान दिखा के।
क्यों मेरी जान निकालते हो।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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