राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: एक शताब्दी का सफर, विचार और राष्ट्र निर्माण
सत्येन्द्र कुमार पाठक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), जिसे संघ या आर.एस.एस. के नाम से जाना जाता है, केवल एक संगठन नहीं, बल्कि भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित करने वाला एक विशाल, विश्वव्यापी आंदोलन है। बीबीसी के अनुसार यह विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। 27 सितंबर 1925, यानी अश्विन शुक्ल दशमी दशहरा को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित इस हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक स्वयंसेवक संगठन ने एक शताब्दी के करीब का सफर पूरा कर लिया है।यह संगठन सिर्फ भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) का पैतृक संगठन होने तक सीमित नहीं है, बल्कि लाखों निःस्वार्थ स्वयंसेवकों के माध्यम से राष्ट्रभक्ति और चरित्र निर्माण के आदर्शों को पोषित करने का एक अनूठा उदाहरण है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने महाराष्ट्र के नागपुर में की थी, जो आज भी इसका मुख्यालय है। इसकी प्रारंभिक प्रेरणा हिंदू अनुशासन के माध्यम से चरित्र प्रशिक्षण प्रदान करना और हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए हिंदू समुदाय को एकजुट करना था। संघ के मूल आदर्श भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखना और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को "मजबूत" करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करना है। 'हिंदुत्व' को संघ किसी पूजा पद्धति से नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति के रूप में देखता है। संघ की मान्यता है कि हर वह व्यक्ति हिंदू है जो भारत को अपनी जन्म-भूमि, मातृ-भूमि, पितृ-भूमि तथा पुण्य-भूमि मानता है।
संघ की विचारधारा को द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपीय अधिकार-विंग समूहों से प्रारंभिक प्रेरणा मिली, लेकिन समय के साथ यह विशुद्ध रूप से भारतीय राष्ट्रीयता पर केंद्रित एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी संगठन के रूप में उभरा।
आरएसएस की विशालता और पहुंच का रहस्य उसकी अनूठी और सुनियोजित संगठनात्मक संरचना में छिपा है।
संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघचालक का स्थान होता है, जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। यह पद मनोनयन द्वारा भरा जाता है, जिसमें प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की श्रृंखला:में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टरजी (1925 - 1940) ,माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी (1940 - 1973) ,मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस (1973 - 1993) ,प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (1993 - 2000) ,कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी (2000 - 2009) , डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत (2009 - वर्तमान) है।
संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है। शाखा ही वह बुनियाद है जिस पर यह विशाल संगठन खड़ा हुआ है। स्वरूप: सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिए स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन। संख्या: वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचपन हजार से ज्यादा शाखाएं लगती हैं।गतिविधियाँ: खेल, योग, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), वंदना, गीत और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा। उद्देश्य: संस्कृत और हिंदी भाषाओं के माध्यम से समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास द्वारा शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण देकर राष्ट्रीय चेतना जगाना। संघ की रचनात्मक व्यवस्था केंद्र, क्षेत्र, प्रान्त, विभाग, जिला, तालुका/तहसील, नगर, खण्ड, मण्डल और ग्राम तक फैली हुई है।
स्वयंसेवकों को बौद्धिक और शारीरिक रूप से संघ, समाज, राष्ट्र और धर्म की शिक्षा देने के लिए विभिन्न प्रकार के शिक्षा वर्गों का आयोजन किया जाता है:दीपावली वर्ग 3 दिन तालुका या नगर हर साल दीपावली के आस पास , शीत शिविर (हेमंत शिविर) 3 दिन जिला या विभाग हर साल दिसंबर में ,प्राथमिक वर्ग 1 सप्ताह जिला संघ शिक्षा वर्ग का प्रथम चरण ,प्रथम और द्वितीय वर्ग 20-20 दिन प्रान्त/क्षेत्र गहन प्रशिक्षण ,तृतीय वर्ग 25 दिन नागपुर (प्रतिवर्ष) उच्चतम स्तर का प्रशिक्षण विशाल 'संघ परिवार' और संबद्ध संगठन है।
आरएसएस ने धीरे-धीरे एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी छतरी संगठन का रूप ले लिया, जिसने अपनी वैचारिक मान्यताओं को फैलाने के लिए कई संबद्ध संगठनों (जिन्हें सामूहिक रूप से संघ परिवार कहा जाता है) को जन्म दिया। ये संगठन लगभग 80 से अधिक देशों में कार्यरत हैं और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं। प्रमुख संबद्ध संगठन: में राजनीतिक भारतीय जनता पार्टी (BJP) ,छात्र/युवा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), बजरंग दल , धार्मिक/सांस्कृतिक विश्व हिन्दू परिषद (VHP), हिन्दू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू जागरण मंच
श्रमिक/किसान भारतीय मजदूर संघ (BMS), भारतीय किसान संघ, लघु उद्योग भारती ,सामाजिक/सेवा सेवा भारती, राष्ट्र सेविका समिति, वनवासी कल्याण आश्रम, विवेकानन्द केन्द्र , शिक्षा विद्या भारती (सरस्वती शिशु मंदिर), भारतीय विचार केन्द्र , अल्पसंख्यक मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय सिख संगत , अन्य सहकार भारती, स्वदेशी जागरण मंच, विश्व संवाद केन्द्र ये सभी संगठन संघ की विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और समाज के बीच सक्रिय रहते हैं, जिससे संघ की पहुँच भारतीय समाज के लगभग हर क्षेत्र में बन जाती है।
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जाती है, और इतिहास में इसके कार्य केवल सांस्कृतिक या राजनीतिक नहीं रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और संकट प्रबंधन में भी इसकी निर्णायक भूमिका रही है।
दादरा, नगर हवेली और गोवा: इन क्षेत्रों के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका रही। 1954 में संघ के स्वयंसेवकों ने दादरा, नरोली और सिलवासा को पुर्तगालियों से मुक्त कराकर तिरंगा फहराया और क्षेत्र भारत सरकार को सौंप दिया। 1955 से संघ के कार्यकर्ता गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हुए।
1962 भारत-चीन युद्ध: प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया, जहाँ केवल दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में उपस्थित हो गये ।
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान संघ पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही एकमात्र ऐसी संगठित शक्ति थी जिसने तानाशाही के विरुद्ध टक्कर लेने का बीड़ा उठाया।
लोकतंत्र की बहाली: संघ के भूमिगत नेतृत्व ने सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 'समग्र क्रांति आंदोलन' का पूर्ण समर्थन किया। डेढ़ लाख से ज्यादा स्वयंसेवकों ने इस आंदोलन में भाग लेकर जेलों में यातनाएं सहीं।
विपक्ष को एकजुट करना: संघ के वरिष्ठ अधिकारियों प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) और दत्तोपंत ठेंगडी ने प्रयासपूर्वक चार बड़े राजनीतिक दलों को जनता पार्टी के रूप में एकजुट होने के लिए तैयार कराया, जिसने 1977 में चुनाव जीतकर लोकतंत्र को बहाल किया।
छुआछूत का विरोध: महात्मा गांधी ने 1934 में संघ के शिविर की यात्रा के दौरान वहाँ पूर्ण अनुशासन और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी। संघ ने हिंदू धर्म में सामाजिक समानता के लिए दलितों व पिछड़े वर्गों को मंदिर में पुजारी पद के प्रशिक्षण का भी पक्ष लिया है, यह मानते हुए कि सामाजिक वर्गीकरण ही हिंदू मूल्यों के हनन का कारण है।
राहत और पुनर्वास: संघ की 'सेवा भारती' जैसी इकाइयां राहत कार्यों में पुरानी परंपरा रखती हैं। 1971 के उड़ीसा चक्रवात और 1977 के आंध्र प्रदेश चक्रवात में संघ ने महती भूमिका निभाई। सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से परेशान 57 अनाथ बच्चों को गोद लिया, जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू थे।
संघ को आलोचकों द्वारा एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन एवं हिंदूवादी और फासीवादी संगठन के तौर पर आलोचना का सामना करना पड़ा है। धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्न: आलोचकों का आरोप है कि संघ के विचारों के प्रचार से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होती है। संघ का पक्ष: संघ का मानना है कि वह केवल हिंदुओं के जायज अधिकारों की बात करता है, जबकि सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। संघ की मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिंदू बहुमत में हैं।अयोध्या विवाद: सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है, जहाँ संघ ने राम मंदिर के निर्माण का पक्ष लिया।
1948 में महात्मा गाँधी की हत्या के बाद संघ के पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी, जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि, बाद में एक जाँच समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद संघ को इस आरोप से बरी किया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
संघ ने अपनी स्थापना के 75 वर्ष बाद सन् 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन.डी.ए. की मिलीजुली सरकार को केन्द्रीय सत्ता पर आसीन होते देखा, जो इसकी बढ़ती राजनीतिक प्रासंगिकता की परिणति थी।
आज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, संघ का राजनीतिक महत्व और भी बढ़ गया है। 2 अक्टूबर 2025 (अश्विन शुक्ल दशमी, 2082) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना दिवस पर 100 रु. के सिक्के जारी किए जाने का कदम संघ के सौ वर्ष के करीब के सफर को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने का प्रतीक है। इस सिक्के पर भारत का अशोक स्तंभ, भारतमाता एवं स्वयंसेवक का चिह्न अंकित किया गया है।संघ, एक विचार के रूप में, भारतीय समाज की गहरी जड़ों में समा चुका है। स्वयंसेवी, निःस्वार्थ राष्ट्रभक्ति और 'चरित्र-निर्माण' के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना जगाने का इसका मूल मंत्र आज भी बरकरार है। दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संस्थान के रूप में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की राष्ट्रीय पहचान, संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाली एक अद्वितीय शक्ति बना हुआ है।
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