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"शताब्दी की ध्वनि"

"शताब्दी की ध्वनि"

रचनाकार ------
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
एक विचार, एक संकल्प से,
उगता सूरज जब चला,
संघ बना वह दीप शिखा,
जिसने तम को हर लिया।

नागपुर की धरती बोली,
'भारत माँ का कर्ज चुकाएँ',
सेवा, शक्ति, संस्कार ले,
स्वयंसेवक आगे आए।

सदियों की पीड़ा को सहेजा,
राष्ट्र निर्माण की ठानी,
घर-घर में जागृत की लौ,
जन-जन की थी कहानी।

न था कोई भेदभाव यहाँ,
न जाति, न भाषा, रंग,
केवल भारत माँ थी आराध्य,
हर दिल में एक ही संग।

हिंदू जीवन की परिभाषा,
संस्कृति का सम्मान,
संघ बना वह जीवनधारा,
जिससे बहे महान।

सुनो! शताब्दी बोल रही है,
सेवा का वह स्वर है,
त्याग, तपस्या, अनुशासन का,
हर पल जो अवसर है।

बूंद-बूंद से बना समंदर,
आज खड़ा वह सिंधु समान,
संघ का यह शत-वर्ष अमर हो,
जय घोष करे हिन्दुस्तान!

चलो बढ़ें फिर एक कदम,
नव निर्माण की ओर,
संघ की यह रचना रहे,
युग-युगांतर के छोर।

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